खबर लहरिया Blog Turmeric Cultivation: हल्दी की खेती से पहचान बनाने वाले किसान की सफल कहानी 

Turmeric Cultivation: हल्दी की खेती से पहचान बनाने वाले किसान की सफल कहानी 

“अभी जब खेत में जाता हूं तो बहुत अच्छा लगता है। इतनी हरी-भरी हल्दी खड़ी देखकर मन खुश हो जाता है। लोग भी कहते हैं  दिनेश, तुम्हारा हल्दी का खेत बहुत सुंदर लग रहा है।”

रिपोर्टर – श्यामकली, लेखन – रचना

raw turmeric

कच्ची हल्दी (फोटो साभार:श्यामकली )

भारतीय रसोई और संस्कृति में हल्दी का एक खास स्थान है। चाहे घर में कोई शुभ काम हो या किसी व्यंजन को रंग और स्वाद देना हो हल्दी के बिना कोई रस्म पूरी नहीं मानी जाती। शादी-विवाह में दूल्हा-दुल्हन को हल्दी लगाना सिर्फ एक रीति नहीं बल्कि शुद्धता और शुभता का प्रतीक माना जाता है। रसोई में हल्दी का इस्तेमाल हर दिन होता है और यही वजह है कि इसे सोने जैसी हल्दी कहा जाता है। अब ये बात जरुर जाननी चाहिए कि इस हल्दी की खेती कितनी महत्वपूर्ण होती है।

इसी हल्दी की महत्ता को समझते हुए महोबा जिले के ब्लॉक जैतपुर के कमरपुरा गांव के किसान दिनेश कुशवाहा ने इस बार बड़े पैमाने पर हल्दी की खेती शुरू की है। पहले वह थोड़ी बहुत हल्दी उगाते थे लेकिन इस वर्ष उन्होंने पूरे एक हेक्टेयर में हल्दी बोई है।                                        

दिनेश कुशवाहा (फोटो साभार: श्यामकली)

“पहले घर खर्च के लिए बोता था, इस बार मन में आया कि बड़े पैमाने पर करूं”

दिनेश कुशवाहा बताते हैं कि हल्दी की खेती उनके परिवार में पहले से होती थी। उनके पिता हल्दी उगाते थे और वहीं से उन्होंने खेती का तरीका सीखा। पहले वह घर के उपयोग और थोड़ी अतिरिक्त कमाई के लिए हल्दी बोया करते थे लेकिन इस वर्ष उन्होंने सोचा कि क्यों न इसे बड़े स्तर पर किया जाए जिससे बेहतर आमदनी हो सके। उनसे बात करने पर वे कहते हैं कि “अभी जब खेत में जाता हूं तो बहुत अच्छा लगता है। इतनी हरी-भरी हल्दी खड़ी देखकर मन खुश हो जाता है। लोग भी कहते हैं  दिनेश, तुम्हारा हल्दी का खेत बहुत सुंदर लग रहा है।”

ओला, बारिश या कीड़े हल्दी ठहर जाती है

 “हल्दी में ज्यादा मेहनत नहीं लगती और पैदावार चार गुना तक मिल जाती है। सबसे बड़ी बात है कि जानवर इसे खाते नहीं हैं।” दिनेश बताते हैं कि हल्दी की खेती किसानों के लिए कई मायनों में सुरक्षित मानी जाती है। गेहूं, चना, मटर, मसूर, तिल और मूंगफली जैसी फसलों पर अक्सर कीड़ों के हमले, पत्तों की बीमारियां, अचानक बारिश, तेज़ हवाएं या ओलावृष्टि का बड़ा असर पड़ता है। कई बार इन फसलों की पूरी पैदावार ही खराब हो जाती है लेकिन हल्दी इन जोखिमों से काफी हद तक बची रहती है।

हल्दी जमीन के अंदर विकसित होती है इसलिए मौसम की मार इसका ज्यादा नुकसान नहीं कर पाती। यही वजह है कि किसान इसे भरोसेमंद फसल मानते हैं। कुल मिलाकर हल्दी एक ऐसी फसल है जो कम संकट, कम खर्च और ज्यादा उत्पादन के कारण किसानों के लिए बेहतर विकल्प बनकर उभर रही है।

एक एकड़ में तैयारी, लागत और आमदनी

दिनेश के अनुसार हल्दी की खेती शुरू करने के लिए एक एकड़ जमीन में लगभग 5 क्विंटल बीज की जरूरत होती है। कुल खर्च 25 से 30 हजार रुपये के बीच आता है। वह बताते हैं कि यदि मौसम अनुकूल रहे और खेत की देखभाल समय पर की जाए तो हल्दी से होने वाली आमदनी लागत से कई गुना अधिक होती है। साल भर की मेहनत आखिरकार अच्छे दामों में बदल जाती है।

हल्दी साफ करने की प्रक्रिया (फोटो साभार: श्यामकली)

उद्यान विभाग भी करता है तारीफ़

दिनेश का हल्दी का खेत इतना साफ-सुथरा और बढ़िया तरह से विकसित है कि उद्यान विभाग भी उसकी सराहना करता है। वह बताते हैं कि उन्हें उद्यान विभाग की तरफ़ से फोन आता था कि आपकी हल्दी की क्वालिटी बहुत अच्छी है क्या आप इस बार मेले में भाग लेना चाहेंगे? उन्होंने कहा यह सुनकर बहुत गर्व होता है कि हमारी पहचान अब खेती से बन रही है। उद्यान विभाग की तरफ़ से मिल रही यह मान्यता दिनेश के आत्मविश्वास को और बढ़ाती है। वह हर साल फसल प्रदर्शनियों में हिस्सा लेते हैं जहां अपनी उपज लोगों को दिखाते हैं। दिनेश का मानना है कि खेती से सिर्फ़ आमदनी ही नहीं होती अच्छी पहचान भी किसान की एक बड़ी पूंजी होती है।                           

उद्यान विभाग में फसल की तारीफ़ (फोटो साभार: श्यामकाली)

जानवर खेत में न घुसें इसलिए लगाया बैरिकेड 

हल्दी भले ही जानवरों की पसंद की फसल नहीं होती लेकिन अगर कोई अन्ना पशु खेत में घुस जाए तो नुकसान बड़ा हो सकता है। हल्दी की गांठें जमीन के अंदर होती हैं और खेत में चलने से जानवर अनजाने में उन गांठों को पैरों के नीचे दबा देते हैं। इससे न सिर्फ पौधे खराब होते हैं बल्कि कई बार पूरी लाइन की उपज भी बेकार हो जाती है। इसी जोखिम को देखते हुए दिनेश ने अपने खेत की चारों ओर मजबूत बाड़ लगवाई है। यह बैरिकेड इस तरह तैयार किया गया है कि न तो गाय-भैंस घुस सकें और न ही सांड जैसे बड़े जानवर। वे कहते हैं “हल्दी की मेहनत पूरे साल की होती है। ऐसे में अगर जानवर खेत में घुस जाएं तो एक रात में सारी मेहनत खराब हो सकती है। इसलिए बाड़ लगाना जरूरी है।” इस तरह की सुरक्षा से दिनेश का खेत पूरी तरह सुरक्षित रहता है और वे खेती पर पूरा ध्यान दे पाते हैं।

जब खेती बहुत अच्छी हो जाए फसल चारों तरफ शेहरा-सी हरी दिखे और लोग दूर-दूर से उसकी तारीफ़ करने लगें तो ग्रामीण समाज में एक डर भी साथ आता है कि “कहीं नज़र न लग जाए।” दिनेश भी इस पारंपरिक सोच को मानते हैं। उनका खेत इतना सुंदर और घना दिखाई देता है कि गांव के लोग आकर देखते ही रह जाते हैं। कई लोग तारीफ़ करते हैं कि इतनी बढ़िया हल्दी की खेती पहले कभी नहीं देखी। दिनेश मुस्कुराते हुए बताते हैं कि अच्छी फसल देखकर लोगों की नजर भी लग जाती है ये गांव वालों का मानना है। इसलिए हमने खेत में बिछुआ और काजल (काली मिट्टी) रखी है। यह तरीका पुराने समय से चला आ रहा है जिससे निगाहें दूर रहती हैं।

इस छोटे से उपाय को वे मज़ाक में भी लेते हैं लेकिन साथ ही मानते हैं कि इससे मन को एक तरह की तसल्ली मिलती है। गांव की मान्यता है कि ऐसे उपाय खेत और मेहनत को बुरी नजर से बचाते हैं।

हल्दी की खेती कम जोखिम, ज्यादा मुनाफा

दिनेश का कहना है कि आज के समय में जब खेती लगातार चुनौतीपूर्ण होती जा रही है ऐसे में किसान यदि सही जानकारी लेकर फसल चयन करें तो हल्दी जैसी फसलें उनकी आमदनी बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभा सकती हैं। वे कहते हैं कि जो किसान नई सोच के साथ आगे बढ़ना चाहते हैं उन्हें हल्दी की खेती जरूर आज़मानी चाहिए। मेहनत थोड़ी लगती है लेकिन फायदा अच्छा मिलता है।

हल्दी सिर्फ खेत की पैदावार नहीं बल्कि भारतीय जीवन और परंपराओं का अहम हिस्सा है खाने का रंग और स्वाद, शादी-ब्याह की रस्में, पूजा-पाठ, दवा और घरेलू उपचार हर जगह हल्दी की अपनी खास जगह है। यही कारण है कि हल्दी की मांग हमेशा बनी रहती है और किसानों को इसका उचित दाम भी मिलता है। दिनेश की मेहनत लगन और समझदारी ने उन्हें अपने क्षेत्र में अलग पहचान दिला दी है। गांव के लोग उनके खेत देखकर प्रेरणा लेते हैं। उनकी यह सफलता बताती है कि अगर किसान सही दिशा में मेहनत करें और नई संभावनाओं को अपनाएं तो पारंपरिक खेती भी एक मजबूत आय का साधन बन सकती है।

 

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