यूपी में काफ़ी समय से प्रधानमंत्री आवास योजना चल रही है। इसके बावजूद भी अभी तक पात्र लोगों को आवास नहीं मिले हैं। आवास की चाह में ग्रामीण लोग अधिकारीयों के दफ्तरों के चक्कर लगाकर थक गए पर उनकी सुनवाई की जगह सामने से सिर्फ आश्वाशन दिया जाता है।
प्रधानमंत्री आवास योजना की शुरुआत साल 2015 में हुई थी। इस योजना का मुख्य उद्देश्य हर घर को छत देना था। जिससे की जो गरीब परिवार झुग्गी-झोपड़ी और कच्चे टूटे-फूटे घरों में रहते हैं वह अपना खुद का आवास बना सकें। योजना का लक्ष्य था कि साल 2022 तक सभी को उनके आवास मिल जाएंगे।
लेकिन अगर ग्रामीण क्षेत्रों की बात की जाये तो सभी को कागज़ी रिकार्ड्स में घर मिल गए हैं। वहीं अगर हम आपको आंखों देखा हाल बताए तो ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाली अधिकतर आबादी इस समय कच्ची झुग्गी-झोपड़ियों और पन्नी के घरों रह रही है। ऐसा नहीं है कि यह लोग पात्र नहीं है लेकिन आवास ना होने के कारण पन्नी डालकर रहना उनकी मज़बूरी है।
आज हम आपके साथ यूपी के दो जिलें चित्रकूट और बांदा में चल रही प्रधानमंत्री आवास योजना पर रोशनी डालेंगे। जिसमें खबर लहरिया ने अपनी रिपोर्टिंग के दौरान यह पाया कि किस तरह से पात्र लोग आवास के लिए भटक रहे हैं। वहीं अधिकारी द्वारा हर बार आश्वासन देकर अपनी ज़िम्मेदारी से मुंह मोड़ लिया जाता है।
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बांदा : पात्रों को नहीं मिला आवास
बांदा जिले की बात करें तो बहुत से लोग आवास के पात्र होने के बाद भी पन्नी के घरों में रह रहे हैं। इनके पास एक बिस्वा ज़मीन भी नहीं है। मज़दूरी करके उनके परिवारों का पेट पलता है लेकिन वह इतना भी नहीं कमा पातें कि वह अपने सर को ढकने के लिए छत बनवा सकें।
बांदा जिले के नरैनी ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले रगौली भटपुरा ग्राम पंचायत के मजरा महाराजपुर के लोगों ने बताया कि उनके यहां 400 वोटर हैं। जिनमें से लगभग 10 से 15 लोगों को ही प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ मिला है। जबकि कई पात्र लोग कच्चे और टूटे घरों में रहने के लिए मजबूर है। आज भी अधिकतर लोग इस योजना से वंचित है तो ऐसे में यह सवाल आता है कि आखिर साल 2022 तक सबको आवास मिलने का लक्ष्य पूरा हो भी पाता है या नहीं?
आवास न होने से ग्रामीणों को होती परेशानियां
महाराजपुर की रहने वाली महिला फूल देवी बताती हैं कि वह भूमिहीन है। उनके पास टूटा-फूटा मकान है उसी में वह रहती हैं। परिवार के भरण-पोषण के लिए बच्चे परदेश चले जाते हैं और वहीं से कमाकर लाते हैं तो उसी से पेट की भूख मिटती है।
वह कहती हैं, ‘ कई बारी प्रधान से प्रधानमंत्री आवास की मांग की ताकि सिर लुकआने के लिए अच्छा हो जाए लेकिन अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई है।’ जबकि उनके ग्राम पंचायत का प्रधान दूसरी बार भी प्रधान बन चुका है। कहने पर सिर्फ आश्वासन दिया जाता है।
रगौली भटपुरा के बबलू बताते हैं कि उसका पूरा घर गिरा हुआ है। आगे एक कमरा है जो बहुत सालों पहले उसके पिता के नाम जो 25 हज़ार की कॉलोनी आई थी तो उस समय उसके पिता ने बनवाया था। वह भी अब टूटने-फूटने लगा है। उसी कमरे में वह किसी तरह से बसर करता है। माँ नहीं है लेकिन पिता है। पिता को अकेले छोड़ बाहर मज़दूरी के लिए भी नहीं जा सकता। इसी वजह से वह पन्नी डालकर किसी तरह से एक कमरे में अपना गुज़ारा कर रहा है।
बबलू का कहना है कि अगर वह प्रधान से बार-बार आवास की मांग करता है तो प्रधान कहता है कि उसे आवास मिल चुका है। वह आगे कहता है कि जिसके पास पैसा है सिर्फ उसे ही आवास दिया जाता है।
इसी तरह से महुआ ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले ग्राम पंचायत के मजरा मूंगूस पुरवा की रामावती बताती है कि वह बहुत ही गरीब हैं। झोपड़ी में रहकर किसी तरह से बसर कर रही हैं। लेकिन ना तो उन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ मिला है और ना ही उनके पास राशन कार्ड है जिससे कि उन्हें पेट भरने के लिए राशन भी मिल सके। उन्होंने कई बार आवास के लिए आवेदन भी किया। उसमें लगभग 300 रुपये भी ख़र्च किये लेकिन कुछ नहीं हुआ।
पात्रों को दिया गया है आवास – प्रधान
रगौली भटपुरा के प्रधान रन्नो का कहना है कि जितने आवास उनको ब्लॉक स्तर से मिलते हैं वह पात्र लोगों को ही दिए जाते हैं। उनकी यही कोशिश है कि जिस तरह से जनता ने उनका साथ दिया है उसी तरह वह उनका सहयोग करें और कोई भी पात्र व्यक्ति ना छूटे।
लेकिन यहां सवाल यह है कि अगर पात्र लोगो को आवास दिए जा रहें हैं और दिए गए हैं तो वह पन्नी के घरों में रहने के लिए क्यों मज़बूर हैं? वह ऐसा क्यों कह रहे हैं कि उन्हें आवास नहीं मिले?
अधिकतर लोगों को मिल चुके हैं आवास – बीडियो
इस मामले में खबर लहरिया ने नरैनी ब्लॉक के बीडीओ मनोज कुमार सिंह से बात की। उनका कहना है कि नरैनी ब्लॉक के अंतर्गत 82 ग्राम पंचायते हैं। सभी ग्राम पंचायतों को मिलाकर लगभग 3000 आवास से ऊपर दिए जा चुके हैं। इनमें से ज़्यादातर आवास पूरे भी हो गये हैं। कुछ अधूरे हैं उन्हें पूरा कराने की कोशिश की जा रही है। जो पात्र लोग रह गये हैं और सर्वे की सूची में उनका नाम है उनको भी आवास दिए जाएंगे।
अगर सबको आवास दिए गए हैं तो वह दिख क्यों नहीं रहे? बाकी के पात्र लोगों को कब तक आवास दिए जाएंगे और कब उनके आवास बनेंगे?
चित्रकूट : हम आवास बनाते हैं, वन विभाग गिरा देता है
खबर लहरिया की जुलाई 2021 की रिपोर्ट के अनुसार जिला चित्रकूट ब्लॉक मानिकपुर गांव मड़ैयन का पुरवा भैरमपुर के रहने वाले लोगों को सरकारी योजना का लाभ नहीं मिल रहा है। वह कहते हैं कि बारिश के समय उन्हें जंगल से लकड़ी लाने में बहुत दिक्कत होती है। जब वह जंगल में लकड़ी काटने जाते हैं तो वन विभाग के लोग उन्हें धमकी देते हैं कि वह सरकारी ज़मीन से लकड़ी नहीं काट सकते।
परिवारों को होती परेशानियां
गांव मड़ैयन की राजू देवी कहती हैं कि जंगल की ज़मीन पर घर बनाते हैं तो वन विभाग वाले गिरा देते हैं। सरकार ने भी उन्हें आवास नहीं दिए हैं। वह घर गिरा देते हैं तो दुःख तो होता है। लेकिन वह दोबारा फिर किसी और जगह घर बनाते हैं। विभाग द्वारा फिर से उनके घरों को गिरा दिया जाता है। जंगल की ज़मीन पर घर बनाने के अलावा उनके पास और कोई रास्ता भी नहीं है।
सुनीता कहती हैं कि जब उनके बच्चे छोटे थे तब से वह सरकारी आवास की मांग कर रही हैं। अब उनके बच्चे भी बड़े हो गए लेकिन उन्हें आवास नहीं मिला।
लोगों का कहना है कि वह कहां जाएं। वह लोग तो यहीं के निवासी है। न उनके पास ज़मीन है और न ही घर। उनकी सरकार से मांग है कि उन्हें भी व्यवस्था दी जाए।
सबको मिलेगी जगह – प्रधान
गाँव मड़ैयन के वर्तमान प्रधान मोतीलाल के बेटे रिपु सुधम सिंह से फोन पर हुई बातचीत के अनुसार उनका कहना था कि “सभी लोगों को लाभ मिलेगा। हम जांच करा के उन्हें रहने के लिए सरकारी जगह देंगे। ”
सबको मिलेगा लाभ – सचिव
खबर लहरिया ने इस मामले में मानिकपुर के सचिव अनूप मिश्रा से भी बात की। वह कहते हैं कि जिन्हें सरकारी योजना का लाभ नहीं मिला उन्हें लाभ मिलेगा। जिनके पास शौचालय और आवास नहीं है उनकी एक लिस्ट बनाकर आगे दी जायेगी। वह आगे कहते हैं कि लोग उन्हें आधार कार्ड और पहचान पत्र दें। जिनकी ज़मीन को लेकर दिक्कत है वह गाँव के प्रधान से बात करके इसका समाधान करेंगे। वह कोशिश कर रहे हैं कि सभी को सरकारी योजना का लाभ मिलें।
आवास एक व्यक्ति को सुरक्षा प्रदान करता है। सरकार देश की जनता को हर चुनावी वादों में सुरक्षा देने का वचन देती है। लेकिन वह उन्हें आवास तक देने में भी असफ़ल रही है। सरकार आने वाले साल तक सभी आवास के पात्र के लोगों को आवास मुहैया कराने की बात करती है। साल खत्म होने में कुछ ही महीने बाकी है। देखा जाए तो जिन्हें आवास मिले हैं उनकी संख्या सिर्फ रिकार्ड्स में ज़्यादा है। धरातल पर देखें तो आवास न मिलने वालों की संख्या कागज़ी रिकार्ड्स से भी ज़्यादा है। कहाँ गयी सरकार की सुरक्षा की बातें जहां आज भी आदिवासी परिवार जंगलो में आवास न होने की वजह से बसर कर रहे हैं? कहाँ गए वे अधिकारी जो यह कहते हैं कि सबको आवास मिल गए हैं? जबकि आज भी कई ग्रामीण और आदिवासी परिवार आवास की आस में भटक रहे हैं।
इस खबर की रिपोर्टिंग गीता देवी व सहोदरा देवी द्वारा की गयी है।
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