इस कोरोना काल में परिवार का महत्त्व “विश्व परिवार दिवस” :हम हर साल 15 मई को विश्व परिवार दिवस मनाते हैं. इसकी शुरुआत 1994 में हुई. जिसका उदेश्य संयुक्त राष्ट्र अमेरिका ने समूचे संसार में लोगों के बीच परिवार की अहमियत बताने के लिए घोषित किया था। 1995 से यह सिलसिला आज भी जारी है ।
आपको पता है परिवार को समाज की सबसे छोटी इकाई माना जाता है, लेकिन ये कहना गलत नहीं कि परिवार समाज की सबसे मजबूत इकाई है, जो एक सभ्य समाज के निर्माण में मुख्य योगदान देती है.परिवार के बिना इंसान की कल्पना भी नहीं की जा सकती या बहुत कष्टकारी होगा। हर इंसान किसी न किसी परिवार का सदस्य रहा है या फिर है। उससे अलग होकर उसके अस्तित्व को सोचा नहीं जा सकता है। हमारी संस्कृति और सभ्यता कितने ही परिवर्तनों को स्वीकार करके अपने को बदल ले, लेकिन परिवार संस्था के अस्तित्व पर कोई भी आंच नहीं आई। वह बने और बन कर भले टूटे हों लेकिन उनके अस्तित्व को नकारा नहीं जा सकता है। उसके स्वरूप में परिवर्तन आया और उसके मूल्यों में परिवर्तन हुआ लेकिन उसके अस्तित्व पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है। परिवार के महत्व का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि आज पूरी दुनिया में कोरोना वायरस की वजह से लॉकडाउन है. ऐसे में लाखों लोग अपने परिवार से दूर कहीं न कहीं फंसे हुए हैं.
सभी जल्द से जल्द अपने परिवार के बीच पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं. इससे पता चलता है कि पूरी दुनिया में कोई कितना ही आधुनिक क्यों न हो जाए, कितना भी व्यस्त हो जाए, लेकिन परिवार के साथ जो खुशी और सुकून है उसका कोई मुकाबला नहीं कर सकता। तभी तो हज़ारों लोग पैदल ही घर के लिए निकल गए कुछ अपने घर पहुंचे तो कुछ हमेशा के लिए खो गए लेकिन इसके बाद भी घर पहुँचने का लोगों का जूनून कम नहीं हुआ. कइयों की नौकरी चली गई, काम ठप हो गये लेकिन इस हाल में भी लोग लोग अपने परिवार के पास पहुंचना चाहते हैं. वैसे भारत में हमेशा से परिवार का एक खास महत्त्व रहा है जहाँ सयुक्त परिवार शान समझा जाता था उसे आधुनिकता ने छीन लिया लेकिन इस मुश्किल समय ने फिर से सबको साथ खड़ा कर दिया।
इस दिवस को मनाने के लिए कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इस दिन के लिए जिस प्रतीक चिह्न को चुना गया है, उसमें हरे रंग के एक गोल घेरे के बीचों बीच एक दिल और घर अंकित किया गया है। इससे स्पष्ट है कि किसी भी समाज का केंद्र परिवार ही होता है। परिवार ही हर उम्र के लोगों को सुकून पहुँचाता है।
लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए हर साल इसका थीम भी बनता है जैसे
2015 का थीम- “पुरुष प्रभारी था? समकालीन परिवारों में लैंगिक समानता और बच्चों के अधिकार ”।
2016 का थीम- “परिवार, स्वस्थ जीवन और स्थायी भविष्य” था।
2017 का थीम -“परिवार, शिक्षा और कल्याण” था।
2018 का थीम- “परिवार और समावेशी समाज” था।
2019 का थीम- “परिवार और जलवायु कार्रवाई: एसडीजी 13 पर ध्यान केंद्रित” था।
और इस साल यानी 2020 का थीम है- विकास में परिवार
थीम पर कार्यशालाओं और सेमिनारों में चर्चा की जाती है, लोगों को मजबूत करने और परिवार इकाइयों का समर्थन के लिए कुछ शैक्षिक अभियान भी शुरू किए जाते हैं. यहां तक कि टूल किट भी कुछ देशों में उत्पन्न किये जाते हैं ताकि समारोहों के आयोजन में लोगों की मदद की जा सके और आबादी के एक विशेष वर्ग पर फोकस किया जाता है जैसे स्कूली बच्चों, युवा, कॉलेज जाने वाले बच्चे इत्यादि. इस साल कोरोना के कारण सेलिब्रेशन ऑनलाइन होगा. इस दिन परिवारों की परिस्थितियों से संबंधित कुछ मुद्दों पर भी प्रकाश डाला जाता है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस दिन ने दुनिका में कई देशों को प्रेरित किया है कि वे भी परिवार दिवस मनाएं और जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन करें जो कि समुदाय पर आधारित हो और परिवार के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करे.