खबर लहरिया Blog अंधविश्वास से या अस्पताल से, किससे होगी बीमारी दूर?

अंधविश्वास से या अस्पताल से, किससे होगी बीमारी दूर?

भजन व शंकर कहते हैं, ‘हमारे यहां पथरिया माता तो है पर यहां सब बाहरी लोग ही आते हैं। गांव के लोगों की भीड़ नहीं होती। जितना समय हम भीड़ देखने में बर्बाद करेंगे उतने की मज़दूरी कर लेंगे। हमें तो लगता है जो लोग आते हैं वह बिलकुल फ्री हैं इसलिए आते हैं। अगर ऐसा होने लगा तो किसी को दुःख-तकलीफ ही न हो।’

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                                                                                                                                   पूजा करने आई भीड़

‘पथरिया माता’ के नाम से हज़ारों लोगों की भीड़ छतरपुर जिले के चिरवारी गांव में इकठ्ठा हो रही है। अंधविश्वास व सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास कर लोग यह सोचकर यहां आ रहे हैं कि यहां आकर उनकी बीमारियां ठीक हो जाएंगी। कुछ लोग इस पर विश्वास कर रहे हैं और कुछ लोग नहीं भी।

चिरवारी गांव के गुमान नाम के व्यक्ति ने बताया, कैसे इतनी भीड़ इकठ्ठा होती है पता नहीं। गांव से निकलकर लगभग दो किलोमीटर जंगल पहाड़ है। वह वन विभाग की ज़मीन है। उन्होंने सुना था कि बधाई नाम का लड़का आया था। उससे कहा गया था कि तुम्हें एक पेड़ को नीचे गिराना है, उससे उसकी आँखों की बीमारी ठीक हो जायेगी और उसकी ठीक हो गई। बाकी उन्हें उसके बारे में कुछ नहीं पता।

आगे यह भी कहा, इससे गरीब व्यक्तियों की रोज़ी-रोटी चलने लगी है। उन लोगों की नारियल की दुकान है और एक दिन में लगभग डेढ़ सौ नारियल बिक जाते हैं। पहले वह कुछ नहीं करते थे। अब उनके लिए बहुत अच्छा हुआ है कि दूर-दराज़ लोग उनके यहां पर आते हैं।

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‘बाहरी लोग बिलकुल फ्री हैं इसलिए आते हैं’ – लोग

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अन्य एक महिला ने बताया, उन्हें हमेशा हल्का बुखार रहता था और भूख भी नहीं लगती थी। अफवाह सुनकर वह भी पथरिया माता के यहां गई लेकिन उनकी बीमारी ठीक नहीं हुई। इसके बाद उन्होंने कई अस्पतालों में दिखाया। जब कहीं भी ठीक नहीं हुआ तो उन्होंने छतरपुर अस्पताल में जांच करवाई और उन्हें पता चला कि उन्हें गैस की बीमारी है। अब उनका इलाज चल रहा है।

आगे कहा, ‘मैं यह मान कर गई थी कि ठीक हो जाता है, कहीं ठीक नहीं होता। मैं यह लोगों को बताना चाहती हूँ कि अस्पताल में ही ठीक होता है।’

भजन व शंकर कहते हैं, ‘हमारे यहां पथरिया माता तो है पर यहां सब बाहरी लोग ही आते हैं। गांव के लोगों की भीड़ नहीं होती। जितना समय हम भीड़ देखने में बर्बाद करेंगे उतने की मज़दूरी कर लेंगे। हमें तो लगता है जो लोग आते हैं वह बिलकुल फ्री हैं इसलिए आते हैं। अगर ऐसा होने लगा तो किसी को दुःख-तकलीफ ही न हो।’

लोगों ने कहा, भीड़ देखकर लग रहा है कि पूरी तरह से बीमारी ठीक ही हो जाएगी लेकिन ऐसा कुछ नहीं है। यह लोगों का अंधविश्वास है।’

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पेड़ से जुड़ा है अन्धविश्वास

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लोगों ने बताया, वहां कोई पुजारी या साधू नहीं है। बस एक नीम का पेड़ है। उसकी डाली को सिर पर रखते हैं और परिक्रमा लगाते हैं। नारियल को पेड़ पर बांध देते हैं। फिर ट्रकों की संख्या में नारियल फेंक जाते हैं। वहीं गरीब लोगों को दो रूपये देने में मुश्किल पड़ता है।

किसी ने कहा, यह सब चुनावी प्रचार के लिए है तो किसी ने कहा वन विभाग ने ही यह ज़मीन दी है।

मामले में कोई व्यक्ति-विशेष सामने निकलकर नहीं आया। केस विश्वास-अंधविश्वास के इर्द-गिर्द ही घूमता रहा।

देखा जाए तो, अंधविश्वास की उपज व्यक्ति की ज़रूरतों और उसके पूरे होने से जुड़ी हुई है व साथ ही क्या चीज़े या ज़रिया उनकी ज़रूरतों को पूरा करते हैं। अंधविश्वास का कोई भी रूप हो सकता है। यह समझना ज़रूरी है कि आस्था व अंधविश्वास दो अलग चीज़ें हैं। हम किसी चीज़ पर विश्वास कर सकते हैं पर बिना सोचे-समझे, बिना परख किये किसी भी चीज़ को करना या मानना अंधविश्वास है।

इस खबर की रिपोर्टिंग श्यामकली द्वारा की गई है। 

 

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