फुटपाथ पर सब्जियां, कपड़ें और न जाने कितने तरह के सामान मिलते हैं। ये लोग सड़कों पर रेहड़ी-पटरी लगा कर अपनी जीविका चलाते हैं लेकिन रेहड़ी-पटरी लगाना इनके लिए इतना आसान नहीं होता। इन्हें सड़कों पर गालियां सुनने को मिलती है। साथ ही इन्हें आए दिन रेहड़ी हटाने के लिए कहा जाता है।
रिपोर्ट – सुशीला देवी
सड़कों के किनारे आप ने बहुत से पटरी और रेड़ी के बाज़ार लगाने वालों को देखा होगा और वहां से खरीदारी भी की होगी। फुटपाथ पर सब्जियां, कपड़ें और न जाने कितने तरह के सामान मिलते हैं। ये लोग सड़कों पर रेहड़ी-पटरी लगा कर अपनी जीविका चलाते हैं लेकिन रेहड़ी-पटरी लगाना इनके लिए इतना आसान नहीं होता। इन्हें सड़कों पर गालियां सुनने को मिलती है। साथ ही इन्हें आए दिन रेहड़ी हटाने के लिए कहा जाता है। कई पुलिस वाले भी इनसे मुफ्त में सब्जी भी ले लेते हैं।
इन पथ विक्रेताओं पर इस तरह के अत्याचार न हो इसके लिए देश की संसद में मई 2014 को एक अधिनियम पारित किया गया। जिसे ‘पथ विक्रेता अधिनियम 2014’ कहा गया। इस अधिनियम को 10 साल पूरे हो गए हैं लेकिन पथ विक्रेताओं की स्थिति ज्यों की त्यों बनी है। इसके लिए उत्तर प्रदेश के जिले वाराणसी में हाकर्स ज्वाइंट एक्शन कमेटी ने बैठक आयोजित की। जिलाधिकारी वाराणसी के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मांगपत्र भेजा गया।
हाकर्स ज्वाइंट एक्शन कमेटी पूरे देश में रेहड़ी-पटरी विक्रेताओं का एक संयुक्त मंच है जोकि पूरे देश के अलग-अलग राज्यों में पथ विक्रेताओं के मुद्दे पर काम करती है।
हरिश्चन्द्र बिंद का कहना है कि “आज अधिनियम को बने 10 वर्ष हो चुके हैं शुरू में कुछ दिनों में जरूर प्रयास हुए लेकिन बाद में यह कार्य केवल कागजों में ही सिमटकर रह गया।”
वेंडरों को नहीं मिला वेंडिंग सर्टिफिकेट
दीपक का कहना है कि, “कोरोना महामारी के बाद केंद्र सरकार ने साल 2022 में “प्रधानमंत्री स्वनिधि निधि योजना” चलाई। इसके बाद पथ विक्रेताओं का सर्वे किया गया और उन्हें योजना से जोड़ा गया लेकिन आज भी कुछ वेंडरों के अलावा ज्यादातर लोगों के पास वेंडिंग सर्टिफिकेट नहीं है। इस अधिनियम के शुरुआती अनुच्छेद में नगर विक्रय समिति (TVC) बनाने का प्रावधान किया गया है जो कि वोटिंग द्वारा चुने जाएंगे। ज्यादातर जगहों पर टीवीसी के मेंबर अपने करीबी को बना देते हैं। जिनको एक्ट के बारे में कोई जानकारी नहीं होती है।”
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सामान बेचने की व्यवस्था नहीं
बैठक में अपनी बात रखते हुए पथ-विक्रेता अर्जून ने कहा कि “हमारा सर्वे तो कर लिया गया है लेकिन आज तक सर्टिफिकेट जारी नहीं किया गया। न ही हमारे लिए सामान बेचने की व्यवस्था हो रही है। हमारे सामने के दुकानदार हर रोज पटरी पर दुकान लगाने के बदले में 100 रुपये लेते हैं लेकिन हम लोग किससे फरियाद करें कोई सुनने वाला नहीं है।”
शौचालय की व्यवस्था नहीं
सविता का कहना है कि “हम भी सब्जी बेचते और यहां पांच साल से हैं लेकिन हम लोगों को शौचालय की बड़ी समस्या होती है क्योंकि शौचालय के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। हमें शौच के लिए अपने कमरे पर जाना पड़ता है और यहाँ दुकान लगाएंगे तो किसी को देखने के लिए कह कर जाना पडता है।
चुनाव के समय योजना का बखान करती सरकार
सरकार तो चुनाव के समय ही अपनी योजना को लेकर लोगों के पास पहुँच रही है। विकास सोनकर का कहना है कि इसको लेकर के कई बार बैठक भी हुई। हम लोगों की बीच पदाधिकारी भी बनाए गए लेकिन आज तक हमें कोई सुविधा नहीं मिल पाई है।
अधिनियम लागू हो गया फिर भी आए दिन पथ विक्रेताओं के साथ बदतमीजी होती है। हमसे वसूली के रूप में पैसे मांगते हैं और डराते धमकाते हैं।
देश में कहने को गरीबों के लिए योजनाएं लाती हैं पर क्या सच में ये अधिनियम और योजनाएं उन लोगों के लिए काम करती है? उन्हें वो अधिकार दिलाती है? उन्हें बिना किसी बाधा के जीवन गुजरने का हक़दार बनाती है?
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