विशाल कालिंजर मेले पर मंडरा रहा खतरा अब टल चुका है अब मेला बहुत ही उत्साह के साथ होगा |
जिला बांदा का कालिंजर किला प्राचीन काल में जेजाकभुक्ति (जयशक्ति चन्देल) साम्राज्य के अधीन था। बाद में यह १०वीं शताब्दी तक चन्देल राजपूतों के अधीन और फिर रीवा के सोलंकियों के अधीन रहा।
इन राजाओं के शासनकाल में कालिंजर पर महमूद गजनवी, कुतुबुद्दीन ऐबक, शेर शाह सूरी और हुमांयू आदि ने आक्रमण किए लेकिन इस पर विजय पाने में असफल रहे। कालिंजर विजय अभियान में ही तोप के गोला लगने से शेरशाह की मृत्यु हो गई थी।
मुगल शासनकाल में बादशाह अकबर ने इस पर अधिकार किया। इसके बाद जब छत्रसाल बुन्देला ने मुगलों से बुन्देलखण्ड को आजाद कराया तब से यह किला बुन्देलों के अधीन आ गया व छत्रसाल बुन्देला ने अधिकार कर से लिया।
बाद में यह अंग्रेज़ों के नियंत्रण में आ गया। भारत के स्वतंत्रता के पश्चात इसकी पहचान एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक धरोहर के रूप में की गयी है। वर्तमान में यह दुर्ग भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग के अधिकार एवं अनुरक्षण में है। हर साल यहां पर मेला लगता है।
इस साल भी 12 से 16 नवंबर को यह मेला लगने वाला है। इस मेले का नाम कालिंजर महोत्सव दिया गया है। बहुत ही अलग अवतार में पहली बार ऐसा मेला होगा।
डीएम हीरालाल के अनुसार इस बार यह मेला मिठाई और पिपहरी (मुंह से बजाने वाली सीटी) तक सीमित नहीं है।
योजनाओं की जानकारी जागरूकता पर खास जोर दिया गया है। सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होंगे। लोगों को अपनी आमदनी बढ़ाने का अवसर मिलेगा। अब तक में इस मेले के लिए शासन से 7 करोड़ 88 लाख रुपये का बजट आ चुका है। इस समय मेले की तैयारी में बढ़ोत्तरी हुई है क्यों की फिछले कुछ दिनों में कुछ कारणों वश मेला रद्द होने के असार थे लेकिन अब सब ठीक होने के बाद मेला बहुत ही जोर शोर से होगा |
यहाँ के गांववासियों में बहुत ही उत्साह है ,उनके लिए ये महोत्सव एक त्यौहार में उपहार मिलने से कम नही है इसमें मनोरंजन के साथ ही साथ रोज़गार का अवसर भी लोगों को मिलेगा |