खबर लहरिया Blog Electoral bonds: चुनावी चंदा/Electoral Bonds को सुप्रीम कोर्ट ने बताया ‘असंवैधानिक’, बॉन्ड से जुड़े डाटा के बारे में जानें 

Electoral bonds: चुनावी चंदा/Electoral Bonds को सुप्रीम कोर्ट ने बताया ‘असंवैधानिक’, बॉन्ड से जुड़े डाटा के बारे में जानें 

मोदी सरकार द्वारा लाई गई इलेक्टोरल बॉन्ड की स्कीम को 15 फरवरी 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक घोषित किया जिसे भाजपा सरकार द्वारा हमेशा से “पारदर्शी” व्यवस्था बताया गया। 

                                                                                        इलेक्टोरल बॉन्ड की सांकेतिक तस्वीर ( फोटो साभार – न्यूज़लॉन्ड्री)

इलेक्टोरल बॉन्ड यानी चुनावी चंदा के ज़रिये किसने कितने पैसे राजनैतिक पार्टियों को दिए, इस बारे में छः साल तक गोपनीयता बनाये रखने के बाद आखिरकार सुप्रीम कोर्ट का आदेश दिए जाने से जानकारियां सामने आने लगी हैं। 

यह जानकारियां अभी भी थोड़ी अस्पष्ट व भ्रामक हैं। निर्वाचन आयोग ने पहला डाटा 14 मार्च व दूसरा डाटा 17 मार्च को निकाला। आज 21 मार्च को भी कुछ और डाटा आने की उम्मीद जताई जा रही है। 

यह भी जान लें कि यह वह डाटा नहीं है जिसे सर्च किया जा सकता है। इसमें बताया गया है कि किसने कितना डोनेट किया लेकिन यह नहीं बताया गया है कि किस पार्टी को, किस तारीख को दिया गया है।

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क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड?

मोदी सरकार द्वारा लाई गई इलेक्टोरल बॉन्ड की स्कीम को 15 फरवरी 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक घोषित किया जिसे भाजपा सरकार द्वारा हमेशा से “पारदर्शी” व्यवस्था बताया गया। इसे अवैध करार देने से पहले, चुनावी बॉन्ड कागजी उपकरण थे, जिन्हें कोई भी भारतीय स्टेट बैंक से खरीद सकता था और एक राजनीतिक दल को दे सकता था, जो उन्हें पैसे के बदले भुना सकता था।

इसे लेकर पत्रकार रवीश कुमार ने अपने ऑफिसियल यूट्यूब चैनल पर कहा, 

“इस फ्रॉड व्यवस्था को लाने के लिए भारतीय जनप्रतिनिधित्व कानून,आयकर कानून और कंपनी एक्ट में संसोधन किया गया था। इन सभी संसोधनों को भी रद्द कर दिया गया है। इसके साथ ही यह भी कहा गया कि जो इलेक्टोरल बॉन्ड पिछले 15 दिनों में आये हैं (15 फरवरी से पहले), इस्तेमाल नहीं किये गए हैं, उन्हें वापस करना होगा /”

बता दें, मोदी सरकार द्वारा साल 2018 में यह योजना शुरू की गई थी। उनके द्वारा दावा किया गया था कि चुनावी बॉन्ड दानदाताओं को गुमनाम रूप से पार्टियों को धन योगदान करने की अनुमति देकर भारत में राजनीतिक वित्त को साफ करने में मदद करेंगे।

उस समय तक, राजनीतिक दलों के पास सिर्फ नियमित बैंक चेक और हस्तांतरण के ज़रिये से 20,000 रुपये से ज़्यादा का योगदान स्वीकार करने का विकल्प था। उन्हें चुनाव आयोग को दायर सालाना रिपोर्ट में उन दानदाताओं के नामों का ज़रूरी रूप से बताना पड़ता था।

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क्या बॉन्ड गोपनीय थे? 

न्यूज़लॉन्ड्री की रिपोर्ट कहती है, अगर तकनीकी तौर पर देखा जाए तो हाँ। बैंक चेक के अलावा, बॉन्ड पर कोई नाम नहीं था। जब बॉन्ड भुनाया गया तो बैंकिंग प्रणाली में कोई नाम सामने नहीं आये। हालांकि, यह कहा गया कि इससे दानकर्ता को गुमनाम रहने की अनुमति मिलती है। वहीं हाल के खुलासों से यह भी साफ़ हुआ कि दानदाताओं ने बॉन्ड सौंपते समय पार्टियों को अपनी पहचान बताई है।

इसका मतलब यह भी है कि राजनीतिक दलों को दानदाताओं की पहचान के बारे में मालूम था। यहां जो सबसे ज़रूरी बात रही, वह यह थी कि भारतीय जनता को इसकी कोई जानकारी नहीं थी। इसके साथ ही चुनावी बॉन्ड योजना ने राजनीतिक दलों को चुनाव आयोग के सामने बिना कुछ कहे बचकर निकलने में भी मदद की, वह भी इस तर्क के साथ कि बॉन्ड गुमनाम थे। 

सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस योजना को इस आधार पर अवैध करार दिया गया कि जनता को यह जानने का अधिकार है कि राजनैतिक दलों को किसने पैसे दिए हैं। कोर्ट ने भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) को बॉन्ड के खरीदारों और लाभार्थियों दोनों के बारे में जानकारी का खुलासा करने का आदेश दिया। बैंक को 6 मार्च तक चुनाव आयोग ने डाटा सौंपने के लिए कहा था, जो इसे सार्वजनिक करेगा। 

  सुप्रीम कोर्ट व एसबीआई की हुई बातचीत की कटाक्ष करते हुए सांकेतिक तस्वीर (फोटो साभार – सतीश आचार्य)

इसके बाद बैंक ने कोर्ट से इसके लिए जून तक का समय मांगा। कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी। 

14 मार्च को आये डाटा में क्या सामने आया? 

14 मार्च को भारत निर्वाचन आयोग ने अपनी वेबसाइट पर दो सूचियां अपलोड कीं। पहली सूची में 12 अप्रैल, 2019 और जनवरी 2024 के बीच खरीदे गए हर बॉन्ड के खरीदारों के नाम, तारीख और बॉन्ड के मूल्यवर्ग के बारे में बताया गया था। 

इस सूची से यह भी निकलकर सामने आया कि बॉन्ड की सबसे बड़ी खरीदार एक लॉटरी कंपनी (lottery company) थी। इंफ्रास्ट्रक्चर और फार्मास्युटिकल कंपनियां ( pharmaceutical companies) इसमें प्रमुख दानकर्ता थीं व रिलायंस से जुड़ी कंपनियों ने अन्य चीजों के अलावा बॉन्ड खरीदे थे। इसमें यह भी दिखाया गया कि प्रवर्तन निदेशालय ( Enforcement Directorate) जैसी केंद्रीय एजेंसियों द्वारा छापे मारे जाने के बाद 21 कंपनियों ने बॉन्ड खरीदे थे।

दूसरी सूची में राजनीतिक दलों द्वारा भुनाए गए हर एक बॉन्ड की तारीख व राशि शामिल थी। रिपोर्ट में बताया गया, इसमें पता चला कि हर पार्टी को कुल कितना पैसा मिला है। सब कुछ देखने और समझने के बाद यह सामने आया कि भाजपा ने भुनाए गए 16,492 करोड़ रुपये के बॉन्ड में से 8,250 करोड़ रुपये खर्च किए थे – जोकि चुनावी बॉन्ड के माध्यम से दिए गए आधे से ज़्यादा धन है।

                                                              ज़ारी किये गए डाटा के शुरू के दो पन्नों की संयुक्त, सांकेतिक फोटो

14 मार्च को निकाले गए डाटासेट में यह रही कमी 

रिपोर्ट बताती है, डाटा में दो चीज़ें गायब थीं। पहला ये कि हर बॉन्ड का अद्वितीय कोड जो खरीदार और लाभार्थी का मिलान करने में मदद कर सकता है। बॉन्ड पर छिपे हुए अल्फ़ान्यूमेरिक कोड के होने के बारे में सबसे पहले 2018 में पत्रकार पूनम अग्रवाल द्वारा खुलासा किया गया था। इसके बाद इनका फोरेंसिक लैब में परीक्षण कराया गया।

बता दें, अल्फ़ान्यूमेरिक कोड संख्याओं, अक्षरों, प्रतीकों और विराम चिह्नों की एक श्रृंखला है जिसका इस्तेमाल उत्पाद की जानकारी और विशेषताओं को एन्कोड करने के लिए किया जाता है।

दूसरा, सूचियों में 12 अप्रैल, 2019 से पहले खरीदे गए बॉन्ड का कोई डेटा नहीं था – जिसकी राशि 4,000 करोड़ रुपये से ज़्यादा थी।

17 मार्च को आये दूसरे डेटासेट के बारे में जानें 

                                                              (फोटो साभार – सतीश आचार्य)

दूसरा डेटासेट 17 मार्च 2024 को चुनाव आयोग की वेबसाइट पर डाला गया था। इसमें वे रिपोर्टें थीं जो राजनीतिक दलों ने 2019 और 2023 के बीच आयोग को दायर की थीं, जिन्हें सीलबंद कवर में सुप्रीम कोर्ट में जमा किया गया था।

बहुत-सी पार्टियों ने सिर्फ उन बॉन्डों की तारीख और राशि का खुलासा किया जिन्हें उन्होंने भुनाया था। तीन पार्टियों- द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (the Dravida Munnetra Kazhagam),अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (All India Anna Dravida Munnetra Kazhagam) और जनता दल (सेक्युलर) ने अपने सभी दानदाताओं के नामों का खुलासा किया। उन्होंने इस झूठ को स्पष्ट कर दिया कि बॉन्ड गुमनाम थे।

डीएमके के खुलासे से पता चला कि उसका सबसे बड़ा दानकर्ता लॉटरी कंपनी, फ्यूचर गेमिंग एंड होटल सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड थी। जनता दल (सेक्युलर) (Janata Dal (Secular) ने खुलासा किया कि 2018 के कर्नाटक चुनाव से पहले पार्टी को दान देने वालों में इंफोसिस (Infosys) भी शामिल थी। 

दो अन्य पार्टियों ने 2019 के लिए बॉन्ड दाताओं के नामों का खुलासा किया। इसमें आम आदमी पार्टी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी शामिल है। इसमें बाद के सालों की जानकारी के बारे में नहीं बताया गया है। 

                                                           निर्वाचन आयोग द्वारा ज़ारी दूसरे डाटासेट की तस्वीर

अभी और कौन-सा डाटा आना बाकी है?

रिपोर्ट के अनुसार,बॉन्ड के अद्वितीय कोड अभी भी सामने आने बाकी हैं। 18 मार्च को, सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय स्टेट बैंक से “खरीदे और भुनाए गए” सभी बॉन्डों के “अल्फ़ान्यूमेरिक नंबर” (alphanumeric number) के साथ डेटा जमा करने और 21 मार्च तक एक हलफनामा यानी एफिडेफिट दायर करने को कहा था। उसमें कहा गया था कि बॉन्ड से संबंधित कोई भी जानकारी छिपाई नहीं गई है।

एक बार कोड के बारे में मालूम हो जाने के बाद यह पता लगाया जा सकेगा कि किसने, किस पार्टी को पैसे दिए हैं।  साथ ही इस डाटा के इस्तेमाल से यह भी जाना जा सकता है कि पार्टी और राशि देने वाले के बीच का संबंध कैसा है। 

रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि कोड सामने आने के बाद भी डेटा में एक महत्वपूर्ण अंतर बना रहेगा जोकि मार्च 2018 और अप्रैल 2019 के बीच की अवधि की ओर संकेत करता है। 

रिपोर्ट कहती है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने यह विचार किया है कि 12 अप्रैल, 2019 से पहले की अवधि की जानकारी का खुलासा नहीं किया जाना चाहिए। लोकसभा चुनाव से पहले हाथों-हाथ बदली गई 4,000 करोड़ रुपये की बॉन्ड राशि की एक निश्चित तस्वीर बनाना मुश्किल होगा, जिसमें भाजपा ने भारी जीत हासिल की थी।

इलेक्टोरल बॉन्ड की पृष्ठभूमि 

इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर चीफ जस्टिस ऑफ़ इण्डिया डीवाई चंद्रचूड़,जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई,जस्टिस जमशेद बुरजोर पारदीवाला व जस्टिस मनोज मिश्रा की संवैधानिक पीठ ने पिछले साल नवंबर में सुनवाई पूरी की थी व फैसला सुरक्षित कर लिया था। सुनवाई तीन दिनों तक चली थी। 

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पीछे कई लोगों ने लंबी लड़ाई लड़ी है। इलेक्टोरल बॉन्ड पर अपनी रिपोर्ट (15 फरवरी 2024) पेश करते हुए पत्रकार रवीश कुमार ने पूछा, “क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर संवैधानिक और नैतिक ज़िम्मेदारी लेंगे? वह कानून जो उनके ही नेतृत्व में पारित हुआ जिसे आज कोर्ट ने असंवैधानिक करार दिया। “

यह भी कहा कि चुनावी बॉन्ड के ज़रिये सरकार द्वारा विपक्ष की आर्थिक सहायता को कम किया गया है। 

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला कोई मामूली फैसला नहीं है। एक असंवैधानिक व्यवस्था के सहारे इलेक्टोरल बॉन्ड का जन्म हुआ। यहां उन्होंने कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा इलेक्टोरल बॉन्ड पर उठाये गए सवालों के बारे में भी बात की। कहा, एक नेता जो चुनावों में लगातार  हारता है लेकिन आज उनके सवाल सही साबित हो रहे हैं।

18 नवंबर 2019 को ट्वीट (वर्तमान में X) किये गए एक पोस्ट में राहुल गांधी ने लिखा, “मतलब यही नया भारत है जहां रिश्वत और कमीशन को इलेक्टोरल बॉन्ड कहा जाता है।” इसमें उन्होंने huffpost की एक पोस्ट रीट्वीट की थी जिसमें तब के वित्त मंत्री अरुण जेटली व रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल की तस्वीर थी। Huffpost अब बंद हो चुका है। 

रिपोर्ट के अनुसार, 15 फरवरी 2024 को उन्होंने दोबारा से ऊपर लिखी बात को ट्वीट किया। कांग्रेस ने साल 2019 के अपने घोषणा पत्र में लिखा है कि अगर सरकार बन गई तो इलेक्टोरल बॉन्ड को समाप्त कर देंगे लेकिन कांग्रेस चुनाव हार गई। आज वह काम सुप्रीम कोर्ट ने किया। 

इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम और जनप्रतिनिधित्व कानून व कंपनी कानून में किये गए संसोधन अनुछेद 19 (1) (a) का उल्लंघन करते हैं, सूचना के अधिकार के विरुद्ध हैं और संवैधानिक हैं। 

इसके आलावा पत्रकार रवीश कुमार की रिपोर्ट्स बताती है, लोग यह आशा कर रहें थे कि उन्हें ज़ारी की गई सूची में अडाणी (Adani Group) का नाम दिखेगा लेकिन ऐसा कुछ सामने नहीं आया। यहां किसी भी तरह का डायरेक्ट लिंक देखने को नहीं मिला। इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वालों में अडाणी का नाम नहीं था। टाटा (Tata Group) का नाम भी इसमें नहीं था। आश्चर्य करने वाली बात थी कि इसमें देश की बड़ी-बड़ी कंपनियों के नाम शामिल नहीं थे। 

इलेक्टोरल बॉन्ड यानी चुनावी चंदे को लेकर अभी और भी कई सवाल हैं जो पूछे जाने हैं, व पूछे जाएंगे क्योंकि अभी और भी डाटा आना बाकी है। 

 

(स्त्रोत व इनपुट – न्यूज़लॉन्ड्री,स्क्रॉल, द न्यूज़ मिनट व स्वतंत्र पत्रकारों की संगठित रिपोर्ट, रवीश कुमार ऑफिसियल यूट्यूब चैनल)

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