अगस्त महीने में पांच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए एक्ट) कानून के तहत गिरफ्तार किया गया है, उसके तहत सजा मिलने का औसत बहुत कम है। राष्टीय अपराध रिकॉड के आंकड़े बताते हैं कि 2016 में इस कानून के तहत दर्ज जिन मुकदमों का ट्रायल पूरा हुआ, उनमें से दो-तिहाई केस में आरोपी बरी हो गए।
2016 में यूएपीए एक्ट के तहत चले 33 में से 22 मामलों में या तो आरोपी बरी हो गए या छोड़ दिए गए। जबकि अन्य कानूनों के तहत आरोपियों के बरी होने का प्रतिशत 18 रहा है। 2015 में यूएपीए एक्ट के तहत कुल 76 मुकदमों की सुनवाई पूरी हुई. इनमें से 65 मामलों में अदालत ने या तो आरोपियों को बरी कर दिया।
1 जनवरी, 2018 को बड़ी तादाद में दलित समुदाय के लोग भीमा-कोरेगांव में जमा हुए थे। वो 200 साल पुरानी ऐतिहासिक घटना की सालगिरह मनाने के लिए जमा हुए थे। इस दौरान, समारोह का विरोध करने वालों ने दलितों पर हमला कर दिया। 28 अगस्त, 2018 को 5 मानवाधिकार कार्यकर्ताओं- सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, वरवरा राव, अरुण फरेरा और वर्नोन गोंसाल्वेस को देश के अलग-अलग हिस्सों से गिरफ्तार किया गया. पुलिस का आरोप है कि उन्होंने ही पुणे के भीमा-कोरेगांव में हिंसा भड़काई थी। हिंदुस्तान टाइम्स ने 1 सितंबर, 2018 को खबर दी कि पुणे पुलिस ने 1 सितंबर 2018 को इस मामले के आरोपियों सुधीर धवाले, रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग, शोमा सेन और महेश राउत के खिलाफ चार्जशीट दाखिल करने के लिए अदालत से और वक्त मांगा। इन सभी को इसी साल 6 जून को यूएपीए एक्ट के तहत गिरफ्तार किया गया था। पुलिस का आरोप है कि इन सभी के माओवादियों से संबंध हैं, जो भीमा-कोरेगांव में हिंसा के लिए जिम्मेदार थे।
एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, 2016 में यूएपीए एक्ट के तहत 922 केस दर्ज किए गए थे। यह 2014 में 976 के मुकाबले 5 फीसद कम है, जबकि 2015 के 897 मामलों से 3 प्रतिशत ज्यादा। 2016 तक पिछले 3 साल में 2700 से ज्यादा मुकदमे यूएपीए एक्ट के तहत देश भर में दर्ज किए गए हैं।