खबर लहरिया Blog UP Banda, Farmer’s News: किसानों की बढ़ती परेशानियां बांदा में 12 सरकारी नलकूप महीनों से बंद

UP Banda, Farmer’s News: किसानों की बढ़ती परेशानियां बांदा में 12 सरकारी नलकूप महीनों से बंद

बांदा जिले के तिंदवारी ब्लॉक में भी कुछ ऐसा ही हाल है। यहां 12 सरकारी नलकूप महीनों से खराब पड़े हैं और इसका सीधा असर किसानों की खेती पर पड़ रहा है।    

रिपोर्ट-शिवदेवी, लेखन – रचना 

Farm lying dry due to failure of tube well

ट्यूबेल खराब होने के कारण सूखा पड़ा खेत (फोटो साभार: शिवदेवी)                   

देश में किसानों की हालत दिन-प्रतिदिन चिंताजनक होती जा रही है। जो किसान अनाज उगाते हैं वही आज अपनी ही परेशानियों की आवाज़ उठाने को मजबूर हैं। कभी खाद के लिए लाइनें लगानी पड़ती हैं कभी मौसम साथ नहीं देता और फसल बर्बाद हो जाती है तो कभी सिंचाई के लिए सरकारी सुविधाएं ही पंगु पड़ जाती हैं। ऐसा लगता है कि मिट्टी से सोना उगाने वाले किसान आज सिर्फ उम्मीद और इंतज़ार में जी रहे हैं कि शायद कभी उनकी सुनवाई हो जाए।

बांदा जिले के तिंदवारी ब्लॉक में भी कुछ ऐसा ही हाल है। यहां 12 सरकारी नलकूप महीनों से खराब पड़े हैं और इसका सीधा असर किसानों की खेती पर पड़ रहा है। गांव के खेतों में फसल उगने के बजाय धूल उड़ रही है क्योंकि पानी के इंतज़ार में करीब 80 बीघे खेत सूखे पड़े हैं।

किसानों ने कई बार की शिकायतें पर नहीं हुई कार्रवाई

किसानों का कहना है कि उन्होंने कई बार पलरा स्थित जेई और बिजली विभाग को शिकायत दी लेकिन सुधार के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया। गांव के किसानों के अनुसार वे खेती के लिए पूरी तरह इन ट्यूबवेलों पर निर्भर थे और अब पानी नहीं मिलने से बुवाई रुक गई है।

गांव के किसान रामचंद्र बताते हैं “गांव में ट्यूबवेल नंबर 152 तीन महीने से खराब है। पावर हाउस में भी बताया ऑपरेटर को भी कहा लेकिन अब तक सही नहीं हुआ। हम तहसील भी गए थे उन्होंने सिर्फ आश्वासन दिया है।”

वहीं किसान संतोष कहते हैं “ये ट्यूबवेल जून से खराब पड़ा है। अभी पलेवा की सबसे ज़्यादा जरूरत है। अगर समय पर पानी मिलता तो फसल समय से तैयार हो जाती।” इसी के साथ श्यामकली खेत में काम करने वाली महिला किसान कहती हैं “अगर मजबूरी में प्राइवेट ट्यूबवेल से पानी लें तो बहुत महंगा पड़ता है। सब किसान नहीं करा सकते हैं।जिनके पास कुछ पैसा हैं या खेती के अलावा कुछ और काम करते हैं वो कर सकते हैं लेकिन जो सिर्फ खेती के सहारे होते हैं वह प्राइवेट ट्यूबवेल नहीं करा सकते हैं। अब पेट के लिए मजबूरी में जो कर सकते हैं कर रहे हैं।”                                     

female farmer shyamkali

महिला किसान श्यामकली (फोटो साभार: शिवदेवी)

बता दें इससे पहले भी किसानों की कई खबरें आईं हैं जिसमें वे खाद के लिए लंबी लाइनों में लगे हुए हैं। 

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70 से 80 किसान इस ट्यूबवेल पर निर्भर

स्थानीय लोगों के मुताबिक इस सरकारी नलकूप से 70 से 80 किसानों की जमीन की सिंचाई होती थी लेकिन अब सबकी फसलें पानी के इंतज़ार में पड़ी हैं। कइयों को बुवाई करनी है, कुछ के खेतों में पलेवा बाकी है तो कुछ गेहूं बोने की तैयारी में रुके हुए हैं।

किसान पहले से ही कभी खाद की कमी तो कभी खराब पड़े ट्यूबवेल की वजह से परेशान हैं लेकिन इसके अलावा जलवायु परिवर्तन की मार भी उन्हें झेलनी पड़ रही है। बेमौसम बारिश ने उनकी उम्मीदों पर जैसे पानी फेर दिया हो। जिन खेतों में फसलें तैयार थीं जिनमें दाने आ चुके थे, वे बारिश के कारण सड़ गईं। न किसानों के लिए अनाज बचा और न ही पशुओं के लिए चारा। इस बारिश ने उनकी मेहनत, समय और उम्मीद सबकुछ छीन लिया।

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विभाग का दावा: शिकायत नहीं मिली, अब कार्रवाई होगी

इस पूरे मामले में जब जेई पलरा, विद्याकांत त्रिपाठी से बात की गई तो उनका कहना कि “हमें इस बारे में कोई शिकायत नहीं मिली है। कोई दर्ज कराने आया ही नहीं। अब जानकारी मिली है तो कार्रवाई की जाएगी।”

उन्होंने बताया कि सिर्फ एक नहीं बल्कि 15 नलकूप खराब पड़े हैं जिनमें नंबर 186, 251, 137, 118, 135 शामिल हैं। उनका कहना था कि शिकायत दर्ज करना सुपरवाइज़र का काम है लेकिन लोगों की शिकायत आया ही नहीं है अब अगर शिकायत मिल गई है तो प्रक्रिया शुरू की जाएगी।                 

All the pipes are dry

सारे पाइप सूखे पड़े हैं (फोटो साभार: शिवदेवी)                

अब सवाल यह है कि कब तक इंतज़ार?

किसान अब चेतावनी दे चुके हैं कि अगर जल्द सुधार नहीं हुआ तो वे धरना या आंदोलन करेंगे। आख़िर सवाल ये है कि जब सरकारें किसानों को देश की रीढ़ बताती हैं तो उसी रीढ़ को सबसे ज़्यादा संघर्ष क्यों करना पड़ता है? क्यों किसान अपनी ज़मीन पर फसल बोने के लिए भी गुहार लगाए? क्या योजनाएं सिर्फ कागज़ पर बनती हैं और खेतों तक नहीं पहुंचतीं?

सरकार का दावा है कि “हर खेत को पानी” जैसी योजनाएं किसानों को सिंचाई के बेहतर साधन उपलब्ध कराने के लिए चलाई जा रही हैं। इस योजना के तहत यह कहा जाता है कि देश में ऐसा कोई खेत नहीं रहना चाहिए जहां पानी न पहुंच सके लेकिन जमीनी हकीकत इससे काफी अलग है।

तिंदवारी ब्लॉक के किसान सिर्फ पानी या एक नलकूप नहीं मांग रहे वे अपनी मेहनत, अपनी फसल और अपने भविष्य को बचाने की मांग कर रहे हैं। सवाल सिर्फ तकनीकी खराबी का नहीं है सवाल जिम्मेदारी और जवाबदेही का है। किसान देश की रीढ़ कहे जाते हैं लेकिन जब वही रीढ़ कमजोर हो रही हो तो क्या हम इसे सामान्य मान लें?

सरकारी दावों और जमीनी हकीकत के बीच की यह खाईं सिर्फ योजनाओं की विफलता नहीं बल्कि किसानों की उम्मीदों के टूटने की कहानी है। अब देखना यह है कि प्रशासन किसानों की इस आवाज़ को सुनेगा या किसान फिर एक बार आंदोलन और संघर्ष के रास्ते पर उतरेंगे।

 

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