खबर लहरिया Blog यूपी : नहरों में नहीं छोड़ा गया सिंचाई हेतु पानी, बुआई में देरी से किसानों के आर्थिक जीवन पर पड़ रहा प्रभाव

यूपी : नहरों में नहीं छोड़ा गया सिंचाई हेतु पानी, बुआई में देरी से किसानों के आर्थिक जीवन पर पड़ रहा प्रभाव

महोबा व वाराणसी जिले के किसान इस समय नहर में पानी समय से न छोड़े जाने की समस्या का सामना कर रहे हैं। इससे किसानों को बुआई में देरी हो रही है।

                    पानी न छोड़ने की वजह से नहर सूख गयी है ( फोटो साभार – खबर लहरिया/ श्यामकली)

यूपी के कई जिलों के किसान इस समय नहर का पानी समय से न छोड़े जाने को लेकर चिंतित है। उनके खेतों की सिंचाई के लिए वे नहर के पानी पर ही निर्भर है। ऐसे में सिर्फ फसल के बोने का समय बीत रहा है। अधिकारी बस यह कहते दिख रहें हैं कि इस तारीख को बांध में पानी छोड़ दिया जाएगा, पानी छोड़ दिया गया है तो फिर वह पानी किसानों तक क्यों नहीं पहुंच रहा?

खबर लहरिया ने रिपोर्टिंग के दौरान पाया कि महोबा व वाराणसी जिले के किसान इस समय नहर में पानी समय से न छोड़े जाने की समस्या का सामना कर रहे हैं। महोबा जिले की बात करें तो मोहारी माइनर और सिरमौर माइनर, ये दो ऐसी नहरें हैं जिन पर किसान सिंचाई के लिए निर्भर रहते हैं।

एक महिला किसान ने बताया कि कमालपुरा तालाब से सिंचाई विभाग द्वारा नहरों में पानी छोड़ा जाता है जो किसानों को नहीं मिलता और जिसका असर उनकी फसलों पर दिखाई देता है।

जैतपुर ब्लॉक के सिरमौर गांव, बम्होरी खुर्द, मौहारी गांव आदि के किसानों ने बताया कि कमालपुरा तालाब से जुड़ी हुई नहरें जगह-जगह से फूटी हुई है। प्रशासन द्वारा कहा गया था कि 1 दिसम्बर को पानी छोड़ दिया गया है लेकिन वह पानी तो आस-पास के गाँवो के किसानों को मिल ही नहीं पाया।

कई किसानों ने यह भी बताया कि तालाब में छोड़ा गया पानी नहर में न जाकर कहीं और ही जा रहा था।

                                                                      पानी न मिलने की वजह से चिंतित किसान

किसानों के खेत पलेवा के लिए पड़े हुए हैं। लोग सिंचाई विभाग से पानी के लिए कह कहकर थक चुके हैं। किसानों ने कहा, जब बुआई और पलेवा का समय निकल जाएगा तो क्या फायदा।

अन्य किसान प्रेम ने बताया कि वह दूसरे के कुएं से 800 रूपये प्रति घंटे के हिसाब से पानी लेते हैं और अपने मटर के खेत की सिंचाई करते हैं। सिंचाई विभाग तो बस हाथ पर हाथ धरे बैठी हुई है। आरोप लगाते हुए कहा कि सिर्फ कागज़ो पर ही कमालपुरा तालाब से नहरें लगी हुई हैं पर हकीकत यह है कि वहां तक भी पानी नहीं पहुंचा है।

खबर लहरिया ने इस बारे में सिंचाई विभाग की जेई विशाखा सेन से बात की। उन्होंने बताया कि उन्होंने 10 दिसंबर तक पानी छोड़ने की बात कही थी व उनकी तरफ से नहर में पानी भी पूरी तरह से छोड़ दिया गया था। मोहारी व सिरमौर गांव के किसानों को पानी इसलिए नहीं मिला क्योंकि जो गांव पहले पड़ते हैं, वह पहले अपने खेतों की सिंचाई करते हैं और फिर पानी को आगे बढ़ने देते हैं। नहर भी ज़्यादा बड़ी नहीं है। दो-चार दिन में सबको पानी मिल जाएगा। वहीं अगर तालाब में ज़्यादा पानी छोड़ा जाएगा तो कमालपुरा गांव में पानी भर जाएगा। यही वजह है, नहर में जितना पानी आता है उतना ही वह पानी खोलते हैं।

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वाराणसी में भी किसान कर रहे पानी का इंतज़ार

अगर वाराणसी जिले के चोलापुर ब्लॉक की बात करें तो यहां के भी किसान सिंचाई का पानी न मिलने से परेशान हैं। दिसंबर का महीना आ चुका है और नहर में पानी नहीं छोड़ा गया है। किसान अपनी गेहूं की फसलों की बुवाई के लिए पानी का इंतज़ार कर रहे हैं।

                                                                               सूखी पड़ी नहर

धरसौना गांव के किसान विद्यासागर ने बताया कि नहर कई सालों से सूखी पड़ी हुई है। आगे बताया कि इसकी वजह यह है कि शारदा नहर से लगभग 2 हज़ार से भी ज़्यादा किसान जुड़े हुए हैं। जिसमें कई किसान अमीर हैं तो कई गरीब।

किसानों ने यह भी बताया कि नहर के आस-पास बेहद गंदगी भी है जिससे खेती करते समय उन्हें दिक्कात होती है। हर किसान मशीन का पानी नहीं खरीद सकता। जो समर्थ है वह पानी खरीद कर अपने खेतों की सिंचाई कर लेता है।

सिंचाई विभग के इंजीनियर असलम से जब खबर लहरिया ने बात की तो उनका कहना था कि पानी नवंबर तक छोड़ देना चाहिए था पर अभी तक क्लोज़िंग चल रहा है। अधिकारी द्वारा 10 दिसंबर तक नहर में पानी छोड़ने की बात कही गयी थी लेकिन बताई तारीख के बाद भी आज कई दिन बीत चुके हैं। इसके बावजूद भी किसानों को पानी नहीं मिल पाया है।

कुछ समय पहले किसान खेती हेतु खाद के लिए परेशान थे, लंबी-लंबी लाइनों में लग अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे थे। अब किसानों को सिंचाई हेतु पानी न मिलने की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। हर तरफ से किसानों को बुआई व पलेवा डालने में देरी हो रही है, जिसका कहीं न कहीं ज़िम्मेदार प्रशासन दिखाई दे रहा है, जैसा की किसानों ने बताया। अगर समय से किसानों को खाद मिल जाती, नहरों में किसानों के खेतों की सिंचाई अनुसार पर्याप्त पानी छोड़ दिया जाता है तो शायद किसानों को अनाज की चिंता नहीं करनी पड़ती। समर्थ किसान तो इस समस्या से निकल जाएंगे पर गरीब किसान जो प्रशासन द्वारा छोड़े जाने वाले पानी पर निर्भर है उनका क्या? अगर देरी से फसल होने पर किसान को आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़े तो क्या प्रशासन इसकी ज़िम्मेदारी लेगा?

इस खबर की रिपोर्टिंग श्यामकलीसुशीला देवी द्वारा की गयी है। 

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