नमस्कार, मैं मीरा देवी, खबर लहरिया की मैनेजिंग एडिटर अपने शो राजनीति रस राय में आपका स्वागत करती हूं। जहां देखो सुनो वहां सिर्फ राजनीति का ही जलवा। उठते-बैठते, खाते-पीते, सोते-जगते कर लो राजनीति! जैसे कि मैं करती हूं हर बार इस शो में। ऐ राजनीति तुम भी क्या याद रखोगे कि तुम्हें भी क्या मोदी और गोदी राज मिला था। राजनीतिक राजनीति कर रहे हैं, दर्शक मजा ले रहे हैं, तमाशबीन तमाशा देख रहे हैं और मरने वाले मर रहे हैं। वही हाल कि अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी, टके शेर खाजा।
मणिपुर की हालत देखकर अब देश दुनिया रो पड़ी। देशों की सरकारें बात करना शुरू कर दी हैं लेकिन क्या फर्क पड़ता है? हमारे विश्वगुरु प्रधानमंत्री जो ठहरे, कह देंगे ये हमारा मामला है। भले ही दुनिया में अपना देश शर्मशार क्यों न हुआ हो। कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। फर्क तो तब पड़ता है जब पठान जैसी फिल्में आ जाएं। याद है न कि फिल्म में दीपिका पादुकोण की बिकनी पर बवाल मच गया था। देश के अंदर संस्कारियों और इज़्ज़दारों की बाढ़ आ गई थी लेकिन मणिपुर मुद्दे पर ऐसी बाढ़ नहीं आई। जिम्मेदार, चौकीदार, ठेकेदार में से किसी की आत्मा आहत नहीं हुई।
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आज देखो मणिपुर पर किस कदर का बवाल संसद में रच रहे हैं। पक्ष हो या विपक्ष एक दूसरे को घसीट रहे हैं। सिर्फ एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए वह किसी भी हद से पार हो रहे हैं। बीजेपी के संस्कारी तिलकधारी सांसद मनोज तिवारी को सुन लीजिए, क्या जलवा पेल रहे हैं। अपनी सत्ता के बल पर अनाप-शनाप बक रहे हैं, विपक्ष को सरेआम गालियां दे रहे हैं। सांसद जया बच्चन को देख लीजिए कैसे जिम्मेदारी का ठीकरा किसी और पर फोड़ रही हैं। कैबिनेट मंत्री स्मृति ईरानी को सुन लीजिए, कभी मुद्दों को उठाने में सबसे ड्रामेबाज नेता के रूप में जानी जाती थीं और आज के जलवे उनके माशाल्लाह हैं।
आप पार्टी के सांसद संजय सिंह को संसद सत्र से ही बर्खास्त कर दे रहे हैं। मामले पर बात न करके विपक्ष के राज्य के मामलों पर कटाक्ष कर रहे हैं। संसद में विपक्ष कह रहा है कि इस मामले पर वह प्रधानमंत्री को सुनना चाहते हैं लेकिन प्रधानमंत्री तो मुंह में टेप चिपका चुके हैं। बीच में गृहमंत्री अमितशाह कूद पड़ते हैं और दावा करते हैं कि वह मणिपुर मामले पर बातचीत करने को तैयार हैं लेकिन विपक्ष जानबूझकर चर्चा नहीं होने दे रहा क्योंकि विपक्ष को लगता है कि उनको भी अपने राज्य की जवाबदेही देनी पड़ेगी।
भले ही नेता, मंत्री और सरकार इसमें बात न करती हो या अपनी जिम्मेदारी से भागने के लिए ड्रामेबाजी करती हो लेकिन इस मामले पर विरोध का स्वर भी जारी है। कुछ मीडिया, कुछ एक्टीविस्ट, कुछ राजनीतिक लोग, कुछ देश भी इस मामले पर लगातार लिख और बोल रहे हैं। आंदोलन जारी हैं लेकिन केंद्र और राज्य सरकारों के कान में जून तक नहीं रेंगती। बहरे, गूंगे, अंधे बने बैठे हुए हैं। ऐसे लगता है कि इनको कोई फर्क नहीं पड़ता और अगर पड़ता भी है तो लोकसभा चुनाव 2024 को जीत पाने का। अंधभक्त चिंघारे जा रहे हैं- भले हो पूरे भारत में चीख पुकार अबकी बार फिर से मोदी सरकार।
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