खबर लहरिया ताजा खबरें “हाँ किन्नर हूँ मैं, लेकिन हूँ तो इंसान ही न!”

“हाँ किन्नर हूँ मैं, लेकिन हूँ तो इंसान ही न!”

किन्नर समाज के बारे में अक्सर लोगों की जिज्ञासा बनी रहती है। समाज के इस वर्ग को दुनिया भर में थर्ड जेंडर के नाम से जाना जाता है। सालों से अपने हक़ की लड़ाई लड़ता आ रहा किन्नर समुदाय भारत में आज भी एक आदमी की तरह इज़्ज़त पाने के लिए संघर्ष कर रहा है। भारत में किन्नरों को सामाजिक बहिष्कार किया जाता है, उन्हें समाज से अलग–थलग कर दिया जाता है। लगभग 5 लाख की आबादी वाले किन्नर समाज को सरकार ने 2014 में नालसा जजमेंट पास करके और 2016 में धारा 370 हटाकर उनकी अहमियत तो देश वासियों को बताई ही लेकिन इन सब के बावजूद भी आज तक हमारा समाज उन्हें स्वीकार नहीं कर पाया है।

हमने हाल ही में मुलाक़ात करी उत्तर प्रदेश के किन्नर अखाड़ा महामंडलेश्वर और प्रदेश अध्यक्ष कौशल्या नंदगिरी से और उनसे किन्नर समुदाय के इसी संघर्ष के बारे में जाना। कौशल्या (पूर्व नाम टीना) का सफर भी बाकी किन्नरों की तरह कठिनाइयों भरा रहा लेकिन उन्होंने समाज के तानों और परिवार की परवाह किए बिना उत्तर प्रदेश के किन्नरों को वो इज़्ज़त दिलाने की ठानी जिसके वो योग्य हैं। तो आइए मिलते हैं कौशल्या से और जानते हैं कि वो कैसे समाज की सोच में बदलाव लाने के लिए प्रयास कर रही है है।

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