“हमारी उम्र बालू और पत्थर का काम करते-करते बीत गई लेकिन लगता है बिजली देखे बिना ही मर जाएंगे।हमें लगता है शायद सरकार को लगता है हम वोट नहीं देते इसलिए विकास नहीं होता।”
रिपोर्टिंग – सुनीता, लेखन – रचना
आज जब देश डिजिटल इंडिया, स्मार्ट सिटी और हर गांव में बिजली पहुंचाने के दावे कर रहा है वहीं प्रयागराज जिले के शंकरगढ़ ब्लॉक अंतर्गत लखनपुर गांव के मजरे हिनौती का पुरवा, पहाड़ी बस्ती, दबाई बस्ती, राकेश का पुरवा आज भी अंधेरे में जीवन बिता रहे हैं। कुछ परिवार लकड़ी की बल्लियों के सहारे बिजली खींचकर किसी तरह रोशनी जुटा रहे हैं लेकिन बाकी घर पूरी तरह अंधेरे में हैं। खबर लहरिया ने इसकी जांच पड़ताल की और वहां के कुछ लोगों से बातचीत भी की जिससे कई सच्चाई और विकास के झूठे वादे साफ नजर आए।
100 परिवार अंधेरे में बिता रहे ज़िंदगी
हिनौती का पुरवा निवासी सीताराम बताते हैं कि इस गांव में आज तक न बिजली के खंभे लगे हैं न तार। “हम लोग अंधेरे में ही गुजारा करते हैं। यह गांव जंगल के किनारे है जहां उजाले की सबसे ज़्यादा जरूरत है। हमारे पास उजाले का कोई स्थायी साधन नहीं है। हम लोग रोज की मजदूरी करते हैं ईंट, गारा, बालू उठाते हैं। एक दिन में अगर दो सौ रुपये मिलते हैं तो उसी से आटा, चावल, सब्जी खरीदते हैं। बिजली की व्यवस्था करने के लिए अतिरिक्त पैसा नहीं होता। मजबूरी में गर्मी में भी हम पन्नी की झोपड़ियों में रहते हैं। यहां लगभग 100 परिवार रहते हैं सभी अंधेरे में जीवन बिता रहे हैं। एक व्यक्ति धनीराम बिजली कनेक्शन कराया है वहीं से लकड़ी के बल्ली के सहारे करीब दो किलोमीटर दूर से तार खींचकर 10 घरों में बिजली चलती है बाकी सब अंधेरे में रहते हैं।”
जान को खतरा पर फिर भी मजबूरी
रामरती बताते हैं कि “अब एक आदमी ने बिजली का कनेक्शन कराया है वहीं से सरकारी बोरवेल भी चलाया जाता है। लेकिन लकड़ी के सहारे जो तार लाए हैं उसमें हर वक्त खतरा बना रहता है। बच्चे और जानवर अगर छू लें या टेक लगाएं तो दुर्घटना हो सकती है। लकड़ी की बल्लियां बारिश में सड़ जाती हैं करंट लगने का डर हर पल रहता है। गांव में करीब ढाई सौ लोग हैं अगर खंभे और तार लग जाएं तो सभी लोग बिजली का कनेक्शन ले सकते हैं। सबसे ज़्यादा दिक्कत गर्मी और बारिश में होती है।”
दबाई पुरवा निवासी पप्पू बताते हैं कि यह पुरवा तीन पीढ़ियों से बसा है लेकिन अब तक वहां बिजली नहीं पहुंच पाई है। उनका कहना था कि गर्मी में किसी तरह काम चल जाता है लेकिन बरसात के मौसम में हालत बेहद खराब हो जाती है। वे लोग जमीन पर सोते हैं और चूंकि यह जंगल से लगा गांव है इसलिए यहां बिच्छू, सांप, कीड़े-मकोड़े बहुत आते हैं। अंधेरे में कुछ दिखाई नहीं देता। उन्होंने बताया एक बार उनकी पत्नी घर के अंदर लेटी थी तभी सांप ने काट लिया। पता तक नहीं चला। थोड़ी देर में उसके मुंह से झाग निकलने लगा। उन्हें तुरंत ही हॉस्पिटल ले गए डॉक्टर ने बताया कि जहरीला सांप था। कुछ घंटे की देरी से उसकी मौत हो गई। यह सब सिर्फ अंधेरे के कारण हुआ। उनका आगे कहना था कि “जिनके पास पैसा है वह सोलर लाइट खरीद लेते हैं लेकिन उनके पास न पैसा है न कमाने वाला। कैसे खरीदें?”
लकड़ी के उजाले से घर में रौशनी
वहां की निवासी सुमित्रा बतलाती हैं कि अंधेरे में खाना बनाना सबसे बड़ी दिक्कत होती है। लकड़ी जंगल से तोड़कर लाते हैं उसी को जलाकर उजाला करते हैं और रात में खाना बनाते हैं। अगर घर पर मेहमान आ जाएं तो थाली में परोसना भी मुश्किल हो जाता है। लॉकडाउन के समय वहां के लोगों को कोई जानकारी नहीं थी। टीवी, मोबाइल सब बंद थे क्योंकि बिजली नहीं थी। शादियों में पंखा, टीवी, कूलर आता है, लेकिन बिना बिजली के बेकार पड़ा रहता है। बारात आती है तो किसी तरह एक दिन जनरेटर चला लेते हैं लेकिन शादियों में रस्में कई दिन चलती हैं बाकी समय फिर अंधेरे में ही गुज़ारा करना पड़ता है।”
बसंत की प्रशासन के प्रति नाराज़गी
बसंत नामक एक व्यक्ति से कहते हैं कि “हमारी उम्र बालू और पत्थर का काम करते-करते बीत गई लेकिन लगता है बिजली देखे बिना ही मर जाएंगे। जब सौभाग्य योजनाआई थी तब हमने प्रधान जी से कहा था लेकिन कुछ नहीं हुआ। हम आदिवासी समुदाय से हैं गरीब हैं शायद इसलिए कोई ध्यान नहीं देता। हमें लगता है शायद सरकार को लगता है हम वोट नहीं देते इसलिए विकास नहीं होता। अगर ऐसी ही स्थिति रही तो हमारे बच्चे कैसे पढ़ाई करेंगे आगे कैसे बढ़ेंगे?”
हर चुनाव में वादा होता है फिर कोई नहीं आता
गांव वालों ने बताया कि हर चुनाव में वे लोग मांग करते हैं कि लाइट लगवाई जाए, हर बार कहा जाता है हां लगवा देंगे लेकिन उसके बाद किसी की कोई खबर नहीं होती। बच्चे रात में पढ़ नहीं पाते, मोबाइल चार्ज नहीं हो पाता।
ग्राम प्रधान रामजतन कहते हैं कि “हिनौती तक बिजली पहुंची है, लेकिन जो पहाड़ी बस्ती और दबाई पुरवा हैं, वहां आज तक खंभे नहीं लगे। जब सौभाग्य योजना चल रही थी उस समय मैं प्रधान नहीं था। अगर मैं होता तो लगवाता। अब मैं हर साल जेई एसडीओ को एप्लीकेशन देता हूं।
अब इस इस साल गर्मी में सर्वे हुआ है उम्मीद है इस बार कुछ होगा। लखनपुर में कई पुरवे हैं जहां अभी भी बिजली के खंभे और तार नहीं लगे हैं।
एसडीओ अरुण सिंह बताते हैं जब सौभाग्य योजना के तहत खंभे लग रहे थे तब वे नियुक्त नहीं हुए थे और अब वे सक्रिय हैं। अगर अब किसी गांव या पुरवे में अभी तक खंभे नहीं लगे हैं तो अगली योजना में उसे जोड़ा जाएगा। कोई नियम नहीं है कि इतनी आबादी हो तभी लाइट लगे। जहां गांव बसा है वहां बिजली लगनी चाहिए। अगर लकड़ी के सहारे तार खींचे गए हैं तो यह खतरनाक है। आगे कहना था कि “हम सर्वे करवाकर जल्द व्यवस्था करेंगे।”
दरअसल लखनपुर गांव और उसके मजरे आज भी बिजली जैसी बुनियादी सुविधा से वंचित हैं। कुछ लोग जान की बाज़ी लगाकर लकड़ी के सहारे तार खींचकर बिजली चला रहे हैं बाकी गांव वाले अंधेरे में जीवन गुज़ार रहे हैं। अंधेरे की वजह से मौत, दुर्घटनाएं, शिक्षा में बाधा, सूचना से कटाव और गरीबी का चक्र और गहराता जा रहा है।
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