यूँ तो कहा जाता है कि एक समुदाय अपने समुदाय के लोगों की भावनाओं को समझता है लेकिन हमने किन्नर समुदाय के लोगों से जाना कि उनके भावनाओं को उनके लोग भी नहीं समझते।
हमने आमतौर पर किन्नर समुदाय के लोगों को नाचते-गाते और खुशी बांटते हुए देखा है। उन्हें देखकर ज़्यादातर लोग यही सोचते होंगे कि उनके पास तो सब कुछ होगा। वह खुश होंगे पर वो कहते हैं न कि ज़रूरी नहीं हर मुस्कान सच्ची हो। कई बार मुस्कुराहट के पीछे दर्द छुपा रहता है। समाज इन्हें हमेशा खुद से अलग मानता आया है। आज संविधान में हवाला देने के लिए इन्हें कुछ अधिकार तो दे दिए गए हैं लेकिन इसके बावजूद भी वह आज समाज के हाशिये पर नज़र आते हैं। यहां तक की उन्हें जन्म देने वाले माँ-बाप भी उन्हें पूरी तरह से नहीं अपनाते। ऐसे में समाज उन्हें क्या अपनायेगा।
आप भी यह बात बेहतर तौर पर जानते होंगे कि जैसे ही परिवार को पता चलता है कि उनका बच्चा किन्नर के रूप में पैदा हुआ है वह उसे अपने परिवार से बाहर निकाल फेंकते हैं। इसके बाद उनका जीवन कैसा होता है? वह किन मुश्किलों से गुज़रते हैं? उनका क्या संघर्ष होता है? यह शायद ही किसी को पता होगा। आज इस आर्टिकल के ज़रिये हम कुछ इन्हीं सवालों के जवाब आपके सामने रखेंगे।
उनके जीवन के संघर्ष की कहानी जानने के लिए खबर लहरिया की रिपोर्टर नाज़नी रिज़वी ने किन्नर समुदायों के लोगों से सम्पर्क बनाना शुरू किया। यह सब कर पाना आसान नहीं था। उनकी दिल की बात को जान पाना बेहद ही मुश्किल था।
उनके साथ मेलजोल बढ़ाने के लिए नाज़नी ने उनके साथ खाना-पीना, उठना-बैठना शुरू कर दिया। अभी भी वह पूरी तरह से खुले नहीं थे कि वह अपने दिल की बात कह सकें। नाज़नी ने अपना मन बना लिया था कि चाहें कितनी भी मुश्किल हो वह उनके जीवन के बारे में ज़रूर जानेंगी। वह उनके जीवन के संघर्ष को दुनिया के सामने लाना चाहती थी। मुझे लगता है कि यही एक वजह थी जिसने नाज़नी की उम्मीदों को हमेशा आगे बढ़ते रहना हौसला दिया।
नाज़नी ने सबसे पहले किन्नर समुदायों के लोगों के साथ दोस्ती का हाथ बढ़ाया। वह यूपी के जिस भी जिले में रिपोर्टिंग के लिए जाती तो हमेशा किन्नर समुदाय के लोग कहाँ रहते हैं यह पता करतीं और उनसे जाकर मिलती। अब दोनों का रिश्ता बन रहा था। वह अब नाज़नी को बहन-बेटी जैसे रिश्तों का नाम देने लगे। अब वह कुछ हद तक अपने दिल की बात कहने लगे थे।
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साल 2019 में यूपी में लोकसभा का चुनाव हो रहा था। उसमें एक किन्नर भी चुनाव लड़ रहीं थीं। नाज़नी ने कहीं से उनका नंबर लिया। अपने सिनियरर्से से किन्नर प्रत्याशी का इंटरव्यू लेने की सहमति ली और अपनी सहकर्मी के साथ किन्नर प्रत्याशी का इंटरव्यू लेने निकल पड़ीं। जब नाज़नी अपनी सहकर्मी के साथ प्रत्याशी के घर पहुंची तो उन्होंने देखा कि एक कमरे में बहुत सारे किन्नर बैठे हुए थे और उनके बीच एक खूबसूरत महिला बैठी हुई थी। जब महिला का परिचय पता चला तो समझ आया कि यही वही किन्नर महिला हैं जो चुनाव लड़ रही है। इसमें सभी किन्नर उसका साथ भी दे रहे हैं।
नाज़नी ने किन्नर प्रत्याशी से कुछ राजनीति और निजी सवाल पूछे। उन्होंने राजनीति और पढ़ाई से जुड़े सवालों का जवाब दिया। इसके साथ ही उन्होंने जब अपनी ज़िन्दगी के बारे में बताया तो लगा कि उनकी ज़िंदगी कितनी खुशहाल है। इंटरव्यू के बाद नाज़नी ने उनके साथ खाना-खाया और इसके साथ कुछ बातें भी होती रहीं।
इसके बाद प्रचार के लिए उनके साथ पूरा दिन बिताया। किन्नर समुदाय के लोग प्रचार के लिए लोगों में पर्चे बाँट रहे थें। वोट मांगते समय कुछ लोग उनका सम्मान कर रहे थे तो वहीं कई लोग ऐसे भी थे जो उनका मज़ाक भी उड़ा रहें थे। इन सब चीज़ों के बावजूद भी वह सभय्ता के साथ वोट मांगते। हर कोई थोड़ी आशा-निराशा के साथ घर पहुंचा।
नाज़नी को घर जाने में देरी हो रही थी फिर भी वह चाय पीने के लिए रुक गयी। लगभग 20 लोगों के लिए चाय बन रही थी। अब इतने सारे लोगों के लिए चाय बनने में समय तो लगता ही है न, क्यों ? इतने में नाज़नी ने महिला हिंसा की बात छेड़ दी। इतने में साथ बैठे लोगों ने भी धीरे-धीरे अपने मन की भड़ास बाहर निकालना शुरू कर दिया। वहां बैठे किन्नरों ने नाज़नी के सामने अपनी बातें रखना शुरू कर दिया। अब वह उनकी कहानी, उनका दर्द ज़ुबानी बता सकती है।
मुस्कान (बदला हुआ नाम) ने कहा कि वह कैमरे के सामने नहीं पर ऑफ कैमरा अपनी बात कहेंगी। मुस्कान जबसे छोटी थी तब से ही उसे लड़कियों जैसे कपड़े पहनना अच्छा लगता था। मेकउप करना अच्छा लगता था। घर में जब भी अकेली रहती तो मम्मी की साड़ी बाँध लेती। लिपस्टिक लगा लेती। घर वाले देखते तो डांटते, मारते और लोग मज़ाक बनाते। मुस्कान 9 साल की थी। पांचवी कक्षा में पढ़ती थी। स्कूल में उसका खूब मज़ाक उड़ाया जाता। उसे बुरा भी लगता। वह अब स्कूल नहीं जाना चाहती थी। घर वाले उसे लड़का बनाकर रखना चाहते थें। उसके साथ कोई नहीं था। तीन भाई, तीन बहनों में वह चौथे नंबर की थी। माँ मुस्कान का साथ देती तो थी लेकिन माँ की भी घर पर नहीं चलती थी।
मुस्कान 11 साल की उम्र में घर छोड़कर दिल्ली भाग आई। अंजान दिल्ली की सड़कों पर वह यूहीं भटक रही थी। रात ठंडी थी। वह एक होटल के पास ही सुकुड़ कर लेट गयी। देर रात जब होटल का मालिक दुकान बंद करके घर जाने लगा तो उसने उसे देखा। वह डर गयी। मालिक ने पूछा, कौन हो ? कहां घर है? मुस्कान ने कहा, नहीं है।
होटल मालिक ने मुस्कान पर तरस कहते हुए पूछा कि तुमने खाना खाया है ? वह कुछ नहीं बोली। मालिक ने उसे खाना दिया। पूछा कि क्या वह उसके होटल में बर्तन धोने का काम करेगी। उसने भी हाँ कर दिया।
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अब वह होटल में काम करने लगी थी। धीरे-धीरे मालिक को उसे देखते-देखते यह तो मालूम हो ही गया था कि मुस्कान किन्नर है। यह जानने के बाद वह मुस्कान के साथ यौन हिंसा करने लगा। वह हर रोज़ उसके साथ ज़बरदस्ती करता। वह चीख़ती रहती, चिल्लाती रहती पर उस पर कोई फ़र्क नहीं पड़ता। हर समय उस पर नज़र रखी जाती कि कहीं वह भाग न जाए।
ये बातें सुनकर नाज़नी की आँखों से निकलते आंसू थम नहीं रहे थे। मुस्कान के चेहरे पर बीते दिनों का दर्द साफ़ दिखाई दे रहा था। वहीं उसके चेहरे पर ढकी हुई मुस्कान उसका दर्द बखूबी छुपाने की कोशिश कर रही थी।
मुस्कान ने आगे कहा कि कुछ किन्नर आये और उसे अपने साथ ले गए। इसके बाद भी मुश्किलें कम नहीं हुई थी। वह कहती, ‘ये समाज हमारे साथ जितना बुरा बरताव करता है यह सिर्फ वहीं जानते हैं। हम किन्नर को कोई नहीं समझता, खुद किन्नर भी नहीं। जो हमें अपने साथ बड़े दावे के साथ लेकर जाते हैं।’
वह अब किन्नर की टोली में शामिल हो चुकी थीं। वहां उसकी ट्रेनिंग शुरू हुई। किन्नरों की तरह ताली बजाना, नाचना, गाना सब उसे सीखना था। इन सब चीज़ों के बाद भी प्रताड़ना कम नहीं हुई थी। वह कहती है, ‘होटल मालिक शारीरिक हिंसा करता और पेट भर खाना खिलाता था। यहां वह सारे काम करती है फिर भी पेट भर खाना नहीं मिलता। कभी आधा पेट खाना मिलता तो कभी वो भी नहीं। कभी भूखे पेट ही सोना पड़ता। नियम था की जब तक सारे किन्नर खाना न खा ले वह नहीं खा सकती। किन्नरों के नियम के हिसाब से वह सबसे छोटी थी बेशक उसके आलावा और कई किन्नर उससे उम्र में छोटे थे।’
उस पर बाहर जाकर मांगने का दबाव बनाया जाने लगा। अगर वह नहीं जाती तो उसे खाना भी खाने को नहीं मिलता। वह 13 साल की हुई तो उससे किन्नर समुदाय के लोग यौनकर्मियों वाला काम करवाना चाहते थे। उसके मना करने पर कहा गया, ‘तुम हमारे नियम तोड़ रही हो, 50 हज़ार रूपये जुर्माना दो।’ टोली में कई बार बधाई मांग कर उसने जुर्माना भरा। जो पैसे वह कमाती वह सब तो ज़ुर्माना भरने में ही चला जाता।
वह हक के लिए लड़ने लगी तो किन्नर समुदाय के लोगों को लगने लगा की उनकी बातें बाहर जा रही है। किन्नरों की बात कहीं भी बाहर नहीं जानी चाहिए। लड़ते-लड़ते मुस्कान अब बड़ी हो गयी थी। वहीं हर कोई उस पर वार करने को तैयार बैठा था।
जब नाज़नी ने महिला हिंसा की बात छेड़ी थी तभी मुस्कान ने यह बात भी सामने रखी थी कि, ‘आप क्या समझती हैं कि क्या महिलाओं के साथ ही रेप और छेड़छाड़ जैसी घटनाएं होती हैं। किन्नरों के साथ महिलाओं से ज़्यादा घटनाएं होती हैं। हमें हर इंसान लूटने को तैयार होता है, प्यार जताता है लेकिन कोई हमसे सच्चा प्यार नहीं करता। हमें ऊपर वाले ने अधूरा बनाया है, हम अधूरे ही हैं। ये दुनिया हमें नाचते-गाते देखकर हमारा मज़ाक उड़ाती है। वहीं समाज के पुरुष हमारे साथ रात गुज़ारना चाहते हैं लेकिन हमें अपनाता कोई नहीं क्यूंकि हम किन्नर हैं।’
नाज़नी ने इतने में पूछा कि इतनी सब चीज़ों, संघर्ष और परेशानी के बीच क्या कभी उसे घरवाले याद नहीं आये? मुस्कान कहती, ‘बहुत याद आये। सबसे ज़्यादा माँ याद आई। माँ के लिए सारी औलाद बराबर होती है। मेरी माँ भी मुझसे बहुत प्यार करती थी। सबसे मेरे लिए लड़ती थी लेकिन उसकी एक नहीं चलती थी। माँ को एक तरफ घर का और दूसरी तरफ समाज का डर था। परिवार के लोग क्या कहेंगे कि एक किन्नर को जन्म दिया है। इनके यहां किन्नर पैदा हुआ है। सबको इस बात की पड़ी थी लेकिन किसी ने भी मेरे बारे में नहीं सोचा की मुझे कैसा महसूस होता है, मुझे कैसा लगता है। जब मैं देखती हूँ मेरा कोई नहीं है, मैं क्या हूँ, कौन हूँ, मेरी पहचान क्या है, मुझे खुद नहीं पता था। ‘
मुस्कान कहती कि, ‘अब मैं खुद अपने मर्ज़ी से जीती हूँ, खुश हूँ और घर वालों से भी मिल आती हूँ। मां से मिलती हूँ, भाई-बहन से मिलती हूँ। ‘
ये सब बाते करते-करते मुस्कान ने कहा, ‘मैंने सब ऑफ कैमरा बताया है क्योंकि कोई नहीं जानता किन्नरों के बनाए नियम भी किन्नरों के साथ हिंसक हैं।’
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