वाराणसी जिले के छितोनी गाँव में प्रशासन किसानों द्वारा बंद करवाई गईं लगभग 50 गायों की देखभाल करने और उन्हें चारा उपलब्ध करवाने में चूक रहा है। पशु खेती को नुक्सान ना करें इसके लिए उन्हें चारदिवारी के अंदर बंद कर दिया था। वहाँ भूख, अव्यवस्था, ध्यान ना देने और बिमारी से लगभग 10 पशुओं की मौत की ख़बर है।
‘मुझे लगभग एक महीने पहले गायों की उपस्थिति पता चली पर वे शायद उससे पहले से यहाँ बंद थीं। किसान कुछ गायों को लगातार अंदर बंद करते रहते थे। कोई भी उनका ध्यान नहीं रख रहा और लगभग 10 के करीब मर भी गई हैं। छितोनी गाँव के राजेश सिंह जो चारदीवारी के बाहर खड़े मिले, उन्होंने बताया। दीवार के अंदर से मरे हुए जानवर की दुर्गंध आ रही थी।
उत्तर प्रदेश में पशुओं की संख्या सबसे ज्यादा है। इनमें से लावारिस छोड़ दिए गए पशु और आवारा पशुओं की संख्या सर्वाधिक है। खेती को बड़े पैमाने पर नुक्सान से बचाने के लिए किसानों को बड़े स्तर पर उपाय करने होंगे। आमतौर पर किसान खेतों पर कंटीले तारों से बाड़ बना लेते हैं या पशुओं को प्राइमरी स्कूल में बंद कर देते हैं। वर्षों से ग्रामीण ख़ुद अपने स्तर पर पशुओं की देखभाल करते रहे हैं जो लगभग 60 रूपए प्रतिदिन, प्रति पशु होता है। इस खर्च को जर्जर हालात से जूझ रहे ग्रामीणों के लिए वहन करना मुश्किल है।
इसका हल खोजने और गऊ रक्षा का वादा करने वाली सरकार ने इसका दो स्तरों पर हल खोजने की बात कही थी। एक हल के तौर पर सरकार ऐसे लोगों की पहचान करेगी जो ख़ुद पशुओं की देखभाल के लिए आगे आते हैं, उन्हें सरकार 30 रूपए प्रतिदिन, प्रति पशु देगी और पशुओं के लिए स्थाई और अस्थाई रहने की व्यवस्था करेगी। गायों से जुड़ी हुई 631 करोड़ स्कीम में उत्तर प्रदेश राज्य में गायों के लिए सर्वाधिक बजट है। इसके बावजूद छितोनी गाँव गायों के लिए रहने की कोई व्यवस्था नहीं है।
गाँव प्रधान मंजू देवी कहती हैं कि ग्रामीण अपने संयंत्र पर पशुओं के लिए साफ पीने के पानी और थोड़े-बहुत चारे का प्रबंध कर रहे थे मगर वे लगातार ऐसा नहीं कर सकते। ‘गाँव के बच्चे पशुओं के लिए चारा लाने और पानी ले जाने में मदद करते रहे हैं। इसके बावजूद पशुओं के मरने का कारण क्या रहा, मैं नहीं जानता।’ गाँव छितोनी के किसान राम जी राम ने बताया। ग्रामीणों को नई व्यवस्था से उम्मीद थी कि उन्हें अन्ना पशुओं पर खर्च होने वाले पैसों और शारीरिक श्रम से मुक्ति मिल जाएगी। अजय गुप्ता कहते हैं, ‘पशुओं को चारदीवारी में बंद करके रखा गया है, इस बारे में मैने पुलिस को लगभग एक महीने पहले बताया था। लेकीन मेरी बात सुनने और मेरे द्वारा दी गई सूचना पर काम करने की जगह उन्होंने मुझे धमकी दी कि वे मेरे विरुद्ध ही एफआईआर दर्ज़ कर देंगे। मुझे कहा गया कि मैं प्रधान मंत्री को फोन करूँ और इन पशुओं के लिए कुछ करूं। बहुत प्रयासों के बाद बीडीओ ,पशु चिकित्सा अधिकारी,एसडीएम और संयुक्त मजिस्ट्रेट ने चारदीवारी में कैद पशुओं की स्थिती का जायजा लिया और ग्रामीणों को भरोसा दिलाया कि वे यहाँ बंद पशुओं को जल्दी ही किसी उपयुक्त स्थान पर रहने के लिए भिजवाएंगे। परन्तु सच्चाई यह है कि जो थोड़े-बहुत पशुओं के लिए बनाए गए रहने के स्थान हैं, वहाँ पहले से ही ज़रूरत से ज़्यादा पशु रह रहे हैं।
छितोनी जिला पंचायत सदस्य रमेश यादव के अनुसार प्रशासन ने दो सौ पशुओं के लिए एक ट्रक की व्यवस्था की थी जिसमें भर कर पशुओं को चान्ही आश्रय केंद्र ले जाया गया था मगर वहाँ पशु आश्रय केंद्र के किसी आंतरिक मसले के कारण ट्रक जैसा गया था वैसा ही लौट आया। ‘कोई इस तरह बोरे को नहीं भरता जैसे ट्रक में पशु भर कर भेजे गए थे। इतनी बुरी तरह ठूंस कर भेजे जाने के कारण गायों की मौत हो गई। वे कहते हैं कि इन मौतों का जिम्मेदार प्रशासन है। गायों की मौत के बाद राज्य प्रशासन ने पशुओं की देखभाल के लिए ग्राम प्रधान को जिम्मेदारी सौंप दी।
शुरू से स्थिति के प्रति ख़राब रवैया रहा। हर कोई पशुओं की जिम्मेदारी लेने से बचता रहा। सरकार गायों के साथ की जाने वाली हिंसा के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की नीतियों के कारण हर कोई गायों की देखभाल करने से ड़रता रहा। वे ग्रामीण जो स्थिति से हर बार अपने स्तर पर निपट लेते थे उन्हें इस बार प्रशासन से ज़रूरत के मुताबिक मदद मिलने की उम्मीद थी जबकि प्रशासन में प्रक्रिया की कमी और मूलभूत ढ़ांचे के ना होने के कारण किसी भी तरह की मदद करने में फ़ैल हो गया। प्रबंध ठीक न होने के कारण 10 पशुओं की मौत हो गई और अब भी पशुओं की दुर्दशा बंद नहीं हुई है। योगी सरकार गायों की रक्षा का नारा लगाती है परन्तु वह ऐसा सिस्टम बनाने में लगातार फेल हो रही है जिससे पशुओं की रक्षा करने के उपाय किए जा सकें। छितोनी गाँव की चारदीवारी में बंद पशुओं की प्यास से तड़पती और मदद के लिए पुकारती आवाज़ यहाँ आ कर ही सुनी जा सकती है।