यूपी के प्रयागराज जिले में आने वाले कई गांव शंकरगढ़, शिवराजपुर,गाढाकटरा और गुलराहाई में बालू पत्थर का काम होता है। रोजगार की कमी के कारण इन्हें मजबूरन इस काम को करना पड़ता है, जबकि इस काम से उनके स्वास्थ पर असर पड़ता है। यहां की जो महिलाएं हैं, वह गिट्टी बालू को चालने और बोरी में भरकर ट्रक में रखने का काम करती हैं। महिलाएं इस काम को अपने परिवार और अपने बच्चों का पेट भरने के लिए करती हैं क्योंकि इसके अलावा उनके पास कोई और विकल्प नहीं है।
रिपोर्ट व फोटो – सुनीता देवी, लेखन – सुचित्रा
सिलिका बालू जिसे सफ़ेद बालू, बालू पत्थर कई नामों से जाना जाता है। बालू पत्थर जिसकी कीमत आज बहुत अधिक है। इसका बाजार भारत से बाहर के कई देशों में भी फैला हुआ है। पहाड़ों से निकलने वाले पत्थरों को मशीनों से बारीक किया जाता है और फिर बालू को छान कर इसे उपयोग करने योग्य बनाया जाता है। पत्थरों को तोड़ने और बारीक पत्थरों के चूर्ण को चालने का काम मजदूर लोग भी करते हैं। इस बालू के निर्माण में पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं का भी योगदान है। इस काम को करने में काफी खतरा भी है क्योंकि काम करने के दौरान उड़ने वाली धूल से कई तरह की बीमारी होने का डर रहता है। इस आर्टिकल में हम बात करेंगे महिलाओं के स्वास्थ की, जिसका असर बालू के काम करने से पड़ता है।
बालू का काम यूपी के कई हिस्सों में किया जाता है। बालू का इस्तेमाल फिरोजाबाद में चूड़ियों के लिए किया जाता है और कुछ जगह बर्तन बनाने के काम भी आता है। सिलिका बालू कांच बनाने के लिए, आभूषण, पेंट और कोटिंग, पानी को शुद्ध करने आदि के इस्तेमाल में काम आता है।
यूपी के प्रयागराज जिले में आने वाले कई गांव शंकरगढ़ गांव, शिवराजपुर,गाढाकटरा और गुलराहाई में बालू पत्थर का काम होता है। रोजगार की कमी के कारण इन्हें मजबूरन इस काम को करना पड़ता है, जबकि इस काम से उनके स्वास्थ पर असर पड़ता है। यहां की जो महिलाएं हैं, वह गिट्टी बालू को चालने और बोरी में भरकर ट्रक में रखने का काम करती हैं। महिलाएं इस काम को अपने परिवार और अपने बच्चों का पेट भरने के लिए करती हैं क्योंकि इसके अलावा उनके पास कोई और विकल्प नहीं है।
बालू का काम करने से हो रही टीबी की बीमारी
गुलराहाई गांव की कलावती कहती हैं कि, “बालू चलाई का काम आज 20 साल से हम लोग करते आ रहे हैं। जब बालू चालते (छानते) हैं तो इतनी धूल उड़ती है कि मुँह के अन्दर चली जाती है। धूल के कारण गांव में टीबी के मरीज बढ़ रहे हैं। हमारे पति को पांच साल से टीबी है, पर क्या करें? मजबूरी है। इसके अलावा कोई काम नहीं है। यदि काम नहीं करेंगे तो बच्चे भूखे मर जाएगें। हमारे गांव में इस समय टीबी की बीमारी से कम से कम 10 लोगों की मौत हो गई।”
2018 से 2020 तक देश में मौत के आँकड़े
द कारवां (The Caravan) में लिखे गए एक आर्टिकल Choking to Death: Silica Dust from India’s Industries Is Killing Its Workers में बलुआ पत्थर में धूल से हुई मौत के आंकड़ें के बारे में बताया गया है जो इस प्रकार है। भारत देश में 2022 में श्रम मंत्रालय से मिली जानकारी के आधार पर, कारखाना सलाह सेवा और श्रम संस्थान महानिदेशालय ने 2019 के दौरान हरियाणा में 240 मामले, 2020 के दौरान हरियाणा में 34 मामले और गुजरात में 10 मामले बताए हैं। 2019 और 2020 में राजस्थान और उत्तर प्रदेश में कोई मामला सामने नहीं आया। खान सुरक्षा महानिदेशालय (DGMS) के अनुसार, 2021 के दौरान देश में आंध्र प्रदेश में सिलिकोसिस (बलुआ पत्थर खनन में धूल से होने वाली बीमारी का नाम) के केवल 4 मामले और केरल में 2 मामले सामने आए। 2021 में स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा था कि 2018 से पहले के दस वर्षों में गुजरात में सिलिकोसिस के कारण 17 मौतें हुई थी, लेकिन राजस्थान और झारखंड में मौत का कोई मामला नहीं पाया गया था।
बालू की धूल से होने वाली बीमारी
राष्ट्रीय व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य संस्थान (NIOSH) की रिपोर्ट के मुताबिक बालू के संपर्क में आने के कारण “न्यूमोकोनियोसिस” नामक फेफड़ों की बीमारी होने का खतरा होता है । इस प्रकार के धूल में अतिरिक्त महीन कण शामिल होते हैं जिसे साँस लेने में यह कण फेफड़ों में चला जाता है। इस काम को करने से फेफड़ों का कैंसर बढ़ सकता है। सिलिकोसिस देश में एक प्रमुख व्यावसायिक फेफड़ों की बीमारी है जो बलुआ पत्थर की खदानों में काम करने से होती है। यह कई तरह की खानों और खदानों में काम करने वाले मजदूरों को प्रभावित करता है जिसमें कोयला खदान भी शामिल हैं। चिकित्सा उपचार से इन बीमारियों को ठीक नहीं किया जा सकता, इसलिए उन्हें रोकने और धूल के संपर्क को नियंत्रित करने की आवश्यकता है।
जब बालू की धूल हमारे शरीर के अन्दर प्रवेश करती है तो कई तरह की बीमारी हमारे शरीर में फैलती है। बालू का काम करने वाले लोगों को अकसर साँस, टीबी, पेट, पथरी, गुर्दा खराब होना और अन्य तरह की बीमारियां हो जाती है। इसका सबसे ज्यादा प्रभाव गर्भवती महिलाओं पर तब पड़ता है जब वह बालू को चालती (चलाई करती) है। महिलाएँ दिन भर ये काम करती हैं जिसकी वजह से पूरी धूल मुँह के अन्दर, पेट में चली जाती है जिसका असर बच्चे और मां दोनों के स्वास्थ्य पर पड़ता है। जब माँ टीबी की बीमारी से ग्रसित हो जाती है तो पूरा असर बच्चे पर पड़ता है। इस काम को करने से गांव में दो महिलाओं की मौत हो गई थी।
शंकरगढ़ क्षेत्र के 75 प्रतिशत आदिवासी परिवार की रोजी-रोटी बालू के रोजगार से चलती है। कुछ लोग बालू के चलाई का काम करते हैं तो कुछ बालू बोरी में भरते हैं, कुछ लोग ट्रक में बोरी लोड (रखते) करते हैं जबकि ये काम बहुत खतरे का है लेकिन रोज का पैसा उन्हें मिल जाता है।
रोजाना वजन उठाने से महिलाओं को होता है दर्द
शिवराजपुर की कान्ति कहती हैं कि, “रोज के 4 रुपए बोरी के हिसाब से पैसा मिलता है। एक बोरी में 50 किलो वजन होता है। हमारे खाने के लिए पैसे हो जाते हैं इसलिए ये काम करना अच्छा लगता है। रोजाना यह काम करने से कमर दर्द, सिर दर्द बहुत होता है लेकिन क्या करें कोई काम ही नहीं है। मनरेगा का काम करते तो समय से पैसा नहीं मिलता। इस कारण से मनरेगा में काम करना नहीं चाहते हैं।”
महिलाओं के साथ बच्चों पर भी असर
जिन महिलाओं के बच्चे हैं वो काम पर अपने बच्चों को साथ ले जाती हैं। जब महिलाएं काम करने लगती हैं तो बच्चे बालू में खेलते रहते हैं। उनके मुँह में धूल भर जाती है जिससे पेट में अलग-अलग तरह की बीमारी हो जाती है और बच्चों में भी टीबी की शिकायत हो जाती है। आर्थिक रूप से कमजोर लोग कहाँ से इतना पैसा लाएंगे जो इस तरह की बड़ी बीमारी का इलाज करवा पाएं।
शंकरगढ़ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के डॉक्टर अभिषेक का कहना है कि शंकरगढ़ क्षेत्र में बालू का काम महिलाएं व पुरुष बराबर करते हैं। पथरीला क्षेत्र होने की वजह से भी हैण्ड पम्प का गन्दा पानी पीने से भी लोग बीमार होते हैं। इस समय दस लोगों का टीबी का इलाज चल रहा है जिसमें एक गर्भवती महिला भी शामिल है।
The Caravan (द कारवां) की रिपोर्ट बताती है कि 6 अगस्त 2024 को सर्वोच्च न्यायालय ने अपना फ़ैसला सुनाया था। इस फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने पर्यावरण संबंधी मुद्दों के लिए सर्वोच्च मंच, राष्ट्रीय हरित अधिकरण को आदेश दिया कि वह देश भर में सिलिकोसिस से ग्रस्त उद्योगों (कामों) के प्रभाव की निगरानी करे। इस फैसले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) को मुआवजा देने के प्रयासों की देखरेख करने काी काम सौंपा।
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