महिला सशक्तिकरण का एक मज़बूत विकल्प होने के बावजूद उनके भूमि अधिकारों से जुड़े कार्यक्रमों को मिलने वाली फ़ंडिंग बहुत सीमित है।
द्वारा लिखित लिंजी सरकार, शिवानी गुप्ता
द वुमैनिटी फाउंडेशन अपने डब्ल्यूएलआर कार्यक्रम के तहत भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में काम कर रहे कई ऐसे समुदाय-आधारित संगठनों के साथ काम कर रहा है जो महिलाओं के भूमि अधिकार से जुड़े हुए हैं। फाउंडेशन इन संगठनों के साथ काम करने के अलावा इन्हें फंड भी दे रहा है। हालांकि कई समुदाय-आधारित संगठन भूमि और अन्य महिला मुद्दों पर एक साथ काम करते हैं, ऐसे कार्यक्रमों के लिए फ़ंडिंग एक समस्या है। इस तरह के हस्तक्षेप कार्यक्रमों के लिए धन आम तौर पर उन बड़े कार्यक्रमों के लिए आवंटित बजट से लिए जाता है जो विशेष रूप से महिलाओं के भूमि अधिकारों (डब्ल्यूएलआर) के लिए नहीं होते हैं।
महिला भूमि अधिकारों के प्रति हमारी प्रतिबद्धता से हमें यह समझने में मदद मिली कि भारत में इसके लिए एक अपेक्षाकृत मजबूत फंडिंग इकोसिस्टम की आवश्यकता है। इसके परिणाम स्वरूप हमने उन चुनौतियों को समझने का प्रयास किया जिनके कारण फंडर इस इस क्षेत्र में प्रवेश करने से झिझकते हैं। हमारे कुछ अनुभव इस प्रकार हैं:
1. हस्तक्षेप के स्थापित मॉडलों की कमी
डब्लूएलआर के लिए फंडिंग इकोसिस्टम की इतनी कमी है कि ऐसे अनुकरणीय मॉडल और दृष्टिकोण मिल ही नहीं पाते हैं जिसे एक संभावित फ़ंडर अपना सकता हो। डब्लूएलआर को लेकर समाजसेवी संगठनों द्वारा ढांचागत हस्तक्षेप कार्यक्रमों में कमी के कारण प्रासंगिक कार्यक्रमों से होने वाले सकारात्मक प्रभाव के सीमित प्रमाण मिलते हैं। इस प्रकार फंडर्स को इस बात का भरोसा नहीं हो पाता है कि देशभर में भूमि और समुदायों की तमाम विविधताओं को देखते हुए उनके फंड का प्रभावी ढंग से उपयोग किया जाएगा – जिसके परिणामस्वरूप डब्ल्यूएलआर के साथ जुड़ने को लेकर आशंका बढ़ जाती है।
2. संभावित सामाजिक–राजनीतिक प्रतिक्रिया
भारत में भूमि तक पहुंच और नियंत्रण पर सामाजिक मानदंडों का गहरा प्रभाव पड़ता है। ग्रामीण क्षेत्रों में अपने काम के दौरान, हमने देखा है कि सबसे आम भूमि विवादों में हाशिये पर जीने वाले समुदायों की महिलाएं (और पुरुष) शामिल होती हैं। यदि लोगों को ऐसा लगे कि किए जा रहे काम के कारण मौजूदा सामाजिक ताना-बाना और क्रमिक व्यवस्था (हेरार्की) प्रभावित या बाधित हो रही है तो समुदाय के अपेक्षाकृत सशक्त लोगों का ग़ुस्सा भड़क सकता है। जिसके चलते अलग तरह की चुनौतियां सामने आ सकती हैं। नतीजतन, फंडर्स के मन में डब्ल्यूएलआर पर काम करने वाले संगठन पर हो सकने वाली संभावित प्रतिक्रिया को लेकर एक प्रकार की आशंका होती है।
3. जटिल मानने की धारणा
यह एक आम धारणा है कि भूमि से जुड़े सभी प्रकार के हस्तक्षेप कार्यक्रम ‘जटिल’ एवं ‘लंबा समय लेने’ वाले होते हैं। इसके साथ-साथ महिलाओं के भूमि स्वामित्व पर लिंग आधारित डेटा की कमी के कारण समस्या की गंभीरता और इसके ज़मीनी स्वरूप को लेकर अलग-अलग तरह की ग़लतफ़हमियां हैं।
डब्लूएलआर के लिए रिपोर्टिंग पैरामीटर विभिन्न डेटाबेस में अलग-अलग होते हैं। ऐसा लगता है कि राज्यों में लिंग आधारित डेटा को रिकॉर्ड करने के लिए अलग-अलग तंत्र हैं, जिनमें से कुछ राज्यों में उनके भूमि रिकॉर्ड में लिंग वाला कॉलम शामिल नहीं है। उदाहरण के लिए, पांचवें राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण ने महिलाओं की भूमि स्वामित्व 22.7 फ़ीसद होने का संकेत दिया, जबकि भूमि प्रशासन केंद्र द्वारा निर्मित महिला भूमि अधिकार सूचकांक ने राष्ट्रीय औसत 12.9 फ़ीसद होने का अनुमान लगाया है। समस्या की सीमा बताने में विफल रहने के अलावा, डेटा की कमी भी फंडर्स को भूमि को तकनीकी रूप से जटिल मुद्दा मानने पर मजबूर कर देती है। फंडर्स इसे एक ऐसे विषय के रूप में देखते हैं जिसके लिए विभिन्न प्रकार के कानूनों के व्यापक ज्ञान की आवश्यकता होती है और इसलिए वे इससे दूर रहते हैं। नतीजतन, वे उन कार्यों जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, या आजीविका को फंड करने का विकल्प चुनते हैं जिनसे वे अधिक परिचित हैं।
इस धारणा में शासन की मौजूदा प्रणाली के विरोध में अधिकार-आधारित हस्तक्षेप के लिए भी जगह है। कई मौजूदा हस्तक्षेप कार्यक्रमों का उद्देश्य मुख्य रूप से सिस्टम में पूरी तरह से बदलाव लाने की बजाय कार्यान्वयन की कमियों को दूर करना है।
भूमि-संबंधी हस्तक्षेप कार्यक्रम अक्सर ऐसी परियोजनाएं होती हैं जिनमें बहुत लंबा समय लगता है। उदाहरण के लिए, विरासत में मिली या खेती वाली ज़मीन से संबंधित हस्तक्षेपों का दो या तीन वर्षों में महत्वपूर्ण प्रभाव देखने को नहीं मिल सकता है। यह उन फंडर्स के लिए एक बचाव के रूप में काम करता है जो अपेक्षाकृत कम समय सीमा के भीतर अच्छे एवं अनुकूल परिणाम हासिल करने के उद्देश्य से हस्तक्षेप करना चाहते हैं।
सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में होने वाली प्रगति में ज़मीन की भूमिका को कम करने नहीं आंका जा सकता है।
और अंत में, डब्ल्यूएलआर पर काम के लिए मौजूदा तंत्र कई खंडों में विभाजित है, क्योंकि जमीन पर बहुत सारे प्रयास ऐसे समुदाय-आधारित महिला अधिकार संगठनों द्वारा किए जाते हैं जिनका प्राथमिक फोकस भूमि तक पहुंच बनाना नहीं है। जब उनसे जुड़ी महिलाएं भूमि-संबंधित मामलों में उलझती हैं तो उन्हें अक्सर ही डब्ल्यूएलआर के दायरे में खींच लिया जाता है। एक मजबूत और विकसित इकोसिस्टम की अनुपस्थिति यह सुनिश्चित करती है कि समुदाय-आधारित संगठनों और अन्य हितधारकों (जैसे सरकारी पदाधिकारी) की प्रभावी सहायता प्रदान करने की क्षमता सीमित बनी हुई है।
ऐसा कहकर कि स्थायी विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करने की दिशा में भूमि की भूमिका को कम करके नहीं आंका जा सकता है। महिलाओं के लिए भूमि का बहुआयामी प्रभाव हो सकता है, यह एक अंतर्निहित वित्तीय संपत्ति और आजीविका पैदा करने के साधन के रूप में काम कर सकती है। महिलाओं के लिए भूमि अधिकार सुनिश्चित करना एसडीजी 5 के व्यापक दायरे के तहत 13 एसडीजी में योगदान देता है: लैंगिक समानता और एसडीजी 2 के साथ इसके अंतर्संबंध: जीरो हंगर, एसडीजी08: अच्छा काम और आर्थिक विकास, एसडीजी 13: जलवायु गतिविधि, और एसडीजी 17: साझेदारी।
इसलिए, हम सभी के लिए यह जरूरी हो जाता है कि हमारे द्वारा किए जा रहे कामों का मूल्यांकन भूमि तक महिलाओं की पहुंच और स्वामित्व के नजरिए से किया जाए।
फ़ंडर अपने काम में महिला भूमि अधिकार को कैसे शामिल कर सकते हैं?
1. अपनी भूमिका समझें
डब्लूएलआर पर अपना काम शुरू करने के बाद भारत में भूमि की विविधता, इससे जुड़े मुद्दे और विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भों में महिलाओं पर लागू होने वाले नियमों और मानदंडों जैसी समस्याओं के कारण इसे समझने में हमें छह महीने का समय लग गया। इसलिए, हम इच्छुक फ़ंडर्स को इस बात के लिए प्रोत्साहित करते हैं कि वे अपनी पहले से फंड की जा रही परियोजनों को देखें और इस बात का मूल्यांकन करें कि क्या वे अपने कार्यक्रम का दायरा इस प्रकार बढ़ा सकते हैं जिसमें एक या दो भूमि संबंधित मामले भी शामिल हों।
यह विशेषरूप से उन फ़ंडर्स के लिए सहायक है जो पहले से ही ग्रामीण महिलाओं के साथ काम कर रहे हैं, और जो जानते हैं कि इन महिलाओं का जीवन और आजीविका दोनों ही जमीन के साथ मज़बूती से जुड़ी हुई है। इसी तरह, आम तौर पर वित्त पोषित विभिन्न मुद्दे – जैविक खेती, प्रकृति-आधारित आजीविका, प्रवासन और जलवायु – भूमि से जुड़े हुए हैं।
हितधारकों के मौजूदा इकोसिस्टम की खंडित प्रकृति एक वास्तविक समस्या है, क्योंकि डब्ल्यूएलआर पर काम करने वाले कई संगठनों और फंडर्स के बीच संचार का स्तर न्यूनतम है। यही कारण है कि हम परिदृश्य के बारे में अधिक जानने में रुचि रखने वाले किसी भी व्यक्ति से फोन पर बात करके हमेशा खुश होते हैं, क्योंकि हमारा मानना है कि इस क्षेत्र में अपने अनुभवों के माध्यम से हमने जो ज्ञान और विशेषज्ञता प्राप्त की है, उसे साझा करने से सकारात्मक योगदान मिल सकता है।
2. संकेतक बनाएं
हम इस बात को समझते और स्वीकार करते हैं कि ऐसे पर्याप्त साक्ष्य-आधारित मॉडल नहीं हैं जिनका पालन किया जा सके। इसलिए, हम कृषि, पारिस्थितिकी बहाली, खाद्य सुरक्षा और आवास संबंधित कार्यों को फंड देने वालों से हम पूछते हैं कि, ‘क्या आप महिलाओं के भूमि स्वामित्व या पहुंच या नियंत्रण पर आधारभूत डेटा के संग्रह को अपने किसी मौजूदा कार्यक्रम में शामिल कर सकते हैं?’
इस डेटा संग्रह को बड़े डब्ल्यूएलआर हस्तक्षेप का हिस्सा या अग्रदूत होने की ज़रूरत नहीं है। उदाहरण के लिए, यदि आपका संगठन स्वयं-सहायता समूहों (एसएचजी) के साथ काम कर रहा है और उनकी आजीविकाओं को बढ़ावा देने के बारे में उसके सदस्यों से बातचीत कर रहा है तो आप उनसे भूमि स्वामित्व से जुड़े सवाल पूछ सकते हैं, क्योंकि भूमि उन संपत्तियों का एक महत्वपूर्ण तत्व है जो उनके पास हो भी सकती है और नहीं भी। इस बातचीत से प्राप्त जानकारी प्रमुख संकेतकों के रूप में काम कर सकती हैं जो आपके संगठन या दूसरे संगठनों को डब्ल्यूएलआर पर अपेक्षाकृत अधिक संरचित कार्यक्रम के लिए प्रेरित कर सकती है। और इतना ना भी करे तो यह कम से कम भारत में महिलाओं के भूमि स्वामित्व की स्थिति से जुड़ी जानकारियों में महत्वपूर्ण कमी को दूर करने में भूमिका निभा सकती है।
3. संभावित चुनौतियों को किनारे करना
भारत में भूमि से जुड़े अधिकांश क़ानून कागज पर तो लैंगिक समानता को दर्शाते हैं लेकिन इनके कार्यान्वयन में अक्सर ही कमी रह जाती है। प्रभावी कार्यान्वयन को सक्षम करने वाले कार्यक्रमों को डिज़ाइन करना या उनमें शामिल होना शासन के विरोध में नहीं है। पहली नज़र में इसमें किसी को भी समस्या नहीं होनी चाहिए। कार्यक्रमों से समुदाय के समीकरणों पर असर पड़ने के चलते विरोध कभी भी उभर सकता है।
किसी क्षेत्र विशेष में मजबूत सामुदायिक उपस्थिति रखने वाले फंडिंग संगठन भी उनके समर्थन का लाभ उठा सकते हैं। वे प्रासंगिक हितधारकों की मैपिंग करके हस्तक्षेप के एक ऐसे प्रभावी मॉडल की पहचान कर सकते हैं जिससे न्यूनतम विरोध का सामना करना पड़े।
फंडर्स राज्य सरकारों द्वारा प्रचारित भूमि-संबंधित पहलों का समर्थन करने के तरीकों पर भी विचार कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, ओडिशा सरकार 2024 तक वन अधिकार अधिनियम के कार्यान्वयन को पूरा करना चाहती है। यह फंडिंग संगठनों के लिए कदम बढ़ाने और सहायता प्रदान करने के लिए एक आदर्श अवसर के रूप में कार्य करता है, जैसे कि क्षेत्र में आदिवासी समुदायों की महिलाओं को उनके समुदायों को वन अधिकार के दावे दायर करने में मदद करने के लिए प्रशिक्षण देना।
4. भूमि से जुड़े अन्य विकल्पों पर विचार करें
ऐतिहासिक रूप से, भूमि पर नियंत्रण एवं पहुंच दोनों की शक्ति और क्षमता एक समान है और यह बात अब भी सच है। इसलिए, वुमैनिटी फ़ाउंडेशन में, हम भूमि को सामाजिक और आर्थिक दोनों ही रूपों में महिला सशक्तिकरण के एक मार्ग के रूप में देखते हैं। यदि महिलाओं को सशक्त बनाना उन पहलों का एक प्रमुख उद्देश्य है जिन्हें आप वित्तपोषित करना चाहते हैं, तो हमारी सलाह यह है कि आप इसे प्राप्त करने के लिए भूमि को एक साधन के रूप दे देखें। वास्तव में, इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए भूमि सबसे टिकाऊ तरीका है क्योंकि यह एक ऐसी संपत्ति है जो महिलाओं को वित्तीय सुरक्षा, आश्रय, सामाजिक स्थिति, आय और आजीविका के अवसर प्रदान करती है। इसलिए, महिला सशक्तिकरण पर अपने काम की दीर्घकालिक स्थिरता का लक्ष्य रखने वाले फंडर्स को डब्ल्यूएलआर में निवेश करने पर दृढ़ता से विचार करना चाहिए। इससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है कि कार्यक्रम या परियोजना के समाप्त होने के बहुत समय बाद तक भी महिलाओं की एजेंसी बरकरार बनी रहेगी।
भूमि को सिर्फ़ पैसा कमाने में मदद करने वाली संपत्ति के रूप में देखने का संकीर्ण नज़रिया खतरनाक हो सकता है।
जब हमने पहली बार डब्ल्यूएलआर को वित्तपोषित करना शुरू किया, तो हमने अपने प्राथमिक लक्ष्य के रूप में महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण पर जोर दिया। लेकिन हम जल्द ही इस बात को समझ गये कि पैसे बनाने वाली संपत्ति के रूप में भूमि को देखने का अदूरदर्शी दृष्टिकोण खतरनाक हो सकता है। साथ काम करने वाली महिलाओं के साथ होने वाली बातचीत से हमने यह महसूस किया कि भूमि द्वारा दी गई सामाजिक सुरक्षा अक्सर उनकी नज़र में कहीं अधिक महत्वपूर्ण होती है, और यह एक ऐसी चीज है जिसे सभी फंडर्स को ध्यान में रखना चाहिए।
हालांकि, फ़ंडर्स की मानसिकता में बदलाव आना एक बड़ी बात है, उनके द्वारा उठाये जाने वाले कदम अपेक्षाकृत अधिक प्रभावी हो सकते हैं। इस मुद्दे पर काम करने वाले संस्थानों और संगठनों के साथ सम्मेलनों और सभाओं में शामिल होने से भी यह तय करने में मदद मिलती है कि इसे एजेंडा में जोड़ना उपयोगी है या नहीं।
अंत में, इस क्षेत्र में नवाचार के लिए बहुत अधिक जगह है। यह जलवायु और वैकल्पिक फंडिंग उपकरणों से संबंधित नवाचारों पर सोचने वाले फंडर्स के लिए अनुकूल है। यह देखते हुए कि भूमि और उसके अर्थशास्त्र पर कई परिणामों को मापा और सत्यापित किया जा सकता है, हमारा मानना है कि कड़े मूल्यांकन अध्ययनों के साथ विकास बॉड के रूप में यह निवेश का मामला है। इससे न केवल विश्वसनीय सबूत तैयार होंगे, बल्कि संसाधन-संकट से जूझ रहे इस मुद्दे के लिए संभावित रूप से वैकल्पिक फंडिंग विकल्प भी सामने आ सकते हैं।
इसलिए हम सभी को इस बात के लिए प्रोत्साहित करते हैं कि वे एक कदम पीछे हटें और इस बात को समझें कि भूमि का महिलाओं, उनके परिवारों, उनके समुदायों और साथ ही, ग्रह पर क्या स्थायी प्रभाव पड़ सकता है।
वुमैनिटी फाउंडेशन द्वारा समर्थित यह लेख पहले आईडीआर पर प्रकाशित किया गया है।
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