उत्तर प्रदेश, जिला बांदा में लगभग 3 साल की मासूम लड़की के बलात्कार और हत्या के मामले में आरोपी सुनील निषाद के घर पहले बुल्डोजर चला और कल 8 सितंबर को फास्ट-ट्रैक कोर्ट ने लगभग 58 दिन की सुनवाई के बाद मृत्यु दंड की सज़ा सुनाई है।
लेखन – गीता
उत्तर प्रदेश, जिला बांदा। यहां के चिल्ला थाना अन्तर्गत आने वाले एक गांव में लगभग 3 साल की मासूम लड़की के बलात्कार और हत्या के मामले में आरोपी सुनील निषाद के घर पहले बुल्डोजर चला और कल 8 सितंबर को फास्ट-ट्रैक कोर्ट ने लगभग 58 दिन की सुनवाई के बाद मृत्यु दंड की सज़ा सुनाई है। साथ ही 65 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया। कोर्ट के इस फैसले से मृतक के परिवार और पूरे इलाके में न्याय की उम्मीद भी जगी है लेकिन क्या मृत्यु दंड और बुल्डोजर की कार्रवाई ही अपराधियों को रोकने का सही तरीका है, ये एक बड़ा सवाल है?
विशेष अदालत में था केश
एक ओर समाचार पत्रों के अनुसार विशेष अदालत (पॉक्सो) के शासकीय अधिवक्ता विजय बहादुर सिंह परिहार ने बताया कि “पॉक्सो न्यायालय के न्यायाधीश प्रदीप कुमार मिश्रा ने तीन साल की बच्ची से बलात्कार और हत्या के आरोपी सुनील निषाद (24) साल को दोषी ठहराया। अदालत ने सोमवार 8 सितंबर 2025 को उसे मृत्युदंड की सज़ा सुनाई और 65 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया। उन्होंने बताया कि फैसले में न्यायाधीश प्रदीप कुमार मिश्रा ने कहा कि ऐसे जघन्य अपराध करने वाले को किसी भी तरह की छूट नहीं दी जा सकती। फैसला सुनाने के बाद उन्होंने अपनी कलम की निब तोड़ दी। यह न्याय की कठोरता और अपराध के प्रति अदालत की सख़्ती को दर्शाता है।” इस मामले में मृतक पक्ष की ओर से अदालत में 11 गवाह पेश किए गए थे। घटना के केवल 58वें दिन अदालत ने अपना फैसला सुना दिया।
वहीं दूसरी ओर दोषी सुनील निषाद ने खुद को बेगुनाह बताते हुए कहा कि उसे फंसाया गया है।
घटना के समय मां थी सोवर में
मृतक लड़की के पड़ोसी, जो रिश्ते में उसके बाबा लगते हैं, के अनुसार उसी समय लड़की की मां की डिलेवरी हुई थी और वह सोवर में पड़ी थीं। 3 जून 2025 को लड़की बाहर खेल रही थी। तभी पड़ोसी सुनील निषाद ने उसे खाने-पीने का लालच देकर अगवा कर लिया और अपने घर ले जाकर उसके साथ बलात्कार किया। इसके बाद उसने लड़की को मृत अवस्था में फेंक दिया। जब काफी देर तक लड़की घर नहीं लौटी तो परिवार ने खोजबीन शुरू की। मोहल्ले वालों ने बताया कि उन्होंने लड़की को सुनील के घर की ओर जाते देखा था। जब परिवार ने सुनील से पूछताछ की तो उसने साफ़ इनकार कर दिया, जबकि उसी समय लड़की उसके घर में मौजूद थी और वहीं उसके साथ बलात्कार हुआ था। बाद में पुलिस ने घटना स्थल के रूप में जंगल दिखाया। घटना के करीब एक हफ़्ते बाद, इलाज के दौरान कानपुर के एक अस्पताल में लड़की की मौत हो गई। इसके बाद परिवार ने न्याय की मांग को लेकर ज़ोरदार विरोध और बहस की थी।
न्याय से कुछ शांति जरुर हो सकती है पर मां का दर्द कम नहीं
न्यायालय में आरोपी के मृत्यु दंड की सजा सुनने पर मृतक लड़की के परिवार और मां को थोड़ा शांति भले ही मिल गई हो, लेकिन कवरेज के दौरान हमने जो उसके परिवार और खासकर उस मां के आंखों में दर्द देखा है, जिसकी बेटी इस तरह की दरिंदगी का शिकार हुई हो उसकी पीड़ा का अंदाज़ा लगाना भी इंसान के लिए कठिन है। वह मां जिसने अपनी बच्ची को 9 महीने पेट में पाला था, नन्हें क़दमों से चलते हुए देखा था, उसके छोटे-छोटे सपनों को पूरा करने के लिए दिन-रात मेहनत की हो और अचानक जब उसी बेटी को दरिंदगी और मौत में खो देती है। वह क्षण उसके लिए ज़िन्दगी का हर रंग फीका पड़ जाता है। मां का दिल हर बार उस लम्हे को सोचकर कांप उठता है, जब उसकी मासूम बेटी मदद के लिए पुकार रही होगी और कोई भी उसे बचाने के लिए सामने नहीं रहा होगा। उस मां के लिए इससे बड़े दुख की बात क्या हो सकती है कि उसकी गोद की कली को किसी ने बेरहमी से रौंद डाला। उसकी आंखों में बेटी की आखिरी झलक, उसकी टूटी हुई सांसें और उसकी अधूरी हंसी हमेशा के लिए कैद हो जाती है।
समाज में लोग भले कुछ दिन चर्चा करें और फिर भूल जाएं लेकिन उस मां की रातें हर रोज़ आंसुओं में डूबकर गुज़रती हैं। उसके सीने में हर वक्त एक जलता हुआ खालीपन होता है जिसे न तो वक़्त भर पाता है और न ही कोई न्याय। वह सिर्फ बेटी को नहीं खोती बल्कि अपनी आत्मा का वो हिस्सा खो देती है जिसमें उसकी पूरी दुनिया बसी होती है।
आरोपी पहले भी कर चुका है ऐसी घटनाएं
मृतक लड़की की बड़ी मां कहती है कि जिस तरह से आरोपी ने उनकी 3 साल की लड़की के साथ 3 जून को बलात्कार करके मृत हालत में फेंका है उस आरोपी को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए। उससे उनका कोई रिश्ता नहीं है और इसके पहले भी उसने कई ऐसी घटनाएं की है। एक लड़की को लगभग 3 साल पहले अहमदाबाद में प्यार के जाल में फंसा कर लें गया था। वहां पर उसके साथ दुष्कर्म किया था और वहीं उसकी हत्या कर दी थी। वह लड़की भी गांव की ही है और उन्हीं के बिरादरी की, लेकिन लड़की अपने मन से यहां से उसके साथ गई थी, इसलिए परिवार ने कुछ भी पहल नहीं की। इसके अलावा उसने अपनी रिश्तेदारी में भी पिछले साल एक लड़की के साथ इसी तरह की घटना को अंजाम दिया था।
अगर कार्यवाही भी होती थी तो चार दिन में छूट कर आ जाता था क्योंकि उसके परिवार के पास पावर और पैसे का बल था। उनकी छोटी सी लड़की के साथ जो घटना हुई है वह घटना चौथी घटना है जिससे गांव तो दहशत में है ही लेकिन आस-पास के लोग भी इस घटना से दहशत में आ गए हैं। मृतक लड़की के परिवार का कहना है कि ऐसे आरोपी को कड़ी सजा देना जरूरी है ताकि जिस तरह से उनकी मासूम लड़की के साथ दरिंदगी हुई है उस तरह से किसी और लड़की के साथ वापस आकर ना कर सके। न्यायालय के इस फैसले से उनको काफी राहत मिली है।
बांदा एसपी का बयान
इस मामले पर बांदा के एसपी पलाश बंसल ने बताया कि घटना की सूचना मिलते ही पुलिस ने तुरंत संज्ञान लिया और आरोपी को मुठभेड़ के बाद गिरफ्तार कर लिया गया। मृतक को गंभीर हालत में कानपुर के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था। घटना के बाद 15 दिनों के भीतर ही एक विशेष टीम गठित की गई जिसने कठिन परिस्थितियों में अहम साक्ष्य (सबूत) जुटाए। डीजीपी मुख्यालय की नियमित पैरवी और टीम के प्रयासों से बड़ी सफलता मिली। न्यायालय ने आरोपी को मृत्युदंड की सज़ा सुनाई है। यह फैसला न केवल लोगों में भय पैदा करेगा बल्कि यह भी संदेश देगा कि पुलिस ऐसे मामलों में तुरंत कार्रवाई करते हुए न्यायालय के साथ खड़ी है।
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सवाल यह उठता है कि आए दिन इस तरह की दर्दनाक घटनाएं होती हैं, बुलडोज़र भी चलते हैं और सज़ा भी सुनाई जाती है लेकिन क्या इन कार्यवाहियों से सच में घटनाओं पर रोक लग पाती है? केवल बुलडोज़र चलाना और मृत्यु दंड की सज़ा सुनाना इस समस्या का स्थायी हल नहीं है। आरोपी तो एक होता है लेकिन जब उसके घर पर बुलडोज़र चलता है तो पूरा परिवार बेघर हो जाता है जबकि ज़्यादातर मामलों में घर या संपत्ति आरोपी के नाम पर नहीं होती। ऐसे में ज़रूरत है कि सरकार और न्यायालय मिलकर कठोर से कठोर दंड तय करें और कानून का सही तरीके से पालन सुनिश्चित करें। सबसे महत्वपूर्ण है कि कार्यवाही जल्दी हो क्योंकि कई मामले सालों तक लंबित पड़े रहते हैं। अगर समय पर न्याय मिले, कानून का पालन सख्ती से हो और लोगों में जागरूकता बढ़े, तभी ऐसी घटनाओं पर प्रभावी रोक लगाई जा सकती है।
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