खबर लहरिया जिला यूपी बोर्ड रिज़ल्ट: नंबर तो हमारे ज़माने में आते थे। देखिये राजनीति, रस, राय

यूपी बोर्ड रिज़ल्ट: नंबर तो हमारे ज़माने में आते थे। देखिये राजनीति, रस, राय

नमस्कार दोस्तों, मैं हूँ मीरा देवी, खबर लहरिया की ब्यूरो चीफ। मेरे शो राजनीति रस राय में आपका बहुत बहुत स्वागत है। मैं फिर हाज़िर हूँ आप सबके साथ राजनीतिक चर्चा करने के लिए। सबसे पहले तो ये बताइये कैसे रहा आपके बच्चों, भाइयों, बहनों का बोर्ड रिजल्ट। मेरे घर परिवार दोस्तो के बच्चों का भी रिजल्ट आया है। मेरे जानने में इस रिजल्ट से बहुत सारे बच्चे खुश नहीं हैं लेकिन कुछ बच्चे तो बहुत खुश हैं। जाहिर सी बात है जिनके नम्बर 80 या 90 प्लस हैं वह बच्चे खुश हैं और इससे कम वाले दुखित नाराज़ और असंतुष्ट भी।

30 और 31 जुलाई को यूपी बोर्ड के रिजल्ट घोषित हो गए। आपको तो पता ही है न कि इस साल रिजल्ट किस तरह बनाया गया है। उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव और कोरोना वायरस महामारी के कारण, बोर्ड ने 10 और 12 कक्षा की परीक्षा स्थगित करने का निर्णय लिया था। साथ ही यूपी सरकार ने ऐलान किया था कि 50, 50 प्रतिशत नम्बर के आधार पर रिजल्ट बनेगा। मान लीजिये कक्षा दस की बात करें तो 50 प्रतिशत कक्षा 9 और पचास प्रतिशत कक्षा दस की अर्धवार्षिक परीक्षा के नम्बर मिलाकर रिजल्ट तैयार किया गया और इसीतरह 12 का रिजल्ट कक्षा 11 के 50 प्रतिशत नम्बर और 12वीं के अर्धवार्षिक परीक्षा के नम्बर। ऐसे में जाहिर सी बात है कि सारे नम्बर स्कूल से ही मिलें हैं। किसी बाहरी शिक्षक या एक्ज़ामनर से मार्क्स नहीं मिले हैं।

ऐसे में बच्चों के साथ भेदभाव खूब किया गया है। इसलिए कि स्कूल और कक्षा में कुछ बच्चे अध्यापकों के चहेते होते हैं और बहुत सारे स्कूल के स्टाफ के बच्चे भी। कुछ बच्चे टीचरों द्वारा खोली गई कोचिंग सेंटर में कोचिंग जाते हैं किसी दूसरी की कोचिंग नहीं जाते उनको भी टीचर नम्बर देंगे ही। कुछ भेदभाव यहां पर जाति आधारित भी होता है। अब ऐसे में बच्चों को नम्बर भी उसी तरह से मिले होंगें। मतलब कि चहेते, कोचिंग वाले और स्टाफ के बच्चों को तो नम्बर मिलना ही मिलना है। मैंने एक अपनी दोस्त के बच्चे के स्कूल के सभी बच्चों का रिजल्ट देखी और उसके आधार से ही बता रही हूँ कि सबसे बड़ी राजनीति यही हुई है।

अपने समय की बात बताऊं आज से बीस साल पहले कि जिस दिन बोर्ड पेपर का पहला प्रश्नपत्र मिला था भरोसा था अपने ऊपर लेकिन दुनिया भर के देवी देवता याद आ रहे थे। सारे पेपर देने के बाद रिजल्ट का बेसब्री से इंतजार था। रिजल्ट आने के दो दिन पहले से नींद नहीं आई। खाना नहीं खाया। मिनट, मिनट पहाड़ लग रहे थे। जब रिजल्ट आया तो मानो पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई हो। सब टीचर बहुत खुश थे। उस कॉलेज में अब तक मैं ऐसी पहली छात्रा थी जो पहली बार फस्ट रैंक में आयी थी। सच बताऊं छह महीने पहले से रातदिन एक कर दिए थे पढ़ाई में। रात भर दिए का धुआं नाक और मुंह से सुबह निकलता था। जब जाकर इतना प्रतिशत बन पाया था। और आज कल देखो, सबका सब 80 प्रतिशत प्लस रिजल्ट आता है।

यही नहीं एक और बड़ी राजनीति हुई है यह कि जो स्कूल हमेशा से टॉप में रहते हैं। जैसे स्कूल अंग्रेजी माध्यम के होते हैं या फिर किसी नामित व्यक्ति का स्कूल होता है उन स्कूलों के टीचर मैनेजमेंट ने इस बात का बखूबी ख्याल रखा और दे दिए हाई-फाई नम्बर। इतना अच्छा मौका जो मिला था तो उससे क्यों चूकते और आ गए टॉप स्कूल के टॉप बच्चों के टॉप रिजल्ट। ये दिखावा, खुद के साथ धोखा नहीं है? बच्चों के माता-पिता से धोखा नहीं है? क्यों जानबूझकर अंधे, बहरे, लूले, लंगडे बन रहे हैं? ऊपर से सोशल मीडिया पर रिजल्ट के बारे में बताकर वाहवाही ले रहे हैं। ये तो हद हो गई।

साथियों इन्हीं विचारों के साथ मैं लेती हूं विदा, अगली बार फिर आउंगी एक नए मुद्दे के साथ। अगर ये चर्चा पसन्द आई हो तो अपने दोस्तों के साथ शेयर करें। लाइक और कमेंट करें। अगर आप हमारे चैनल पर नए हैं तो चैनल को सब्सक्राइब जरूर करें। बेल आइकॉन दबाना बिल्कुल न भूलें ताकि सबसे पहले हर वीडियो का नोटिफिकेशन आप तक सबसे पहले पहुंचे। अभी के लिए बस इतना ही, सबको नमस्कार!

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