डाकिया डाक लाया, खुशी का पैगाम लाया। यह बोल कुछ सालों पहले तक सुनने को मिला करते थे। तब संचार का माध्यम केवल चिट्ठी होती थी। डाकिया की साइकिल की घंटी बजने का सबको इंतजार रहता था। समय बदला, इंटरनेट का दौर आया। डाक घर ने डिजिटल युग में कदम रखा। देखते-देखते सब कुछ बदल गया, लेकिन नहीं बदली तो डाकियों की साइकिल। आज भी कुछ ऐसे डाकिया हैं जो पुराने समय की तरह साइकिल से घर-घर चिट्ठी पहुंचा रहे हैं। हर साल 1 जुलाई को राष्ट्रीय डाक कर्मचारी दिवस मनाया जाता है। यह दिन दुनिया भर में डाक कर्मियों द्वारा की जाने वाली सेवा के सम्मान में मनाया जाता है। तो आइये जानते हैं डाक कर्मचारियों से की इस डिजिटल युग में कैसा चल रहा उनका सफर?
अपने ही ख़ास दिन को क्यों नहीं मानते डाक कर्मचारी?
तो सुना आपने लिफ़ाफ़ों में बंद यादों को सबके दिलों तक पहुंचाने वाले डाकिया आज अपने लिए ही मनाये जाने वाले खास दिन से अनजान हैं? वर्षों से अपनी सेवा दे रहे डाक कर्मचारियों को उनके हक़ के बारे में डाकविभाग को जागरूक करना चाहिए ताकि उन्हें भी अपने हक़ और अधिकार के बारे में पता चल सके।
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