यह देखना व समझना ज़रूरी है कि विकलांग व्यक्ति समाज में हर एक पड़ाव पर Ableism का सामना करते हैं जिसे न तो भेदभाव की तरह देखा जाता है और न ही उनके लिए पहुंच के रास्तों में रुकावट की तरह।
रिपोर्ट व लेखन – संध्या
विकलांग छात्रों के लिए यूजीसी नेट की परीक्षा हो या अन्य कोई भी परीक्षा, परीक्षा केंद्र तक पहुंचना ही उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती व संघर्ष होता है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि उनकी पहुँच के लिए समावेशी संसाधन उपलब्ध नहीं होते, कराये नहीं जाते, अनदेखे कर दिए जाते हैं। ऐसे में सारी चुनौतियों व पहुंच के संकीर्ण मौके होने के बावजूद परीक्षा केंद्र तक पहुंचना और फिर परीक्षा देने के बाद यह पता चलना कि परीक्षा भी अब रद्द कर दी गई है, क्या इस बीच विकलांग छात्रों के बारे में सोचा जाता है कि इससे उनकी हिम्मत व मानसिक स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ेगा?
18 जून को यूजीसी नेट की परीक्षा देने गईं 25 वर्षीय काव्या मुखीजा , जोकि एक व्हीलचेयर यूजर हैं, उन्होंने इस पूरे मामले व फैसले को Ableist (एबलिज्म अर्थात विलकांग व्यक्तियों के प्रति भेदभाव व पूर्वाग्रह) बताया जो विकलांग छात्रों के बारे में बिलकुल भी नहीं सोचता। इस बारे में उन्होंने अपने X अकाउंट पर लिखा।
बता दें, 18 जून को हुई यूजीसी नेट 2024 की परीक्षा को अनियमतता की वजह बताते हुए रद्द कर दिया गया, जिसके लिए दिल्ली के लाजपत नगर में रहने वाली 25 वर्षीय काव्या मखीजा भी पहुंची थी। काव्या, व्हीलचेयर का इस्तेमाल करती हैं व दिल्ली विश्वविद्यालय से उन्होंने अपना पोस्ट ग्रेजुएशन किया है। विकलांग व्यक्ति होने के तौर पर परीक्षा रद्द होने, परीक्षा केंद्र तक उनकी पहुँच में inaccessibility (पहुंच के बाहर) का होना, उनके लिए यह सब मानसिक तौर पर कैसा था, इस बारे में उन्होंने खबर लहरिया से बात की।
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काव्या अपनी चुनौतियों और गुस्से को व्यक्त करते हुए अपने X अकाउंट पर गहराई से एक विकलांग व्यक्ति के तौर (a person with disability) पर अपने संघर्ष के बारे में बताती हैं।
वह लिखती हैं, “मैं एक व्हीलचेयर यूज़र हूँ . मुझे जो सेंटर दिया गया था (रोहिणी सेक्टर-22 इन्द्रप्रस्थ पब्लिक स्कूल) वह बिलकुल भी पहुँचने योग्य नहीं था। बाहर की सड़क बहुत खराब थी। अंदर जो रैम्प थे वह इतने ऊंचे थे जो यह बता रहे थे कि यह व्हीलचेयर का इस्तेमाल करने वाले लोगों के लिए नहीं हैं।”
शौचालय के रास्ते में सीढ़ियां थीं। सवाल करते हुए उन्होंने लिखा, “नेशनल टेस्टिंग एजेंसी विकलांगता के बारे में जानकारी क्यों लेती हैं जब वह यह सुनिश्चित करने के लिए कोई व्यवस्था नहीं कर सकती कि परीक्षा केंद्र तक पहुंचना कैसे सम्भव हो सकता है? हम केवल ज़्यादा समय का फायदा लेने के लिए अपनी विकलांगता का विवरण नहीं देते।”
उन्हींने यह भी बताया कि कहने के लिए बस फॉर्म में विकलांगता के बारें में पूछा जाता है लेकिन जब सेंटर दिया जाता है तो यह साफ़ नहीं होता कि फॉर्म में जो संसाधन परीक्षा केंद्र तक पहुंचने के लिए चाहिए, वह उपलब्ध कराये जाएंगे या नहीं।
आगे लिखा, स्कूल के कैम्पस में व्हीलचेयर की भी व्यवस्था नहीं थी। एक छात्र जोकि अन्य शहर से परीक्षा देने आये थे उन्हें अपने घुटनों के बल ज़मीन से लगकर क्लासरूम तक पहुंचना पड़ा। क्लासरूम में पहुंचने के बाद भी वह डेस्क या कुर्सी का इस्तेमाल नहीं कर पाए जिसके बाद उनके लिए अलग से कुर्सी का इंतज़ाम किया गया।
परीक्षा केंन्द्र में मौजूद निरीक्षक को लेकर उन्होंने बताया कि निरीक्षक ज़्यादा जागरूक नहीं थे। उनकी माँ जो उनके साथ थी, उन्होंने उनके साथ असभ्य तरीके से बरताव किया। उन्होंने उन्हें स्कूल के अंदर उनकी कार लगाने से भी मना कर दिया, जहां वे बस अपनी पहुँच का रास्ता थोड़ा और बेहतर बनाने की कोशिश कर रही थीं।
बहुत बहस व बातचीत करने के बाद वह मानें. उसके बाद उन्होंने उनकी मम्मी को कैंपस के बाहर खड़े होने को कहा। जब परीक्षा खत्म हो गई तो कुछ छात्र स्कूल के ग्राउंड में क्रिकेट खेलने लगे। वह कहती हैं, “आश्चर्य की बात यह है कि मेरी मम्मी की मौजूदगी उनके लिए खतरा थी लेकिन ग्राउंड में खेलते छात्र नहीं।
I appeared for the UGC NET on June 18, which has now been cancelled. It is ableist and does NOT care about disabled candidates.
Here’s what happened. 🧵 #DisabilityTwitter
— Kavya Mukhija (@KavyaMukhija) June 19, 2024
आगे कहा, एनटीए को यह समझने की जरूरत है कि ऐसे विकलांग लोग भी हैं, जिन्हें इस परीक्षा में शामिल होने के लिए देखभाल करने वालों और माता-पिता के साथ शहरों में यात्रा करनी पड़ती है और पहुंच के रास्तों को खोजना पड़ता है।
अंत में उन्होंने यही कहा कि, “अब बहुत हो चुका। जहां जाओ वहां अपने बुनियादी अधिकारों के लिए लड़ना काफी थका देने वाला होता है। मेरी यहां मौजूदगी है, इसके लिए आखिर मुझे कब तक लड़ते रहना होगा? लोगों को यह एहसास होने में कितना समय लगेगा कि विकलांग लोग मौजूद है? वे सम्मान के पात्र हैं?”
यह देखना व समझना ज़रूरी है कि विकलांग व्यक्ति समाज में हर एक पड़ाव पर Ableism का सामना करते हैं जिसे न तो भेदभाव की तरह देखा जाता है और न ही उनके लिए पहुंच के रास्तों में रुकावट की तरह।
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