खबर लहरिया Blog लॉक डाउन से लोगों के रोजगार पर असर 

लॉक डाउन से लोगों के रोजगार पर असर 

जैसा की हम सभी जानते है की कोरोना वायरस एक माहामारी का रूप धारण कर चुका है| जिसमे हमारे देश के प्रधानमंत्री मंत्री नरेद्र मोदी ने देश को 21 दिन के लिए सम्पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा कर दी है| इस कारन से कहीं ना कहीं हर जगह अर्थव्यस्था पर और गरीब और असहाय लोगों के ऊपर बहुत बुरा असर पड़ रहा है| यहाँ तक की कितने घरों में चूल्हा तक नहीं जल पा रहा होगा, ऐसा ही मामला है| चित्रकूट जिले के ब्लॉक मानिकपुर का


मानिकपुर ब्लाक में टोटल 62 ग्राम पंचायत हैं, जिसमें से 50 परसेंट ऐसे लोग है, जो आदिवासी जाति के हैं कई गाँव ऐसे है की आदिवासी जाती के अलावा कोई है ही नहीं जैसे ग्राम पंचायत खिचड़ी में लगभग 18 सौ वोटर है लगभग सौ वोटर दालित विराद्री से है और 50 वोटर कुशवाहा विराद्री से है और इसी तरह दस बीस अन्य विराद्री हैं और कुछ प्रजापति परिवार से है| लेकिन ज़्यादातर कोल जाती है और यहाँ की सभी महिलाएं जंगल से लकड़ी लाती थी और ट्रेन में ले जाकर शहर में बेचती थी उसी से उनका भरण पोषण और घर का खर्चा चलता था उसी से अपना और बच्चों का पेट पाल कर गुजारा करती थी|

अब इन लोगों का रोज़ी रोटी रुका हुआ है इनका कहना था की हम सिर्फ लकड़ी बेचकर ही अपने घर का खर्चा चलाते थे और रोज का लकड़ी भेजती थी रोज का राशन चावल, आटा खरीद के ले जाती थी अब तो उनके पास खाने के लिए भी नहीं है क्योंकि अब न ट्रेन चलती है ना जंगल से लकड़ी काट पाती हैं और ना शहर में बेच सकती हैं इस तरह की स्थिति आ गई है कि उनके बच्चे ज्यादातर भूखे रह रहे है|  

 

 ग्राम पंचायत खिचड़ी के शिवपूजन कोल का कहना है की  एक आदिवासी समाज ही ऐसा है की राज्य बदलने से जिला बदलने से सीडी बदल जाती है नही अन्य जात में तो ऐसा नही होता है वो लोग अमान्य व्यक्ति है जनरल व्यक्ति है समाज में कहीं भी निवास कर सकता है ओबीसी का व्यक्ति है वो पुरे भारत में कहीं भी चला जाये वो ओबीसी ही रहेगा| आदिवासी के साथ ही ऐसा क्यूँ व्वहार होता है हम लोग समझ नही पाए अज तक 

जो और जाती के लोग है वो लोग शिक्षा के प्रति जागरूक हैं| लेकिन आदिवाही ही एक ऐसी जाती है जो जंगल के किनारे रहे कर लकडि़यों के सहारे ही अपना पेट भरता है शिक्षा के प्रति जागरूक नहीं होते है वो शिक्षित नहीं रहते हैं| यही कारण है कि वह जंगल के तरफ भागते है जंगल में ही रोजगार ढूंढते हैं| जबकि गाँव से बीस किलोमीटर दूर पर जंगल है और पैदल ही जाना पड़ता है| यहाँ किसी भी प्रकार का महिलाओ को रोजगार नहीं मिलता है, जब तेंदू पत्ता का सीजन आता है, तब यहाँ के लोग  80 % रोजगार करते है सम्पूर्ण लॉकडाउन  से अब ये काम बिलकुल ठप पड़ा है किसी भी प्रकार का रोजगार नही है| इस लिए खाने के लाले पड़े हैं और वह लोग परेशान हैं