यूपी और एमपी में लगातार होते बालू खनन से नदियों का अस्तित्व खत्म होने को है। जिससे दशकों से चलती आ रही पानी की समस्या अब और भी ज़्यादा गहरा गयी है।
बांदा। आधा दर्जन सहायक नदियों को हरा-भरा करने वाली बागेन नदी खनिज संपदा के दोहन की वजह से अब बदहाल हो गई है। एक तरफ उसकी सहायक नदियों का अस्तित्व समाप्त होने की कगार पर है। वहीं मिनी पाठा में हमेशा अविरल बहने वाली बागेन नदी बदहाली के चलते अब एक नाले का रूप लेकर रह गई है।
मिनी पाठा को जीवन देने वाली बागेन नदी से बडार, कोइलाह, बानगंगा, कडैली, रंज नदी, पथरहाई आदि सहायक नदियां जुड़ी हुई हैं। जो पाठा की भूमि को हरा-भरा करने के साथ-साथ संपूर्ण खनिज संपदा से भी मालामाल करती थी। लेकिन लगभग एक दशक से बालू माफियों द्वारा किये जाने वाले अवैध खनन की वजह से आज बागेन नदी अपनी सहायक नदियों सहित दम तोड़ते हुए दिखाई दे रही है।
दो राज्यों को जोड़ती है बागेन नदी
बागेन नदी यूपी और एमपी को जोड़ती है। यह एमपी से लगभग 20 किलो मीटर का लंबा सफर तय करती है। फिर यह कालिंजर के ऐतिहासिक दुर्ग को चूमते हुए मशहूर गुढ्ढा के हनुमान मंदिर से होकर बदौसा, बबेरू के क्षेत्र को समेटती हुई औगासी के पास यमुना नदी में जा मिलती है।
नरैनी क्षेत्र के लोगों के अनुसार यह नदी लगभग 75 किलोमीटर के लंबे सफर में उससे जुड़ी सभी सहायक नदियां को अविरल धारा के रूप में इस जिलें और क्षेत्र में गुलजार करती थी। लेकिन बालू खनन के चलते आज यह इस कदर बदहाल हो गई है कि सहायक नदियां सिर्फ बरसात में ही बहती नजर आती है। वहीं बागेन नदी कई जगह जल धारा छोड़ने के साथ पतली धारा के रूप में बह रही है।
आज भी बहुमूल्य रत्न उगलती है ये नदी
क्षेत्रीय लोगों का कहना है कि बागेन नदी में आज भी बहुमूल्य खनिज संपदा के साथ-साथ हीरे आदि मिलते हैं। मध्य प्रदेश के कौहारी, ब्रजपुर के क्षेत्रों मे बागेन नदी के किनारे आज भी हीरे आदि खुदाई के दौरान पाए जाते हैं। गर्मी के दिनों में जब पानी का हाहाकार मचता था तो जंगली जीव-जंतु के साथ-साथ लोग भी नदी के पानी से ही अपनी प्यास बुझाते थे। संरक्षण के अभाव में आज यह नदी घाटों के कटाव व बढ़ते खरपतवार से जून में एक लकीर सी नजर आती है यानी अब नदी का फैलाव पहले की तरह नहीं रहा है।
इन नदियों के बालू की है सबसे ज़्यादा मांग
लोग कहते हैं कि बुंदेलखंड में लाल सोना उगलने वाली केन और बागेन नदी के बालू की मांग देशावर मंडियों में बहुत ज़्यादा है। इतनी ज़्यादा कि इनके आगे अन्य नदियों के बालू बेकार साबित हो रहे हैं। इन नदियों का बालू भवन निर्माण, जुड़ाई के काम और बड़ी-बड़ी इमारतों के निर्माण में होता है इसलिए इन नदियों के बालू के आगे सब फेल हैं।
बुंदेलखंड के बालू को क्यों बोलते हैं लाल सोना?
बुंदेलखंड की केन और भाग्य नदी का बालू लाल सोने के नाम से इसलिए मशहूर है क्योंकि इस तरह का बालू कहीं भी नजर नहीं आता। ना ही इन नदियों के जैसा बालू किसी भी अन्य नदियों में पाया जाता है। इन नदियों के बालू की कीमत बेहद ज़्यादा होती है। इसी वजह से इस जगह देश भर के बड़े-बड़े माफियाओं और कंपनियों की नज़रें टिकीं रहती हैं। आज बुंदेलखंड को बालू माफियों का अड्डा भी कहा जाता है।
खनन से दशकों से चलती आ रही पानी की कमी
यह बालू ट्रकों के माध्यम से लम्बे और दूर-दूर जगहों का सफर तय करते हैं। इसके आलावा लोग यहां पट्टा करवाते हैं। पट्टा रजिस्टर्ड भूमि होती है जिस पर लोग आधिकारिक तौर पर खनन करते हैं। पट्टे वाली जगह तो वह खनन करते ही हैं लेकिन इसके आलावा भी अवैध खनन ज़ोरों-शोरों से किया जाता है। जिससे उन्हें अच्छी खासी कीमत भी मिलती है। यही कारण है कि आज नदियों का अस्तित्व खत्म होने के निशान पर आ पहुंचा है। जिसका जीता-जागता उदाहरण बुंदेलखंड में दशकों से चली आ रही पानी की कमी है। पानी का अकाल इतना ज़्यादा है कि लोग आज भी बून्द-बूंद पानी के लिए तरसते नज़र आते हैं।
अवैध खनन में है अधिकारीयों की है मिली भगत
नदियों में मानक के विपरीत बड़ी-बड़ी पोकलेन मशीन द्वारा अवैध तौर पर खनन किया जाता है। नियमों का पालन तो बिल्कुल भी नहीं किया जाता। इसके साथ ही जो किसान नदी के किनारे खेती करते हैं। उनकी फसलें भी बर्बाद हो जाती है। बड़ी-बड़ी मशीनों को उनके खेतों के बीच से उनकी फसलों को कुचलते हुए लेकर जाया जाता है। यह लोग आवाज़ भी नहीं उठा पाते क्यूंकि बालू माफियों का इतना खौफ है कि जो भी उनके खिलाफ बोलता है। उन्हें अपनी जान गवानी पड़ती है। इसके साथ ही लोगों का यह भी आरोप है कि अवैध खनन में अधिकारीयों की मिली भगत होती है। इससे उनकी बहुत कमाई होती है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब नदियों का अस्तित्व पूरी तरह से ख़त्म हो जायेगा। फिर बुंदेलखंड को रेगिस्तान में बदलते देर नहीं लगेगी।
खनन माफियों को है अधिकारियों का साथ
बाँदा जनपद के पैलानी तहसील क्षेत्र के अंतर्गत खप्टिहा कलाँ के खण्ड संख्या 100/3 बालू खदान में अवैध खनन व ओवरलोड ट्रकों का आवागमन ज़ोरों के साथ चल रहा है। नदी की जलधारा को रोक कर पुल बनाया गया है। इसके साथ ही अवैध तरीके से नदी क्षतिग्रस्त कर मोरम निकाली जा रही है। जिससे जलीय जीवों की हत्या भी हो रही है।
आपको बता दें कि इस खदान के संचालक केंद्रीय जल आयोग व एनजीटी के नियमों को ताक में रखकर खनन का कार्य कर रहे हैं। लेकिन ग्रामीणों ने आरोप लगाया है कि प्रशासन की शह की वजह से इस खदान में अवैध खनन व ओवरलोड ट्रकों का परिवहन किया जा रहा है। ग्रामीणों ने यह भी आरोप लगाया कि उन लोगों ने कई बार प्रशासन को मामले के बारे में लिखित रूप से अवगत भी कराया। लेकिन इसके बावजूद भी अवैध खनन व ओवरलोड परिवहन का कार्य रुका नहीं बल्कि वह लगातार ज़ारी है।
सूत्रों के अनुसार यह भी बताया गया कि तहसील से लेकर जिले के अधिकारियों को हर महीने मोटी रकम दी जाती है। इसी वजह से अधिकारी खदान नहीं जाते। अधिकारियों द्वारा छापा पड़ने की लोकेशन भी माफियों को दी जाती है इसलिए बालू खनन माफ़िया बेपरवाह होकर खनन करते हैं।
कहाँ से आई केन नदी?
केन नदी का उद्गम जबलपुर (एमपी) के पहाड़ों से हुआ है। यह यूपी और एमपी के तमाम इलाकों से होते हुए 250 किलोमीटर का सफर तय करती है। फिर यह बांदा जनपद के चिल्ला में जाकर यमुना नदी में मिल जाती है। बताया जाता है कि केन की सहायक नदी उर्मिल है। एक समय था जब इन नदियों के ज़रिये बहुत ज्यादा सिंचाई हुआ करती थी। किसान खुशहाल रहा करते थे। लेकिन केन नदी में पानी कम होने के कारण उसकी सहायक नदी उर्मिल का अस्तित्व भी खतरे में है।
केन नहरों से होती है सिंचाई
बांदा जनपद में केन नदी से काफी बड़े स्तर पर सिंचाई होती है। सिंचाई विभाग द्वारा संचालित लगभग 1100 किलोमीटर लंबी छोटी-बड़ी नहरों को इस नदी से सिंचाई के लिए पानी मिलता है। बताया जाता है कि बांदा जनपद में लगभग 95 हज़ार हेक्टेयर क्षेत्रफल की सिंचाई केन नहरों से होती है। इसके अलावा मध्यप्रदेश के कुछ इलाके भी केन नदी से ही सिंचाई करते हैं। लेकिन खनन माफिया के कारण केन नदी का जलस्तर घटने से सिंचाई भी प्रभावित हो रही है या ये कहें की होती आ रही है।
खनन रोकने के लिए होता रहता है प्रदर्शन
फिलहाल इन नदियों के अस्तित्व को खतरे में देखते हुए किसान नेता कहीं ना कहीं हमेशा धरना आंदोलन और जल सत्याग्रह करते रहते हैं। वह खनन कार्यों को रोक लगाने की मांग भी करते रहते हैं। लेकिन आज तक उसका निवारण नहीं हो पाया। आगे भी होना मुश्किल नजर आ रहा है। जबकि कहते हैं कि सूरज ढलने के बाद खनन नहीं होना चाहिए। फिर भी अगर देखें तो रात में ही ज्यादातर खनन का काम होता है। रात भर ओवरलोडिंग ट्रक चलते हैं।
नदी के अस्तित्व के साथ लोगों का जीवन भी खतरें में
लोगों का यह भी कहना है कि अगर स्थिति में सुधार नहीं हुआ तो वह दिन दूर नहीं कि लोग चाय पीने के लिए भी पानी का मोहताज हो जाएंगे। अभी जो स्थिति है वह तो है ही। लेकिन इससे भी ज़्यादा जल संकट गहरा जाने का डर है। बड़े-बड़े लोग तो बिसलेरी का पानी बोतलों में लेकर पी लेंगे। लेकिन ग्रामीण क्षेत्र की गरीब जनता जिसका हर रोज का खाना कमाना है और नमक रोटी खा कर गुजारा करती है वह क्या करेगी? कैसे अपना जीवन गुज़ारेगी?
कहते हैं कि जल ही जीवन है तो अगर जल ही नहीं रहेगा तो लोगों का जीवन कैसे रहेगा? इन्हीं नदियों के अस्तित्व के साथ जो नदी किनारे बसे गांव हैं।खासकर वह गाँव और लोग जो नदियों से ही अपना जीवन यापन करते हैं। अब इसमें चाहें वह नाव चलाने वाले हों, सब्ज़ी लगाने वाले या छोटे मजदूर वर्ग के लोग, उनकी भी जिंदगी समाप्त हो जाएगी।
आज भी हजारों परिवार ऐसे हैं जो नदी के किनारे सब्ज़ी भाजी लगाकर ही अपना भरण-पोषण करते हैं। यह लोग आए दिन ओवरलोड ट्रकों और बालू माफियाओं का शिकार भी होते हैं। उनकी सब्ज़ी की फसलें खराब की जाती है। अगर वह लोग आवाज़ उठाते भी हैं तो उनकी आवाजों को दबाने के लिए कई तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं। यहां तक की नदियों में खनन के बीच गोलियां भी चल जाती हैं। फिर वह गरीब लोग अपनी आवाज़ को दबा कर चुपचाप जान बचाकर अपने घरों में बैठ जाते हैं। आखिर वह करें भी क्या, जब अधिकारी भी माफियाओं के साथ मिले हुए हैं?
शिकायत करने पर किसानो को बनाया जाता है दोषी
अगर हम पिछले एक महीने में हमारे (खबर लहरिया) द्वारा बालू माफिया पर की हुई रिपोर्टिंग की बात करें तो उसमें हमने यही पाया कि माफिया द्वारा उनके ताकत के दम पर लोगों को डराया-धमकाया जाता है। उदाहरण के लिए, बाँदा के नरैनी ब्लॉक के जमवारा ग्राम पंचायत के कई किसानों ने उनकी फसल बालू माफियों द्वारा बर्बाद किये जाने की शिकायत तहसील में की थी।
इसके पहले नरैनी ब्लॉक के ही ग्राम पंचायत के लोगों ने बालू माफियाओं द्वारा अवैध खनन को लेकर शिकायत की थी। जब लोगों ने इसकी आवाज़ उठाई तो वहां पर इस चीज को लेकर के गोलियां भी चली थी। जिसका मुकदमा भी उल्टे किसानों के ऊपर ही लिखा गया था। किसानो ने साफ तौर पर कहा था कि उनकी कोई गलती नहीं है। बालू माफियाओं द्वारा उनके खेतों से अवैध तरीके से खनन कर जबरन बालू निकाली जा रही है।
जब किसानों ने सब्ज़ी की फसल बर्बाद होने की शिकायत की थी और बताया था कि जब उन्होंने अपनी फसल बर्बाद होने का विरोध किया तो बालू माफियाओं द्वारा उन्हें किस तरह से धमकियां दी गई। इस पर खबर लहरिया नरैनी के तहसीलदार से भी बात की थी। उन्होंने कहा था कि वह इसकी जांच कर रहे हैं। जो जांच में दोषी पाया जाएगा उसके ऊपर कार्यवाही की जाएगी।
सवाल यह उठता है कि जब बुंदेलखंड में दशकों से पानी की समस्या चलती आ रही है। इसके साथ ही अवैध खनन से पानी का जलस्तर और कई नदियों का अस्तित्व गायब होने की कगार पर है। ऐसे में नदियों में हो रहे खनन को क्यों नहीं रोका जाता? अवैध खनन करने वाले बालू माफियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही क्यों नहीं की जाती? उन अधिकारीयों पर मुकदमा क्यों नहीं किया जाता जो अवैध कार्यों में साथ दे रहे हैं?
अधिकारी और बालू माफिया तो अपनी जेबें भर रहे हैं। लेकिन धरती अपनी खनिज संपदा और अपना अस्तित्व खोती जा रही है। इसका संरक्षण कौन करेगा? कहां गए खनिज विभाग के नियम और उसके कार्य, जिसके लिए उसे गठित किया गया है? अगर ऐसा चलता रहा तो धरती खोखली और प्यासी हो जायेगी। मानव का जीवनयापन करना और भी मुश्किल हो जाएगा। जीवन देने वाली नदियों के अस्तित्व के गायब होने के साथ-साथ मानव के जीवन पर भी संकट गहराता जाएगा पर लालसा से लिप्त मानव इस भाव के आस-पास भी नहीं है। जिसकी कीमत हर एक व्यक्ति को चुकानी पड़ेगी।
इस खबर की रिपोर्टिंग गीता देवी द्वारा की गयी है।
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