दिसंबर 2012 में दिल्ली में हुए निर्भया केस ने सिर्फ देश ही नहीं दुनिया को भी हिलाकर रख दिया था। तब राजपथ, जंतर-मंतर, रामलीला मैदान समेत देश के कई हिस्सों में निर्भया के दोषियों को फांसी देने की मांग की गई थी लेकिन कानूनी पेंच के कारण सात साल बाद भी निर्भया के दोषियों को फांसी पर नहीं लटकाया जा सका है।
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— The Front (@TheFrontIndia) February 5, 2020
2 बार निर्भया केस के गुनाहगारों की फांसी टल गई कभी नाबालिक के नाम पर तो कभी दया याचिका के नाम पर. इसके खिलाफ केंद्र सरकार ने इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा था कि चारों दोषी न्याय प्रणाली का गलत फायदा उठा कर फांसी को टालने की कोशिश कर रहे हैं। लिहाजा जिन दोषियों की दया याचिका खारिज हो चुकी है या किसी भी फोरम में उनकी कोई याचिका लंबित नही हैं, उनको फांसी पर लटकाया जाए।निर्भया केस पर सुनवाई 18 दिसंबर तक टली
बता दें कि न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत ने 1 और 2 फरवरी को विशेष सुनवाई के बाद 2 फरवरी को अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था। उच्च न्यायालय ने सरकार को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि जब 2017 में ही सर्वोच्च न्यायालय ने निर्भया के गुनहगारों की अपील खारिज कर दी थी तो कोई डेथ वारंट जारी करवाने के लिए आगे नहीं आया।किसी एक दोषी की याचिका लंबित होने पर बाकी 3 दोषियों को फांसी से राहत नही दी जा सकती।
जस्टिस कैत ने बोले कि मुझे यह कहने में कोई दिक्कत नहीं है कि सभी दोषियों ने पुनर्विचार याचिका दायर करने में 150 दिन से भी ज्यादा का समय लिया। अक्षय ने तो 900 दिन से भी ज्यादा समय के बाद अपनी पुनर्विचार याचिका दाखिल की। सभी दोषी अनुच्छेद 21 का सहारा ले रहे हैं जो उन्हें आखिरी सांस तक सुरक्षा प्रदान करता है। दोषियों ने सजा में देरी करने की रणनीति अपनाई है। इसलिए मैं सभी दोषियों को एक हफ्ते बाद डेथ वारंट के क्रियान्वयन के लिए उनके खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी जाएगी। जिसके बाद अदालत को उम्मीद है कि अधिकारियों को कानून के अनुसार काम करना होगा। इसके बाद अदालत ने पटियाला हाउस कोर्ट के आदेश से अलग जाकर फैसला लेने से इनकार कर दिया।
निर्भया के माता-पिता के वकील जितेंद्र झा ने कहा, ‘न्यायमूर्ति कैत ने जवाब दिया कि उन्होंने शनिवार और रविवार को सुनवाई की, जिससे पता चला कि अदालत मामले की अर्जेसी को समझती है और यह भी आश्वासन दिया है कि वह जल्द से जल्द आदेश को पारित करेंगे.
पिछले 7 साल से इस मुद्दे पर बहस ही हो रही है. कभी फांसी होने की तो कभी रोकने की अब आखरी फैसला कब आएगा ?