बुंदेलखंड के चित्रकूट धाम मडण्ल में गरीबी और बेरोजगारी के कारण भारी मात्रा में लोगों का पलायन होता है| लेकिन जब कोरोना वायरस जैसी महामारी बीमारी आई और पलायन कर के गए मजदूर लाखों लाख की संख्या में जिस तरह की मुशिबत काट कर हजार-हजार दो-दो हजार किलोमीटर पैदल चलकर साइकिल, मोटर साइकिल और ट्रकों में कटहल जैसे लद कर भुख प्यास से तडपते हुए अपने घरों को आए थे और भूखे प्यासे क्वॉरेंटाइन में रहे थे |
आज भी उनकी स्थिति उसी तरह दैनिये है.सरकार भले ही उन्हे रोजगार और योजनाओं के लाभ देने की घोषणाए करती हो पर उसका जमीनी स्तर पर मजदूरों को कोई लाभ नहीं मिल रहा.अब बेरोजगारी के चलते सारा दुख और मुसीबत भुलाकर पेट के लिए फिर से वापस उसी तरह महानगरों के लिए पलायन करने की तैयारी कर रहे हैं|
जिला बांदा| लॉकडाउन में घरों को वापस आए प्रवासी मजदूरों की स्थिति काम न मिलने से बहुत ही दैनिये हो गई है और अब वह भुखमरी की कगार पर पहुंच गए हैं| साथ ही काम ना मिलने से साहूकारों से लिए कर्ज भी लेना पड रहा है,जिसकी चिंता भी उनको सताने लगी है|
लोगों का कहना है की गैर राज्यों से लौटकर आये प्रवासी मजदूरों के लिए सरकार की तरफ से कई तरह की योजनाएं चलाई और घोषणा की गई,जिससे प्रवासी मजदूरों को किसी प्रकार की दिक्कत ना हो,जैसे मनरेगा के तहत काफी मात्रा में काम शुरु किया गया,मुफ्त राशन और साथ ही भत्ते की व्यवस्था की गई,लेकिन सरकार की ये व्यवस्था उनके किसी काम ना आ सकी| क्योंकि सरकार की ओर से चलाई गई योजनाओं का लाभ भी उन मजदूरों तक बहुत ही कम मात्रा में पहुच रहा है और बहुत से मजदूर लाभ पाने के लिए आज भी भटक रहे हैं |
जैसे की महुआ ब्लाक के गोसाई पुरवा में लगभग 300 आदिवासी परिवार के लोग है सरकार के तरफ से उनको राशन तो मिल जाता है पर काम किसी भी तरह का आज तक नहीं मिला उनका कहना है की सरकार युनिट के हिसाब से राशन देती है जो चार लोगों में नहीं हो पता तो एक टाइम खाते है और एक टाइम भुखे रहते हैं |
क्या करे परिवार तो किसी तरह चलना है उनके कोई जमन जायदाद तो है नहीं कि वह गांव में ही रह कर अपना परिवार चला सके| पलायन करके परदेश कमाते थे तो खर्च चलता था.लेकिन लॉकडाउन के चलते घर आ गए थे| अब 5 महीने बीत गए बेरोजगार बैठे पहाड़ में थोडा बहुत काम चला तो वह भी बंद है| अब उनके पास खाने के लाले पड़े हैं |
इसलिए अब वह दोबारा जाने की तैयारी में है| मजदुर नेता राम प्रवेश यादव बताते हैं की बाहर बड़ी बड़ी कम्पनियाँ भले ही नहीं खुली पर बुन्देलखण्ड में खासकर बांदा जिले की बेरोजगारी ने मजदूरों को पेट पालने के लिए फिर से पलायन करने के लिए मजबूर कर दिया है, क्योकिं यहां कोई काम ही नहीं है जो था भी वह भी बंद पडा है |
इस लिए हर रोज हजारों की संख्या में मजदूर प्राइवेट बसों में भर कर महानगरो के लिए जा रहा है और दुगना तिगना किराया दे रहा है,क्योंकि उनके पास दूसरा कोई रास्ता नहीं है वहां भी जो छोटी मोटी कंपनियां खुली है वो इस सर्त पर मजदूरों को बुला रही हैं
की वह महीने दो महीने काम करवा कर देखेंगी अगर उनका माल सही ढग से बाजार में सप्लाई हुआ तो ठीक है और अगर नहीं हुआ तो वापस जाना पडेगा क्योंकि कंपनी वाले भी अपनी रकम फंसा कर नहीं रख सकते, लेकिन सरकार यहाँ की बेरोजगारी पर कोई ध्यान नहीं दे रही सिर्फ घोषणाए कर रही है और मजदूर पेट की आघ मर रहा है| अगर देखा जाये तो बांदा से दिल्ली करीब 1200 किलो मीटर है और यहाँ का किराया भी 1200 रुपये प्रति यात्री निर्धारित है,लेकिन इस समय उन मजदूरों से 1500 रुपये लिये जा रहे हैं |