हाल ही में यूपी के उन्नाव ज़िले में ब्लॉक प्रमुख चुनाव के दौरान मुख्य विकास अधिकारी दिव्यांशु पटेल को एक लोकल पत्रकार के साथ मारपीट करते देखा गया था, जिसके बाद एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने पत्रकार पर हुए इस हमले की कड़ी निंदा की है।
उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ महीनों में पत्रकारों के साथ हिंसा के मामलों ने रफ़्तार पकड़ ली है। हमें आए दिन यूपी में पत्रकारों के साथ हिंसा और बदसलूकी के मामले सुनने को मिल जाते हैं लेकिन प्रशासन इन मामलों को संज्ञान में लेने के बजाय उल्टा पत्रकारों को ही गलत साबित करने में लग जाता है। हाल ही में यूपी के उन्नाव ज़िले में ब्लॉक प्रमुख चुनाव के दौरान मियांगंज ब्लॉक के मुख्य विकास अधिकारी दिव्यांशु पटेल को एक लोकल पत्रकार के साथ मारपीट करते देखा गया था, जिसके बाद एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने पत्रकार पर हुए इस हमले की कड़ी निंदा की है।
बता दें कि एडिटर्स गिल्ड की स्थापना 1978 में प्रेस स्वतंत्रता की रक्षा और समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के संपादकीय नेतृत्व के मानकों को बढ़ाने के दोहरे उद्देश्यों के साथ की गई थी। 12 जुलाई को ईजीआई ने कहा कि वह उत्तर प्रदेश में अधिकारियों द्वारा पत्रकारों और मीडिया के खिलाफ भारी सख्ती की निरंतर प्रवृत्ति से काफी परेशान है।
ब्लॉक प्रमुख चुनाव के दौरान अधिकारी ने की पत्रकार के साथ मारपीट-
ईजीआई का कहना है कि यह घटना उत्तर प्रदेश में पत्रकारों के साथ बढ़ते उत्पीड़न को दर्शाती है। संस्था ने यह भी कहा कि उत्तर प्रदेश में पत्रकारों को अपराधों, महामारी के प्रबंधन आदि मुद्दों पर स्वतंत्र रूप से रिपोर्टिंग करने से रोकने के लिए इन लोगों के साथ ऐसा व्यवहार किया जाता है। 10 जुलाई को उन्नाव के मुख्य विकास अधिकारी दिव्यांशु पटेल को एक टीवी रिपोर्टर का पीछा करते हुए और उसकी पिटाई करते हुए कैमरे में कैद कर लिया गया था। हालांकि घटना के एक ही दिन बाद अधिकारी ने पीड़ित रिपोर्टर से माफ़ी मांग ली लेकिन देश भर में अब लोग यूपी प्रशासन और पत्रकारों के साथ बार-बार हो रही हिंसा को लेकर सवाल उठा रहे हैं।
इससे पहले पिछले महीने भी द एडिटर्स गिल्ड ने यूपी पुलिस के पत्रकारों को गंभीर घटनाओं की रिपोर्टिंग करने से रोकने के लिए एफआईआर दर्ज करने के मामले की निंदा की थी लेकिन उसके बावजूद भी अभी तक पत्रकारों के साथ हो रही इस बदसुलूकी में बदलाव नहीं आए हैं।
यूपी पत्रकारों के साथ हिंसा के भी मामलों में सबसे आगे-
देखा जाए तो देशभर में सबसे ज़्यादा पत्रकारों के साथ उत्पीड़न के मामले यूपी में ही देखने को मिलते हैं। 2020 में हाथरस में एक दलित महिला के बलात्कार और हत्या के मामले में रिपोर्टिंग करते समय सिद्दीकी कप्पन नामक पत्रकार को गिरफ्तार किया गया था, और वो आजतक यूएपीए के तहत जेल में है। परिवार जनों की कई अपीलों के बावजूद भी इस मामले में कोई सुनवाई नहीं हो रही है।
द प्रिंट की 24 जून 2020 की रिपोर्ट में बताया गया कि रेपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स के अनुसार, “उत्तर प्रदेश पत्रकारों के लिए सबसे खतरनाक क्षेत्रों में से एक है। खासकर उन लोगों के लिए जो बालू माफ़िया को कवर करने की कोशिश करते हैं।“
पत्रकारों की हत्या के मामलों में भारत सबसे ऊपर-
इसके अलावा विश्व भर में पत्रकारों की हत्या के मामलों में भी भारत सबसे ऊपर है। कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट द्वारा तैयार की गयी ग्लोबल इमपयुनिटी इंडेक्स 2020 की रिपोर्ट के अनुसार भारत उन दर्जनों देशों में से एक है जो अपने पत्रकारों के हत्यारों के खिलाफ बात करता है और जिसकी स्थिति इस समय बहुत खराब है। अक्टूबर 2020 को कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट ने अपनी रिपोर्ट में उजागर किया कि हमारे देश में पत्रकारों को मौत के लिए छोड़ दिया जाता है और उनके हत्यारे आज़ाद हो जाते हैं।
इन आंकड़ों से यह साफ़ ज़ाहिर होता है कि भारत में सच्ची पत्रकारिता की क्या कीमत है। जहाँ एक तरफ पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ भी कहा जाता है, वहीँ दूसरी तरफ प्रशासन और सरकार इसकी रक्षा करने के लिए कोई सख्त कदम नहीं उठाती दिखती। अगर द एडिटर्स गिल्ड जैसी और भी संस्थाएं भी देशभर और उत्तर प्रदेश में हो रही पत्रकारों के साथ हिंसा के खिलाफ आवाज़ उठाएंगी तो शायद हम आगे ऐसी घटनाओं को होने से रोक सकते हैं।
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