उत्तर प्रदेश में बेमौसम भारी बारिश के चलते कई जिलों में बाढ़ की स्थिति बनी हुई है। गंगा, यमुना और उनकी सहायक नदियां अभी उफान पर है।
इस साल मानसून ने भारत में समय से पहले दस्तक दे दी है लेकिन इस बार मानसून राहत के बजाय विनाश की तस्वीर लेकर आया है। यह विनाश इस बार उत्तर प्रदेश में हावी हो चुका है। उत्तर प्रदेश में बेमौसम भारी बारिश के चलते कई जिलों में बाढ़ की स्थिति बनी हुई है। गंगा, यमुना और उनकी सहायक नदियां अभी उफान पर है। कई गांवों का संपर्क कट गया है, लाखों लोग विस्थापित हो चुके हैं, कई लोगों की जानें भी गईं है। फसल, राशन, पैसे, घरेलू सामान और दुकानदारों का लाखों का नुक़सान भी हुआ है। जलवायु परिवर्तन की मार अब हर साल और भी गंभीर रूप से सामने आ रही है। भारी बारिश के कारण राज्य के 14 जिले अभी बाढ़ के चपेट में है जिससे लाखों लोग प्रभावित हुए हैं और उनका जीवन अस्त-व्यस्त हो चुका है।
प्रभावित 14 जिलें
प्रयागराज, चित्रकूट, बांदा, वाराणसी, कानपुर नगर, जालौन, औरैया, हमीरपुर, आगरा, मिर्जापुर, कानपुर देहात, बलिया, इटावा, फतेहपुर
बाढ़ से उत्तर प्रदेश बेहाल
वाराणसी, प्रयागराज, गाजीपुर, मिर्जापुर और बलिया जैसे जिलों में हालात बेहद गंभीर बने हुए हैं। गंगा नदी का जलस्तर लगातार बढ़ता जा रहा है और कई जगह खतरे के निशान को पार कर चुका है। वाराणसी में गंगा का पानी शहर के अंदरूनी इलाकों तक घुस गया है। बाढ़ आए स्थानों में खबर लहरिया द्वारा लगातार ग्राउंड रिपोर्टिंग किया गया है। इस साल की झलकियां –
– कल यानी 3 अगस्त 2025 वाराणसी जिले में गंगा और वरुणा नदी का जलस्तर तेजी से बढ़ता जा रहा है। रामचंदीपुर सहित लगभग 30 गांव बाढ़ की चपेट में आ गए हैं। सबसे ज्यादा नुकसान किसानों को हुआ है। चांदपुर, मुस्तफाबाद जैसे क्षेत्रों तक पानी पहुंच चुका है जिससे जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है।
– बीते दिनों 3 अगस्त 2025 को भारी बारिश के कारण बांदा के शंकरपुरवा गांव में बाढ़ से संबंधित रिपोर्टिंग से पता लगा कि बाढ़ के कारण अपने लोग घरों से बेघर हो गए हैं, उनका घर डूब चुका है ना खाने का सामान बचा है और ना ही रहने और सोने का। बाढ़ पीड़ितों के राहत के लिए प्रशासन की तरफ से राशन सामान बांटा गया। राशन सामान लोगों को मिला तो जरुर लेकिन सवाल है कितने दिनों के लिए क्योंकि कई लोगों का तो पानी से पूरा घर डूब गया है। भोजन की व्यवस्था तो की गई है लेकिन आधारकार्ड देखकर, जिनके पास आधारकार्ड है केवल उसे ही राहत का सामान मिल रहा है। परिवार के किसी भी एक व्यक्ति का आधारकार्ड होना अनिवार्य है जिससे राशन मदद की सभी संख्या सरकार के पास जा सके। इसमें भी सवाल यही दिखता है कि बाढ़ से लोगों की जानें नहीं बच पा रही है वो आधारकार्ड कैसे बचाके रख पायेंगे। इसका अर्थ यही देखा जा सकता है कि जिसके पास आधारकार्ड नहीं है वो बारिश के तबाही से भी परेशान हैं और भूख के मार से भी। बाढ़ के बाद लोग पन्नी छाकर रहने पर मजबूर हैं।
– बांदा के पदारथपुर में भी पानी से गांव घिर चुका है। गांव की सड़के भी बंद हो चुकी है। लोग कमर तक पानी में चलने को मजबूर हैं।
– 28 जुलाई 2025 को चित्रकूट के मानिकपूर के पाठा क्षेत्र में भी बाढ़ की समस्या देखने को मिली। पाठा क्षेत्र में एक नदी है जिसपे रपटा (पुल का छोटा रूप) बना हुआ है जो आसपास के कई गांव को जोड़ता है। ये गांव साल के आधा महीनों में एक-एक बूंद पानी के लिए तड़पते हैं क्यों की गर्मी में पानी का स्त्रोत ज़मीन के काफी नीचे चला जाता है। अब यहां इतने तेज बारिश हुई है और रपटा इतना ज़्यादा भर गया है कि लोग किसी भी काम के लिए एक गांव से दूसरे गांव नहीं जा पा रहे हैं। अपने घर से पांच से दस दिनों बाद बाहर निकल रहे हैं। मउ गुरदरी गांव की रहने वाली रेखा बतलाती हैं कि घर पर कुछ राशन सामान नहीं है नदी इतनी भरी हुई थी कि कहीं नहीं जा पा रहे थे और घर में बस नमक और रोटी खाकर कुछ दिन का गुज़ारा किए। हरिमोहन यादव बताते हैं कि वे चालीस किलोमीटर दूर से दूसरे गांव आए थे और रपटा में पानी के कारण फ़ंस गए, उन्होंने रपटा से अपनी गाड़ी पार करवाने के लिए पैसे भी दिए तब जाके गाड़ी पानी से पार हुई। कुछ लोगों के घर में बारिश के कारण चूल्हे भी नहीं जले।
– चित्रकूट के राजापुर तहसील अंतर्गत सरधुआ में लगातार बारिश से 45 घरों के लगभग 130 लोग प्रभावित हुए हैं प्रसाशन ने सरधुआ के कम्पोजिट विद्यालय में उन्हें रहने के लिए कहा है।
– 12 जुलाई 2025 को जो भारी बारिश हुई थी उस बारिश से चित्रकूट में भी भारी तबाही हुई थी। बारिश से कई घर ढह गया और दर्जनों घरों में लोग कैद होकर रह गए क्योंकि बारिश के कारण सभी रास्ता बंद हो गया था। चित्रकूट के रामघाट के व्यापारियों का लाखों का नुक़सान हुआ। वहां के व्यापारियों का आरोप था कि उन्हें प्रशासन की तरफ से किसी भी तरह की मदद नहीं मिल पाई। व्यापारी सूरज मिश्रा ने बताया कि बारिश का पानी उनके दुकान के अंदर तक भर गया था और सामान पानी के साथ बह गया जिसमें उन्हें आठ लाख का नुकसान हुआ। पारुल केसरवानी कहती हैं कि “बारिश से जान बचाने के अलावा सामान बचाने का मौका ही नहीं मिला।” रामसुंदर शिवहरे ने बताया कि बारिश से ज़्यादा पास के घाटी में पानी भरा हुआ था और जब घाटी भरता है तो उसी का पानी सबकुछ बहा ले जाता है।
– चित्रकूट के कर्वी क्षेत्र के तरौंहा रोड पर भारी बारिश ने गरीबों की ज़िंदगी उजाड़ दी। 12 जुलाई 2025 को हुई बारिश ने यहां भी तबाही मचाई थी। 12 जुलाई की बारिश में जगदेव दास अखाड़ा के पास कुशवाहा समाज के पांच कच्चे घर गिर गए। आज ये परिवार बिना छत के, तपती गर्मी, उमस, और कभी बारिश तो कभी धूप में जीवन बिताने को मजबूर हैं। तरौंहा के रहने वाले यशवंत कुशवाहा ने बताया कि उनका घर तो टूटा ही उन्होंने जो खेती की वो सारा फसल पानी में डूब गया। वे भोजन के लिए अनाज के अलावा कुछ नहीं बचा पाए। गांव की पनिया (ग्रामीण महिला) कहती हैं कि बारिश में आटा, तवा और चिमटा के अलावा उनके पास कुछ भी नहीं बचा है सब कुछ पानी में बह गया। उनका कहना था कि उनके मदद के लिए कोई भी नहीं पहुंचा। यहां पांच परिवार खुले आसमान के नीचे रह रहे हैं।
बता दें हाल ही में आई हिंदुस्तान के रिपोर्ट के अनुसार भारी बारिश के कारण उत्तर प्रदेश कुछ इलाक़ों से 17 लोगों की जान भी चली गई है।
खबर लहरिया टीम के द्वारा कई जगहों में बाढ़ से संबंधित ग्राउंड रिपोर्टिंग की गई है। ऊपर जो बताया गया है वो रिपोर्टिंग के बस कुछ ही हिस्से हैं। ग्राउंड रिपोर्टिंग से ये पता लगता है कि बाढ़ की तबाही कितने लोगों के जीवन को अपने साथ डूबा ले जा रही है। ये भी ध्यान देने वाली बात है कि ये वही लोग हैं जो मेहनत मज़दूरी कर दो वक्त की रोटी खाते हैं, किसानी करते हैं। इसमें ज़्यादातर लोग माध्यम वर्ग गरीब तपके के ही लोग हैं।
बुंदेलखंड: जहां सूखे में भी डूब रहा है जीवन
बुंदेलखंड हमेशा से पानी की किल्लत से जूझता रहा है। गर्मियों में यहां के गांवों में बूंद-बूंद पानी के लिए महिलाएं कई किलोमीटर पैदल चलती हैं। गर्मियों में पानी की कमी के कारण फसलें खराब हो जाती हैं, ज़मीन पर दरारें पड़ जाते हैं लेकिन मानसून के दौरान वही इलाका बाढ़ से घिर जाता है।
इस साल बारिश इतनी अधिक और अनियमित रही कि कई खेत बह गए, घर उजड़ गए, और ग्रामीणों को पन्नियों और टीन की छतों वाले अस्थायी टेंटों में शरण लेनी पड़ी। कई किसानों की फसलें नष्ट हो गईं और लाखों का नुकसान हुआ। इस प्राकृतिक आपदा में कई लोगों की जान भी गई, लेकिन प्रशासन की ओर से समय पर राहत नहीं मिल सकी। यह जलवायु वरिवर्तन का ही हिस्सा है। जलवायु वरिवर्तन के इस मार को उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाक़ों जैसे बुंदेलखंड, बांदा आदि के लोगों को सबसे ज़्यादा झेलना पड़ता है। जलवायु वरिवर्तन का ऐसी स्थिति लोगों के जीवन को गंभीर रूप से प्रभावित करती है। अब पहले ये जानते हैं क्या है जलवायु परिवर्तन और ये होता क्यों है।
क्या कहता है विज्ञान
भारतीय मौसम विभाग (IMD,आईएमडी) और वैश्विक पर्यावरण रिपोर्टों की मानें तो जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून चक्र पहले से कई अधिक अनियमित और तीव्र हो गया है। ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है जिससे समुद्र का तापमान बड़ रहा है। नतीजा यह हो रहा है कि बारिश की तीव्रता अधिक हो रही है और कभी-कभी एक दिन में पूरे महीने जितनी बारिश हो रही है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु संकट अब चेतावनी का नहीं बल्कि आपातकाल का विषय बन चुका है।
जलवायु परिवर्तन का बाढ़ से रिश्ता
जलवायु परिवर्तन का अर्थ है धरती के मौसम और तापमान में लंबे समय तक धीरे-धीरे बदलाव होना। ये बदलाव अब पहले से कहीं ज़्यादा तेज और ख़तरनाक हो गया है, और इसका बड़ा कारण है मानव गतिविधियेन। जब कार फ़ैक्ट्री, एयर कंडीशनर, थर्मल प्लांट जैसे कोयला, डीजल, पेट्रोल जलता है तो उससे कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) और अन्य गैसें निकलती हैं। इन गैसों को ग्रीनहाउस गैस कहते हैं। ये गैस वातावरण में जमा होकर एक कम्बल की तरह काम करती हैं जो सूर्य की गर्मी को धरती से बाहर नहीं जाने देती। इससे धरती का औसत तापमान लगातार बढ़ रहा है। इसे ही ग्लोबल वॉर्मिंग कहते हैं। इसमें ये सोचने वाली बात है कि ज़्यादातर बड़ी-बड़ी गाड़ियां और एयर कंडीशनर, थर्मल प्लांट जैसे कोयला ये सभी कुछ इस्तेमाल किसके द्वारा किया जाता है और इसकी सजा किसे भुगतना पड़ता है।
जब वातावरण गरम होता है तो समुद्रों और नदियों से ज़्यादा पानी भाप बनकर ऊपर उठता है जिससे हवा में नमी बढ़ जाती है। इस बढ़ी हुई नमी के कारण जब बारिश होती है तो वो सामान्य से कई गुना ज्यादा और अचानक होती है। इसे ही अतिवृष्टि (Cloudburst या Extreme Rainfall) कहते हैं। इस तरह की बारिश ज़्यादातर कुछ ही घंटों या एक-दो दिनों में होती है जिससे, नदियां उफान पर आ जाती हैं, जल निकासी की व्यवस्था फेल हो जाती है, खेत डूब जाते हैं और शहरों में जलभराव और गांवों में बाढ़ आ जाती है।
जलवायु परिवर्तन के कारण अब बारिश का समय भी बदल गया है। पहले जो बारिश जून-जुलाई में होती थी अब वह मई में शुरू हो जाती है या अगस्त-सितंबर तक खिंच जाती है।
कई बार ऐसा होता है कि एक ही जगह कई हफ्तों तक बारिश नहीं होती फिर अचानक बहुत भारी बारिश हो जाती है। इससे एक तरफ कहीं बाढ़ तो दूसरी तरफ कहीं सूखा जैसी स्थिति बनती है जैसे बुंदेलखंड में हुआ।
जलवायु परिवर्तन का कारण
जलवायु परिवर्तन का कुछ कारण हमने ऊपर देखा जैसे कार, फ़ैक्ट्री, एयर कंडीशनर, थर्मल प्लांट जैसे कोयला आदि। जलवायु का दूसरा सबसे बड़ा कारण है तेजी से करोड़ों के मात्रा में वनों की कटाई। वनों की अंधाधुंध कटाई ने भूमि की जल अवशोषण क्षमता को कम कर दिया है। इससे न केवल गर्मियों में पानी की कमी हो रही है बल्कि बारिश के समय बाढ़ की तीव्रता भी बढ़ गई है।
उदाहरण में छत्तीसगढ़ हसदेव जंगल जिसे भारत का फेफड़ा कहा जाता है, हसदेव जंगल पूरे भारत को पानी और ऑक्सीजन देता है लेकिन हसदेव जंगल जैसे कितने राज्यों में पेड़ों की कटाई जारी है जिसका असर बेमौसम बारिश में दिखने लगा है। पेड़ काटने से मिट्टी से बंधाव कम होती है भूस्खलन होता है। जब हर साल के बरसात की कहानी और खबरे वही ही है फिर भी हर साल यह सवाल भी सामने आ खड़ा होता है कि विगत कुछ सालों में बढ़े ऐसी प्राकृतिक विनाश का कारण क्या है? और क्या इसे रोका नहीं जा सकता? वहीं दूसरी ओर नदियों पर बने बड़े-बड़े बांध, जिनका उद्देश्य सिंचाई और जल नियंत्रण होना चाहिए था आज कई बार विनाश के कारक बन रहे हैं। इसी तरह बुंदेलखंड में भी एक्सप्रेसवे का निर्माण के लिए लगभग 1 लाख 90 पेड़ों को काटा गया। इतना ही नहीं केन, यमुना और बागे जैसी बुंदेलखंड की तमाम छोटी बड़ी नदियां से बालू निकालने के लिए पोकलैंड मशीनों का इस्तेमाल जारी है, जिससे न केवल नदी का अस्तित्व खतरे में पड़ रहा है, बल्कि नदियों और पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव का भी कोई ठोस आंकलन नहीं किया जा रहा।
दूसरी तरफ कुछ ऐसे भी लोग हैं जो अपने जंगल के लिए और वनों की कटाई के लिए लड़ तो रहे हैं साथ ही वे पेड़ लगाने का भी काम कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के ग्रामीण इलाके को कोयला खदानों ने घेर लिया है। जिसके विरोध में ग्रामीण कई साल से संघर्ष कर रहे हैं और लड़ रहे हैं। इसी के साथ वे पर्यावरण को बचाने के लिए गांव में समूहिकता के साथ हर साल पेड़ लगाते हैं और उसे उतने ही ध्यान से बड़े भी करते हैं। ते लोग भी मेहनतकश मज़दूर और किसान आदिवासी लोग हैं जो अपने जंगल और वनों को बचाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं।
अनियंत्रित शहरीकरण भी जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण है। अनियंत्रित शहरीकरण यानी बिना योजना के शहरों का फैलना भी जलवायु परिवर्तन का एक बड़ा कारण है। जब नए शहर बसते हैं तो पेड़ काट दिए जाते हैं खेत और जलस्रोतों को पाटकर इमारतें बना दी जाती हैं। इससे वातावरण में गर्मी बढ़ती है क्योंकि पेड़ कार्बन डाइऑक्साइड को सोखते हैं और जब पेड़ नहीं रहते तो ये गैसें बढ़कर धरती को और गरम कर देती हैं। शहरों में ज़्यादा गाड़ियां और फैक्ट्रियां होती हैं जो धुआं छोड़ती हैं इससे हवा और ज़्यादा खराब होती है। कंक्रीट की ज़मीन धूप की गर्मी को सोखकर बाहर नहीं निकलने देती जिससे शहर बहुत गरम हो जाते हैं। साथ ही नालियां और जल निकासी के रास्ते बंद हो जाते हैं जिससे हल्की बारिश में भी शहरों में पानी भर जाता है। यही सब मिलकर मौसम को और बिगाड़ता है और बाढ़, सूखा और तेज़ गर्मी जैसी समस्याएं पैदा करता है।
इन जिलों के लिए विशेष अलर्ट जारी
इन जिलों में भारी बारिश के साथ-साथ बिजली गिरने और तेज हवाओं का खतरा है।
पूर्वी उत्तर प्रदेश: सोनभद्र, मिर्जापुर, चंदौली, वाराणसी, भदोही, जौनपुर, गाजीपुर, आजमगढ़, मऊ, बलिया, देवरिया, गोरखपुर, संत कबीर नगर, कुशीनगर, अम्बेडकर नगर
पश्चिमी उत्तर प्रदेश: मुरादाबाद, संभल, हरदोई, सीतापुर, बाराबंकी, बहराइच, गोंडा, श्रावस्ती, लखीमपुर खीरी, सहारनपुर, मेरठ, मध्य उत्तर प्रदेश: लखनऊ, कानपुर, कासगंज, हाथरस
हर साल बाढ़ आती है लोग मरते हैं, घर उजड़ते हैं, फसलें बह जाती हैं और फिर सब चुप हो जाता है जब तक अगली तबाही न आ जाए। सवाल यह है कि क्या यह सब सिर्फ “कुदरत का कहर” है या हमारी नीतियों विकास की गलत दिशा और लापरवाहियों का नतीजा? जलवायु परिवर्तन अब कोई भविष्य की बात नहीं बल्कि आज की सच्चाई है और इसका असर सबसे ज़्यादा उन गरीब और मेहनतकश लोगों पर पड़ रहा है जिनका इसमें कोई दोष भी नहीं। सरकार प्रशासन को इस बाढ़ से बचने के उपाय और जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए जिम्मेदारी और पहल लेने की जरुरत है वरना अगली बाढ़ में सिर्फ खेत या घर नहीं आने वाल भविष्य भी बह जाएगा।
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