खबर लहरिया Blog यूपी में दो महिलाओं ने हिंसा से परेशान होकर की एक-दूसरे से शादी, क्या क़ानून देता है मान्यता?

यूपी में दो महिलाओं ने हिंसा से परेशान होकर की एक-दूसरे से शादी, क्या क़ानून देता है मान्यता?

एक महिला का नाम कविता है और दूसरे का गुंजा। दोनों ने 23 जनवरी, वीरवार शाम को देवरिया के शिव मंदिर में शादी की, जो छोटी काशी के नाम से भी जाना जाता है। दोनों महिलाएं सोशल मीडिया प्लेटफार्म इंस्टाग्राम के ज़रिये सबसे पहले एक-दूसरे के संपर्क में आई थीं। जीवन में समान परिस्थितियों का सामना करते हुए दोनों की बहुत जल्द दोस्ती हो गई। छह सालों तक दोस्ती के रिश्ते में रहने के बाद, सुख-दुःख साझा करने के बाद दोनों ने एक-दूसरे से शादी करने का फ़ैसला किया। दोनों ही महिलाओं ने यह साफ़ तौर पर बताया कि दोनों ही महिलाएं घरेलू हिंसा का सामना कर रही थीं। 

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यूपी के गोरखपुर में कविता और गुंजा ने शिव मन्दिरर में शादी की ( फ़ोटो साभार – इंडिया टुडे)

यूपी के गोरखपुर में दो महिलाओं ने एक-दूसरे से शादी करने का फ़ैसला किया और मंदिर में जाकर शादी कर ली। शादी के पीछे की सबसे बड़ी वजह उनके पतियों द्वारा की जा रही हिंसा थी। खुद को हिंसा से आज़ाद करवाने व नए जीवन की शुरुआत के लिए दोनों ने मिलकर शादी करने का रास्ता चुना, लेकिन क्या उनकी यह शादी उन्हें सुरक्षा व नया जीवन दे पायेगी? वह भी वहां जहां समान लिंग के व्यक्ति से विवाह गैर-क़ानूनी है। 

आज ‘विवाह समानता’ को लेकर जो देश का कानून और समाज है, दोनों ही समान लिंग के लोगों को एक-दूसरे से शादी करने की मान्यता नहीं देता है। जबकि ‘विवाह समानता’ को मान्यता देने को लेकर अदालत में काफ़ी समय से लड़ाई भी लड़ी जा रही थी। ऐसे में शादी के ज़रिये जहां ये महिलाएं एक-दूसरे के जीवन में सहारा बनने की कोशिश कर रही हैं, एक हिंसा भरी शादी से मुक्त होकर एक-दूसरे के साथ नई शुरुआत करना चाहती हैं, उनके सामने चुनौतियां क़ानूनी तौर पर भी हैं और सामाजिक तौर पर भी। 

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कैसे मिलीं कविता और गुंजा?

एक महिला का नाम कविता है और दूसरे का गुंजा। दोनों ने 23 जनवरी, वीरवार शाम को देवरिया के शिव मंदिर में शादी की, जो छोटी काशी के नाम से भी जाना जाता है। दोनों महिलाएं सोशल मीडिया प्लेटफार्म इंस्टाग्राम के ज़रिये सबसे पहले एक-दूसरे के संपर्क में आई थीं। जीवन में समान परिस्थितियों का सामना करते हुए दोनों की बहुत जल्द दोस्ती हो गई। छह सालों तक दोस्ती के रिश्ते में रहने के बाद, सुख-दुःख साझा करने के बाद दोनों ने एक-दूसरे से शादी करने का फ़ैसला किया। दोनों ही महिलाओं ने यह साफ़ तौर पर बताया कि दोनों ही महिलाएं घरेलू हिंसा का सामना कर रही थीं। 

हिंदू रीति-रिवाज़ के अनुसार, दोनों ने शादी की रस्में निभाई। शादी के दौरान गुंजा ने दूल्हे की पहचान अपनाई व कविता के मांग में सिन्दूर भरा। एक-दूसरे के गले में माला डाली और फ़ेरे लिए। 

मंदिर के पुजारी उमा शंकर पांडेय ने भी बताया कि दोनों महिलाओं ने माला-सिंदूर खरीदें, सभी रिवाज़ पूरे किये और फिर चुपचाप वहां से चली गईं। 

एक महिला ने बताया कि उसका पति उसे शराब पीकर रोज़ मारता था। उनके चार बच्चे भी हैं। बार-बार हिंसा की वजह से उन्होंने अपने मायके जाने का फ़ैसला किया था। वहीं अन्य महिला ने बताया कि उसके पति को भी शराब की लत थी। उसने उन पर किसी अन्य व्यक्ति से संबंध होने का आरोप लगाकर उन्हें रिश्ते से अलग कर दिया।

पीटीआई समाचार एजेंसी को गुंजा ने बताया, “हमें हमारे पतियों द्वारा शराब पीकर प्रताड़ित किया जाता था। इस चीज़ ने हमें एक शांति और प्यार भरी ज़िंदगी की इच्छा रखने की तरफ़ धकेला। हमने तय किया कि हम गोरखपुर में एक जोड़े की तरह रहेंगे और जीवन यापन के लिए काम करेंगे।”

इस समय उनके पास रहने की कोई जगह नहीं है और वह एक कमरा किराये पर लेने की सोच रहे हैं। 

समलैंगिक विवाह को लेकर क्या कहता है क़ानून?

कविता और गुंजा की शादी देश का एक और अन्य ऐसा मामला है जिसे न तो मान्यता मिलेगी और न ही समाज में स्वीकृति। 9 जनवरी,वीरवार को सुप्रीम कोर्ट ने विवाह समानता मामले में संविधान पीठ के फ़ैसले को चुनौती देने वाली समीक्षा याचिकाओं को खारिज़ कर दिया है। जहां क्वीर समुदाय के लोगों को उम्मीद थी कि शायद यहां उनके बारे में सोचा जाएगा। 

विवाह समानता के ज़रिये लोग समान लिंग के लोगों से शादी कर सकते थे और विषमलैंगिक जोड़ों की तरह समान अधिकार और ज़िम्मेदारियां हासिल कर सकते थें। 

अदालत ने कहा कि जस्टिस बी.आर. गवई, सूर्यकान्त, बीवी नागरत्ना,पी.एस. नारायण और दीपंकर दत्ता की बेंच ने फ़ैसले में कोई गलती नहीं की है, जिसे दोबारा देखा जाए। 

17 अक्टूबर 2023 को भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने LGBTQIA+ व्यक्तियों को विवाह समानता का अधिकार से उन्हें वंचित कर दिया था। यह कहा था कि यह संसद का काम है कि वह क़ानून बनाये। 

बेंच ने कहा था कि, “हमने मूल फ़ैसले को देखा था और हमें रिकॉर्ड में कोई गलती नहीं मिली। हमें यह भी पाते हैं कि दोनों ही फ़ैसले क़ानून के अनुरूप लिए गए हैं, इसलिए इसमें हस्तक्षेप करने की ज़रूरत नहीं है। इस प्रकार से समीक्षा याचिकाओं को खारिज़ किया जाता है।”

देश की शीर्ष अदालत का यह फ़ैसला समान लिंग के व्यक्तियों को एक-दूसरे से शादी करने से रोकता है। वहीं कविता और गुंजा की शादी में बेशक़ वजह हिंसा के कारण एक साथ आना हो, लेकिन यह शादी दो समान लिंग के लोगों के बीच ही है। इससे उनकी उम्मीद सुरक्षा के साथ नए जीवन की शुरुआत करना है, जहां समाज और क़ानून का प्रतिबंध सबसे ज़्यादा है। 

वहीं जोड़े ने यह साफ़ कर दिया है कि वह समाज की हर मुश्किलों से लड़ने के लिए तैयार हैं। वह किसी को भी उन्हें अलग करने का हक़ नहीं देंगे। 

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