यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि देश दो कानूनों से नहीं चल सकता और समान नागरिक संहिता संविधान का हिस्सा है।
Uniform Civil Code (समान नागरिक संहिता) का विषय इस समय राजनीतिक तौर पर गर्माया हुआ है जिसे साल 2024 में आने वाले लोकसभा चुनाव से जोड़ा जा रहा है। रिपोर्ट्स के अनुसार, यूनिफॉर्म सिविल कोड का कार्यान्वयन भाजपा के चुनावी घोषणापत्र का हिस्सा रहा है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले महीने भोपाल में भाजपा कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए इस पर ज़ोर भी दिया था।
इस बीच यह जानकारी मिली है कि उत्तराखंड यूनिफॉर्म सिविल कोड संभवतः केंद्र के कानून का टेम्पलेट होगा। सूत्रों के मुताबिक, यूसीसी को लेकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सोमवार देर रात नई दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ अहम बैठक की थी।
बताया गया कि बैठक में उत्तराखंड यूसीसी प्रारूप समिति की अध्यक्ष न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई भी मौजूद थीं।
सीएम धामी ने रविवार को कहा था कि जल्द ही इस विषय की जांच कर रही यूसीसी विशेषज्ञ समिति मसौदा प्रस्तुत करेगी। उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा था,”प्रदेश की जनता से किये गये वादे के अनुरूप आज 30 जून को समान नागरिक संहिता का प्रारूप तैयार करने हेतु गठित समिति ने अपना काम पूरा कर लिया है। जल्द ही देवभूमि उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लागू हो जायेगी। जय हिन्द, जय उत्तराखंड! ”
उत्तराखंड में शीघ्र लागू करने जा रहे हैं समान नागरिक संहिता (UCC), सबके लिए होगा समान कानून! #UniformCivilCode pic.twitter.com/RviruqfoJ3
— Pushkar Singh Dhami (Modi Ka Parivar) (@pushkardhami) June 29, 2023
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यूनिफॉर्म सिविल कोड पर पीएम मोदी
यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि देश दो कानूनों से नहीं चल सकता और समान नागरिक संहिता संविधान का हिस्सा है। कहा कि यूसीसी भारत के लिए एक कानून बनाने का आह्वान करता है, जो विवाह, तलाक, विरासत और गोद लेने जैसे मामलों में सभी धार्मिक समुदायों पर लागू होगा।
आगे कहा, “आज यूसीसी के नाम पर लोगों को भड़काया जा रहा है। देश दो (कानूनों) पर कैसे चल सकता है? संविधान भी समान अधिकारों की बात करता है…सुप्रीम कोर्ट ने भी यूसीसी लागू करने को कहा है। ये (विपक्ष) लोग वोट खेल रहे हैं बैंक की राजनीति।”
यूसीसी पर क्या कहता है लॉ कमीशन?
बता दें, भारत के लॉ कमीशन ने सोमवार,3 जुलाई को एक संसदीय पैनल के समक्ष यह मामला रखने की मांग की कि देश में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के मुद्दे की नए सिरे से जांच की जाए। हालांकि कांग्रेस, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) सहित कुछ विपक्षी दल और भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) ने 2018 में आयोग के विचार के बावजूद परामर्श को नवीनीकृत करने के कदम पर सवाल उठाया कि यूसीसी “इस स्तर पर न तो आवश्यक है और न ही वांछनीय है।”
हिंदुस्तान टाइम्स की प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार- पर्सनल, सार्वजनिक शिकायतों और कानून और न्याय पर संसदीय पैनल के प्रमुख – भारतीय जनता पार्टी के सदस्य सुशील कुमार मोदी – ने आदिवासी समुदायों और पूर्वोत्तर राज्यों को किसी भी प्रस्तावित यूसीसी के दायरे से बाहर रखने की वकालत की और कहा कि संविधान में कुछ समूहों को उनके रीति-रिवाजों का पालन करने में मदद करने के लिए कुछ अपवादों की अनुमति दी गई है।
बैठक में यह भी बताया गया कि कुछ पूर्वोत्तर राज्यों में उनकी सहमति के बिना केंद्रीय कानून लागू नहीं होते हैं। मध्य भारत और पूर्वोत्तर में कई आदिवासी समूहों ने यूसीसी के लिए किसी भी दबाव का विरोध किया है, और चिंता व्यक्त की है कि इससे उनके अनोखे रीति-रिवाज और पारंपरिक कानून खत्म हो जाएंगे।
मामले से परिचित लोगों के मुताबिक, बीजेपी, शिवसेना, शिव सेना (यूबीटी) और बहुजन समाज पार्टी के नेताओं ने यूसीसी का समर्थन किया है।
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यूसीसी बीजेपी के एजेंडा का है हिस्सा
न्यूज़ 18 की रिपोर्ट के अनुसार, बीजेपी के मुख्य तीन एजेंडे रहे हैं। सबसे पहला जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 को हटाना था जो पूरा हो गया। दूसरा, अयोध्या में राममंदिर का निर्माण कराना जिसका कार्य चल रहा है और तीसरा पूरे देश में समान नागरिक संहिता लागू कराना है। अपने दो एजेंडों के पूरा हो जाने के बाद बीजेपी अब यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने पर ज़ोर दे रही है। केंद्र सरकार ने समान नागरिक संहिता पर विधि आयोग से सुझाव मांगे थे। इसके बाद देश के 22वें विधि आयोग ने 14 जून को यूसीसी पर सार्वजनिक और धार्मिक संगठनों के साथ अलग-अलग पक्षों से 30 दिन के अंदर अपनी राय देने को कहा था जिससे यह मुद्दा देश में एक बार फिर चर्चा का विषय बन गया।
यूसीसी को लेकर विधि आयोग क्या कहता है?
बता दें, केंद्र सरकार ने पहले भी 21वें विधि आयोग से यूसीसी पर सुझाव मांगे थे। इस पर आयोग ने समाज के सभी वर्गों पर समान नागरिक संहिता लागू करने की जरूरत की जांच की थी। इस विधि आयोग ने 2018 में ‘पारिवारिक कानून में सुधार’ नाम से सुझाव पत्र प्रकाशित किया। इसमें कहा गया था कि अभी देश में समान नागरिक संहिता की जरूरत नहीं है। अब 22वें विधि आयोग का कहना है कि इस सुझाव पत्र को ज़ारी किए हुए तीन साल से ज़्यादा हो चुके हैं। ऐसे में इस मामले की अहमियत पर अदालती आदेशों को ध्यान में रखते हुए फिर विचार करना बहुत ज़रूरी है।
क्या है समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code)?
यूनिफॉर्म सिविल कोड का मतलब है कि हर धर्म, जाति, संप्रदाय, वर्ग के लिए पूरे देश में एक ही नियम का होना। इसे थोड़ा और समझा जाए तो यह ये कहता है कि पूरे देश के लिए एक समान कानून के साथ ही सभी धार्मिक समुदायों के लिये विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने के नियम एक ही होंगे। संविधान के अनुच्छेद-44 में सभी नागरिकों के लिए समान कानून लागू करने की बात कही गई है। वहीं अनुच्छेद-44 संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में शामिल है। इस अनुच्छेद का उद्देश्य संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य’ के सिद्धांत का पालन करना है।
जानकारी के अनुसार, भारत में सभी नागरिकों के लिए एक समान ‘आपराधिक संहिता’ है, लेकिन समान नागरिक कानून नहीं है।
सबसे पहले कब हुआ यूनिफॉर्म सिविल कोड का ज़िक्र?
यूनिफॉर्म सिविल कोड के बारे में सबसे पहले साल 1835 में ब्रिटिश सरकार की एक रिपोर्ट में ज़िक्र किया गया था। इसमें कहा गया था कि अपराधों, सबूतों और ठेके जैसे मुद्दों पर समान कानून लागू करने की ज़रूरत है। इस रिपोर्ट में हिंदू-मुसलमानों के धार्मिक कानूनों से छेड़छाड़ की बात नहीं की गई है। हालांकि, 1941 में हिंदू कानून पर संहिता बनाने के लिए बीएन राव समिति का गठन किया गया। राव समिति की सिफारिश पर 1956 में हिंदुओं, बौद्धों, जैनियों और सिखों के उत्तराधिकार मामलों को सुलझाने के लिए हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम विधेयक को अपनाया गया। हालांकि, मुस्लिम, ईसाई और पारसियों लोगों के लिये अलग कानून रखे गए थे।
देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड की स्थिति
भारतीय अनुबंध अधिनियम-1872, नागरिक प्रक्रिया संहिता, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम-1882, भागीदारी अधिनियम-1932, साक्ष्य अधिनियम-1872 में सभी नागरिकों के लिए समान नियम लागू हैं। वहीं, धार्मिक मामलों में सभी के लिए कानून अलग हैं। इनमें बहुत ज़्यादा अंतर है। जानकारी है कि भारत जैसे विविधता वाले देश में इस कानून को लागू करने आसान नहीं है। इस समय लोगों के इस पर विचारों को देखकर भी यही लग रहा है।
देश का संविधान सभी को अपने-अपने धर्म के मुताबिक जीने की पूरी आजादी देता है। संविधान के अनुच्छेद-25 में कहा गया है कि कोई भी अपने हिसाब से धर्म मानने और उसके प्रचार की स्वतंत्रता रखता है।
वैसे तो जब भी धर्म की बात आती है तो कानून और नियम कभी भी समान नहीं रहे हैं। ऐसे में आगामी चुनाव में यूसीसी फिर एक धार्मिक मोड़ खड़ा करने का काम करेगी।
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