91 साल के जगमोहन आज भी दिन में 6 घंटे खेतों में जाकर काम करते हैं। वह खाना सिर्फ दिन में एक बार खाते हैं। वह अपनी एनर्जी का श्रेय (क्रेडिट) अपने बचपन के पुराने खान-पान को देते हैं।
रिपोर्ट – गीता देवी
उम्र का पड़ाव जैसे-जैसे पार होता है, इंसान के शरीर को फिट रहना पड़ता है। यदि व्यक्ति इसे नज़रअंदाज करता है और अपने खान-पान, स्वास्थ पर ध्यान नहीं देता, तो शरीर में कई तरह की बीमारियां हो जाती है। शरीर में मोटापा आ जाता है या तो कुछ। आज के समय में व्यक्ति बीमारियों का घर है जिसके हिस्से 2-4 बीमारियां तो रहती हैं, यदि वह अपने शरीर पर ध्यान नहीं देते। उम्र से व्यक्ति कभी कमजोर नहीं होता यदि वह अपने शरीर का खानपान का अच्छे से ध्यान रखें और नितदिन व्यायाम करें। किसी भी काम को करने के लिए उम्र की सीमा नहीं होती है, आदमी अपने जज्बे से हर उम्र में जवान रह सकता है। समय-समय पर बहुत से लोगों ने भी साबित किया है कि उम्र उन पर हावी नहीं हो सकती है। ऐसा ही साबित कर दिखाया, रायगढ़ जिले के तमनार तहसील अंतर्गत आने वाले नगरा मुंडा गांव के 91 वर्षीय जगमोहन ने।
जगमोहन ऐसे तो उम्र में काफी बड़े है क्योंकि 91 साल तक एकदम फिट रहना मुश्किल लगता है, पर नामुमकिन नहीं है। आजकल के युवा और बच्चे खान-पान पर ध्यान नहीं देते इसलिए इस उम्र तक आ नहीं पाते। चलिए सुनते हैं जगमोहन ने ऐसा क्या किया जो उनके अंदर जीवन को जीने का जज्बा उन्हें इस उम्र तक ले आया।
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बचपन के पुराने खान-पान की एनर्जी आज भी कायम
जगमोहन कहते हैं कि आज भी वह दिन में 6 घंटे खेतों में जाकर काम करते हैं। वह खाना सिर्फ दिन में एक बार खाते हैं। वह अपनी एनर्जी का श्रेय (क्रेडिट) अपने बचपन के पुराने खान-पान को देते हैं। अब आप सोच रहे होंगे कि ये कैसा खानपान था जो आपको आज भी इतना स्वस्थ रख रहा है, वो भी 24 घंटे में एक बार खाना खाने पर? आप भी सोच रहे होंगे इसका जवाब तो चलिए आगे पढ़ते हैं।
सेहत का राज
अपने सेहत का राज बताते हुए जगमोहन, हंसते हुए कहते हैं, “मैं खाता तो चावल हूं, पर आज भी दूध और दही का खूब इस्तेमाल करता हूँ। एक टाइम था जब हमारे यहां हर कोई जंगल का राजा होता था। खेतों में भी मोटा अनाज होता था और जंगल से महुआ, अचरवा (चिरौंजी का फल) जैसी पौष्टिक चीजें भी मिलती थी। तब हम दूध, दही के साथ महुआ चना और गुड़ का नाश्ता करते थे। खेतों से ताजी सब्जियां मिल जाती थी जैसे दाल, जो पोषण से भरपूर रहती हैं। उसी खानपान से मजबूती मिलती थी। मेरी सेहत बनी रहती है और मैं कम बीमार पड़ता हूँ।”
खबर लहरिया का उनसे सवाल, “आज के युवाओं को आप क्या सीख देना चाहेंगे?”
अपने व्यक्तिगत अनुभव के अनुसार इस पर वह नाराज हो गए। उन्होंने कहा कि “आज के युवा किसी की नहीं सुनते हैं। आज के युवा तो काम तो दूर की बात, चलने में भी आलस दिखाते हैं। आधुनिकता ने सब कुछ इतना आसान बना दिया है कि खान-पान और ऐसो आराम की जिंदगी घास-फूस और टेक्नोलॉजी की हो गई है।”
इस उम्र में भी संभाल रहे अकेले जिम्मेदारी
जगमोहन खबर लहरिया रिपोर्टर से बात करते हुए बताते हैं कि उनके 5 बेटे, दो बेटी और पत्नी नहीं है। उनका एक बेटा टीचर है तो दूसरा बेटा कथा भागवत करता है। तीनों मिलकर खेती किसानी करते हैं। वह कहते हैं कि, “बदलते समय की मांग कहिए या दूसरे क्षेत्रों में रुचि, क्योंकि खदानों के कारण खेती भी अच्छी नहीं होती। इसलिए वो सब खेती किसानी से लगातार दूर भागते रहते हैं। दो बेटे खेती करना तो दूर, खेतों में जल्दी जाना भी पसंद नहीं करते हैं। ऐसे में अपने खेतों के लिए उनको खुद ही देखभाल करनी पड़ती है।”
आज भी करते हैं खेती का काम (काम ही कसरत)
उन्होंने कहा, “मैं रोज़ सुबह 6 बजे खेत में फावड़ा लेकर 12 बजे तक काम करता हूँ। वापस आने के बाद नहाता-खाता हूं, फिर आराम करता हूं। मेरा खेत गांव से 1 किलो किलोमीटर की दूरी पर है। सुबह से वहां तक चल के जाना एक तरह की सैर हो जाती है। इसके बाद ठंडी-ठंडी हवा ली जो कुदरती होती है और काम शुरू कर दिया। निराई-गुड़ाई कर चारा काटा और फिर फावड़ा उठाकर घर चले आये, काम ही हमारी कसरत है। आज के बच्चे पैसा खर्च करते हैं अपने शरीर को फिट रखने के लिए जिम जाते हैं पर घर और मिट्टी के काम से दूर भागते हैं। मिट्टी ही है जो हमें मजबूत बनाती है। मैं एक दम स्वस्थ हूं, मुझे इस उम्र में भी कोई दिक्कत नहीं है और सिर्फ दोपहर में ही एक बार खाना खाता हूं।”
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