जय जवान जय किसान। नारा तो याद होगा न आपको पर इसके मायने अब बदल गए हैं। उन्नाव अन्नदाता केस में पुलिस की तरफ से हुए लाठीचार्ज का जिम्मेदार कौन? जब ये मामला सोशल मीडिया में आया तो सब लोग अलग अलग तरह के कमेंट करने लगे, कोई कह रहा है अन्नदाता ही इसका जिम्मेदार है। कोई कह रहा है पुलिस ने बहुत बड़ी नाइंसाफी की है। उत्तर प्रदेश सरकार किसानों के प्रति गैर जिम्मेदार है।
अन्नदाता की ये हालत बर्दाश्त नहीं जैसी तमाम बातें। पर इस मामलों में रिपोटिंग के दौरान मुझे कुछ अंदरूनी बातें ऐसी भी मिलीं जिसको सुनकर आप हैरान हो जाएंगे।
किसान और प्रशासन के बीच लाठीचार्ज की स्थिति पैदा करने वाले ऐसे लोग जो अपने को अन्नदाता का हमदर्द बताते हैं। प्रशासन व किसानों को खूब ठगते समझ में आये। जब एक दूसरे को बर्दाश्त नहीं कर पाए तो मौका देख ऐसा षड्यंत्र रचा की न पुलिस को समझ आये और न किसान।
उन्नाव के गांव शंकरपुर सराय निवासी हीरेन्द्र निगम किसानों का संगठन चलाते हैं। अजय अनमोल यादव नाम का व्यक्ति जो कि किसी दूसरे शहर का निवासी है मौका देखते ही हीरेन्द्र निगम से दोस्ती बढ़ा कर उसके संगठन में शामिल हो गया।
नेतागिरी करने और प्रशासनिक तालमेल ज्यादा होने की वजह से दोनों में अच्छी दोस्ती के बल पर मिलकर काम करने लगे। किसानों को उनके मुआवजे का पैसा दिलाने के नाम पर उनसे खर्च पानी के रूप में पैसा लेते थे। जिन लोगों के पास होता तो घर से ही देते और न होता तो मुवावजे में मिले पैसे आने पर देते। अंदरुनी बात ये भी निकल कर आई कि अजय अनमोल यादव की माँ की तबियत खराब हुई उनका इलाज प्राइवेट अस्पताल में चल रहा था तो किसानों ने मिलकर चंदा दिया।
इसी तरह किसानों ने उस व्यक्ति को चार पहिया गाड़ी ख़रीदवाई। पर हीरेन्द्र को शायद इतना नहीं मिला तो उसने अजय अनमोल के साथ काम करना छोड़ दिया। इस बात से दोनों के बीच अनबन हो गई। यहां पर गुलाबी गैंग कमांडर संपत पाल ने भी इन किसानों की लड़ाई खूब लड़ी। उन्होंने भी किसानों से अपनी गाड़ी के कुछ पार्ट बनवाने के लिए बोला था पर किसान नेताओं के मारे किसान उनकी गाड़ी नहीं सुधरवा पाए। इसलिए उन्होंने इस आंदोलन से दूरियां बढ़ा ली थीं।
अब बचे हीरेन्द्र निगम। वह अपनी टीम के साथ 2017 से ट्रांस गंगा सिटी की जमीन पर लगातार धरना प्रदर्शन कर रहे थे। 17 नवंबर को प्रशासन पुलिस बल के साथ उस जमीन में कब्जा करने पहुंची। किसान और प्रशासन समझौता करना चाह रहे थे। किसानों और प्रशासन के बीच बहस चल ही रही थी कि एक ईंट का ढेला पुलिस अधिकारी के मुंह पर आ गिरा। आखिकार ईंट आई कहां से, किसने मारा ये किसी ने जानने की कोशिश नहीं की। फिर क्या था पुलिस ने किसानों के ऊपर पानी बौछारें, आंसू गोले फिर रॉड से कुटाई की। अपने बचाव में किसानों ने भी कुछ किया।
देखते ही देखते इस मैदान में बच्चे, जवान, बूढ़े और महिलाएं सब कराहते नज़र आने लगे। पुलिस ने मारा तो है ही ऊपर से तीन तरह के मुकदमें लगाये। लगभग 450 किसानों के ऊपर ज्ञात और अज्ञात में लिखाये। इन मुकदमों में धाराओं की भरमार है। अब हालत यह है कि किसान रात रात भर सोते नहीं है। पुलिस रात में छापामारी करके किसानों को पकड़कर जेल में डाल रही है। इस लिए ज्यादातर किसान घर में नहीं हैं या तो जेल में हैं या फिर गायब है। घर की महिलाएं परेशान हैं कि पता नहीं कहां हैं किस स्थिति में हैं। जिंदा हैं या मर गए। जो किसान घायल हैं कुछ तो इलाज करवा रहे है कुछ घरेलू इलाज ही कर रहे हैं।
सन 1857 में अंग्रेजी हुकूमत ने एक रणनीति अपनाई थी “फूट डालो राज करो” ये काले अंग्रेज आज भी इस रणनीति के पीछे भाग रहे हैं। “जय जवान जय किबांदा: कर्ज के बोझ तले दबे किसान ने की आत्महत्यासान” भारत का राष्ट्रीय नारा है। एक जमाना था जब भारत ने इस नारे के बल पर अमेरिका और पाकिस्तान को हराया था पर आज आपस में लड़े जा रहे हैं। किसान नेता रूपी काले अंग्रेजो की कूटनीति सफल हो गई कि फूट डालो राज करो। अब इससे बुरे दिन और कितने हो सकते हैं???