सावन में बेटी के मायके जाने के बारे में आपने भी सुना होगा यह परंपरा बुंदेलखंड में आज भी कई घरों में निभाई जाती है इसका महत्व आज भी कायम है शादी के बाद पहले सावन में बेटियां अपने मायके जाती इन ही खुशियों के बीच सावनी देने की परंपरा भी है
विजय का कहना है की इस साल शादी भी बहुत कम हुई हैं आज जो शादी हुई है तो हम लोग 1 लोग जाकर बहू के मायके में सवनी लेकर गए थे लॉकडाउन के कारण जैसे पहले सावनी जाती थी इस साल अब नहीं गई है पहले 10 लोग जाते थे और इस साल कोरोना महामारी के उससे गए हैं तो रक्षा और मिठाई देकर चले आए हैं क्योंकि हमें लॉकडाउन का पालन भी करना है और भीड़भाड़ नहीं इकट्ठा करना है |
वहां पर अच्छा गाना बजाना भी औरतें करती थी 1 दिन भर रह कर आते थे इस साल वह नहीं हुआ है लेकिन जो परंपरा पुराने से चली आई है वह हम फर्ज निभाया है |
कुछ लड़कियों को कहना है कि जब हम लोगों की शादी होती है और शादी के पहली साल ससुराल वाले हम लोगों के मायके सावनी लेकर आते हैं तो हम लोगों को बहुत अच्छा लगता है कि हमारी भी सावनीआई है हर बेटियों को यही हुलास होता है कि सावनी आए अगर ससुराल से सावनी नहीं नहीं जाती है किसी के तो वह निराश रह जाते हैं नाग पंचमी से लेकर एक महीना कभी भी सामने आ सकती है जैसे की थी जातक रक्षाबंधन चलता है उसी रक्षाबंधन का ही एक हिस्सा है |