खबर लहरिया Blog भारत जल्द कर सकता है मानव जीवन रक्षा सीमा से परे तीव्र गर्म हवाओं का अनुभव – WHO रिपोर्ट

भारत जल्द कर सकता है मानव जीवन रक्षा सीमा से परे तीव्र गर्म हवाओं का अनुभव – WHO रिपोर्ट

रिपोर्ट में बताया गया कि, “भारत में 75 प्रतिशत कार्यबल या ये कहें 380 मिलियन लोग खुले तौर पर गर्मी में श्रम करते हैं, कई बार वह जीवन को खतरे में डालने वाले तापमान में भी काम करते हैं……2030 तक, भारत अनुमानित तौर पर 80 मिलियन वैश्विक नौकरी में से 34 मिलियन नौकरियों के खोने का ज़िम्मेदार हो सकता है जिसमें गर्मी के तनाव से उत्पादकता में गिरावट होना जुड़ा हुआ है।”

                                                    सांकेतिक फोटो ( फोटो साभार – सोशल मीडिया )

पिछले कुछ दशकों से भीषण ग्रीष्म लहरें पूरे भारत में हज़ारों मौतों के लिए ज़िम्मेदार रही हैं, जोकि अब बहुत ही खतरनाक आवृत्ति के साथ बढ़ रही हैं। एक नई रिपोर्ट के अनुसार जल्द ही देश गर्म हवाओं का अनुभव करने वाले दुनिया के पहले स्थानों में से एक बन सकता है, जो मानव के जीवित रहने की सीमा को तोड़ सकता है, एक नई रिपोर्ट के अनुसार।

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तापमान को लेकर विश्व बैंक की रिपोर्ट ने दिया खतरे का संकेत

विश्व बैंक की रिपोर्ट “क्लाइमेट इन्वेस्टमेंट ओप्पोरचुनिटीज़ इन इंडियाज़ कूलिंग सेक्टर” (Climate Investment Opportunities in India’s Cooling Sector) के शीर्षक में कहा गया, देश उच्च तापमान का अनुभव कर रहा है जोकि पहले आता है और लंबे समय तक रहता है।

रिपोर्ट में आगे बताया गया, “अप्रैल 2022 में भारत बहुत जल्दी ही वसंत गर्मी की लहर की चपेट में आ गया था जिसकी वजह से राजधानी दिल्ली का तापमान 46 डिग्री सेल्सियस (oC) (114 डिग्री फ़ारेनहाइट) से भी ऊपर पहुंच गया था। मार्च के महीने में तापमान में असाधारण तौर पर वृद्धि देखी गयी थी व अब तक का सबसे गर्म तापमान रिकॉर्ड किया गया था।”

विश्व बैंक द्वारा केरल सरकार के साथ पार्टनरशिप में आयोजित की जा रही दो दिवसीय “इंडिया क्लाइमेट एंड डेवलपमेंट पार्टनर्स मीट” (India Climate and Development Partners Meet) के दौरान रिपोर्ट ज़ारी की जायेगी।

बढ़ते तापमान को लेकर कई बार दी गयी थी चेतावनी

एनडीटीवी की प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, यह संकेत दिया गया कि भारत में गर्म लहरों की स्थिति मानव जीवन के उत्तरजीविता सीमा को तोड़ सकती है। बताया गया कि हाल ही में दक्षिण एशिया में बढ़ते तापमान व गर्म हवाओं के संदर्भ में जलवायु वैज्ञानिकों ने बहुत लंबे समय से चेतावनी दी हुई है।

“अगस्त 2021 में, जलवायु परिवर्तन पर इंटर-गवर्नमेंट पैनल ( Inter-governmental Panel on Climate Change) की छठी आंकलन रिपोर्ट ने चेतावनी दी थी कि भारतीय उपमहाद्वीप आने वाले दशक में लगातार व गहन गर्मी की लहरों का सामना करेगा।

विश्व बैंक की रिपोर्ट में बताया गया कि, “जी20 क्लाइमेट रिस्क एटलस ने भी 2021 में चेतावनी दी थी कि अगर कार्बन उत्सर्जन ज़्यादा रहता है, तो 2036-65 तक पूरे भारत में गर्मी की लहरें 25 गुना अधिक समय तक रहने की संभावना है, जैसा कि आईपीसीसी के सबसे खराब उत्सर्जन परिदृश्य में है।”

यह भी चेतावनी दी गयी थी कि पूरे भारत में बढ़ती गर्मी आर्थिक उत्पादकता को खतरे में डाल सकती है।

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34 मिलियन नौकरियों का हो सकता है नुकसान

रिपोर्ट में बताया गया कि, “भारत में 75 प्रतिशत कार्यबल या ये कहें 380 मिलियन लोग खुले तौर पर गर्मी में श्रम करते हैं, कई बार वह जीवन को खतरे में डालने वाले तापमान में भी काम करते हैं…….. 2030 तक, भारत अनुमानित तौर पर 80 मिलियन वैश्विक नौकरी में से 34 मिलियन नौकरियों के खोने का ज़िम्मेदार हो सकता है जिसमें गर्मी के तनाव से उत्पादकता में गिरावट होना जुड़ा हुआ है।”

भीषण गर्मी से श्रम बल का हुआ है नुकसान

आगे बताया कि भारत ने दक्षिण एशिया में जोखिम भरी गर्मी में भारी श्रम को लेकर बहुत प्रभाव दिखाया है, जिसकी वजह से एक साल में 101 बिलियन से ज़्यादा घंटे का नुकसान हुआ है।

वैश्विक प्रबंधन सलाहकार फर्म (global management consulting firm), मैकिन्से (McKinsey) एंड कंपनी द्वारा किए गए विश्लेषण से पता चलता है कि बढ़ती गर्मी और उमस से श्रम का नुकसान इस दशक के अंत तक भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 4.5 प्रतिशत – लगभग 150-250 बिलियन अमरीकी डालर को जोखिम में डाल सकता है।

खाद्य व सार्वजनिक स्वास्थ्य पर पड़ेगा असर

बताया गया कि भारत की दीर्घकालिक खाद्य सुरक्षा और सार्वजनिक स्वास्थ्य सुरक्षा एक विश्वसनीय कोल्ड चेन नेटवर्क पर निर्भर करेगी। भारत भर में खाद्य और दवा के सामान के परिवहन के लिए कोल्ड चेन रेफ्रिजरेशन की एक प्रणाली की आवश्यकता होती है जो हर कदम पर काम करती है।

“यात्रा में तापमान में एक भी कमी कोल्ड चेन को तोड़ सकती है, ताज़ा उपज को खराब कर सकती है और वैक्सीन की क्षमता को कमज़ोर कर सकती है। भारत में सिर्फ 4 प्रतिशत फ्रेश उत्पादन कोल्ड चेन सुविधाओं द्वारा कवर किया जाता है, वहीं वार्षिक अनुमानित खाद्य नुकसान कुल 13 बिलियन अमेरिकी डॉलर है।”

हर किसी के पास नहीं एयर कूलिंग की सुविधा

“जैसे-जैसे पूरे भारत में तापमान बढ़ेगा, वैसे-वैसे कूलिंग की मांग भी बढ़ेगी। हालांकि, एक ऐसे देश में जहां दो-तिहाई आबादी एक दिन में 2 डॉलर से कम पर रहती है, और जहां एक एयर कंडीशनिंग यूनिट की औसत लागत यूएसडी (United States of America) 260 और यूएसडी 500 के बीच रहती है। एयर क्लोकिंग सिस्टम, लक्ज़री के रूप में कुछ लोगों के पास उपलब्ध है। इंडिया कूलिंग एक्शन प्लान (आईसीएपी) में द्वारा दिए गए विश्लेषण के अनुसार, सिर्फ आठ प्रतिशत भारतीय परिवारों के पास एयर कंडीशनिंग इकाइयां हैं।”

भीषण गर्म हवाओं के दौरान ठण्ड में रहना आराम से भी कई ज़्यादा है क्योंकि यह मानव के जीवन और मृत्यु के बीच एक अनिश्चित रेखा का निर्माण करता है, रिपोर्ट ने कहा।

ऐसे में जो सवाल सामने आता है वह यह है कि गरीब व हाशिये पर रहने वाले समुदायों का क्या जिनकी पहुँच एयर कूलिंग जैसी सुविधाओं तक नहीं है? उन मज़दूरों का क्या जिनके पास तीव्र तापमान में काम करने के अलावा और कोई रोज़गार उपलब्ध नहीं है? ऐसे में सरकार इस तीव्र गर्म हवाओं से निपटने को लेकर क्या योजना बना रही है? पर्यावरण व तापमान को लेकर सरकार की चलती योजनाओं के बावजूद भारत आज इस स्थिति में कैसे है? तीव्र तापमान का मूल कारक व वजह क्या है?

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