क़र्ज़ और खेती की लागत देश में किसानों की सबसे बड़ी समस्या है। जिसकी वजह से हर साल हज़ारों किसान आत्महत्या कर लेते हैं। फिर जब सरकार किसानों के लिए चलाई जा रही योजनाओं की बात करती है तो उन योजनाओं के लाभ की पहुँच किसानों को मिलती दिखाई नहीं देती।
भारत कृषि प्रधान देश है? यहां किसान सुख से रहते हैं? उनकी जीविका बेहतर है? अरे! अरे! ये सब तो सवाल है। अगर ऐसा होता तो साल दर साल किसान आत्महत्या क्यों करते? ये भी जानना ज़रूरी है। साथ ही यह कहा जाता है कि किसान पूरे देश का पेट भरता है और खुद उसका परिवार भूखा रह जाता है। ऐसा क्यों? कई किसान ऐसे भी हैं, जिनके पास अपनी खेती की ज़मीन तक नहीं है। वह दूसरों के खेतों में मज़दूरी करते हैं। ऐसे में उनकी आय क्या होती होगी?
एग्रीकल्चर सेंसस की 2015-16 की रिपोर्ट कहती है कि यूपी में 2.382 करोड़ लोगों के पास खेती की ज़मीन है। वहीं लाइव मिंट की 2018 की रिपोर्ट में बताया गया कि उत्तर प्रदेश में 23.8 मिलियन किसान है। इसका मतलब तो यही हुआ कि उनके पास खुद की खेती की ज़मीन नहीं है।
किसान होना आसान नहीं। दिन और रात खेतों में बिताना। मिट्टी से पूरा तन भर लेना। बंजर ज़मीन पर अनाज उगा देना आसान नहीं। कभी सोचा है कि आखिर एक किसान होना क्या होता है? किस तरह से वह खेती करता है ? खेती करने में उसकी कितनी लागत आती है? उसे किस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है?
लागत अधिक, बचत कुछ नहीं
अगर नहीं तो हम बताते हैं कि किसान फसल उगाने के लिए किन-किन मुश्किलों से गुज़रता है। खबर लहरिया ने इस मामले में उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले के किसानों से बात की। बाँदा के बसरेही गांव के रहने वाले 40 साल के दादूराम पटेल के पास ढाई बीघा ज़मीन है। 32 साल के राजेश मुगौरा गांव के रहने वाले हैं और उनके पास एक बीघा ज़मीन है। दोनों किसानों का खेती से कुछ नहीं बचता।
हड़हा गाँव के रहने वाले कमालुद्दीन 61 साल के है और उनके पास 13 बीघा ज़मीन है। वह अपने खेत में खुद ही खेती करते हैं और धान,गेहूं आदि की फसलें उगाते हैं। इसमें यूरिया,खाद मज़दूरों का वेतन आदि में इतना खर्च आता है कि उनके परिवार का पोषण सिर्फ खेती के ज़रिये नहीं हो पाता। अन्य ज़रूरतों को पूरा करने के लिए उन्हें कोई और काम भी करना पड़ता है। इस समय उन पर लगभग 40 हज़ार तक क़र्ज़ है जो उन्होंने खेती के लिए लिया था।
हड़हा गांव के ही 61 साल के महबूब खान के पास दो एकड़ ज़मीन है। उनका कहना है कि उन्हें खेती में पांच रूपये का भी फायदा नहीं होता। दो एकड़ ज़मीन के लिए तीन घरों के लोगों को रोज़ाना काम करना होता है। वहीं अगर मज़दूरी की बात की जाये तो उन्हें दिन का 300 रूपये दिहाड़ी मज़दूरों को देना होता है। ऐसे में लागत का अनुमान लगा पाना मुश्किल है। लेकिन बचत बिलकुल भी नहीं होती तो क्या बचाकर रखा जाए?
गुढ़ा कला गांव के रहने वाले 45 साल के नत्थू प्रसाद कहते हैं कि खेती में कम से कम उनकी पच्चास हज़ार तक की लागत लग जाती है। इसमें ना परिवार चल पाता है और ना ही बच्चों की पढ़ाई-लिखाई हो पाती है। मज़बूरी में नमक-रोटी खाकर ही जैसे-तैसे जीते हैं। पहले ही खेती के लिए बैंक से क़र्ज़ लिया होता है,ऐसे में बचत रहती कहां है।
हड़हा गाँव के किसान दाऊद बक्श के पास छह एकड़ ज़मीन है। वह कहते हैं कि जितनी लागत खेती में लगाई जाती है। उतनी नहीं आती। आती है तो अभी ज़्यादा तो कभी कम आती है और अगर फसल बर्बाद हो जाए तो कुछ भी नहीं मिलता।
इनसे लेते हैं ऋण
-जब बात आती है खेती के लिए क़र्ज़ लेने की तो आमतौर पर किसान ऋण इन लोगों से लेते हैं ;-
-सरकार- क्रेडिट कार्ड से
-महाजन -ब्याज दर पर क़र्ज़
-अन्य किसान
-रिश्तेदार
महाजनो में किसान उन लोगों से क़र्ज़ लेते हैं जिनके पास ज़्यादा पैसा होता है। जैसे- बनिया आदि लोग। मुगौरा गाँव के 45 साल के चुन्नू दास का कहना है कि अभी उन पर एक लाख रुपयों का क़र्ज़ है जो की उन्होंने अपनी बेटी और अपने पड़ोसियों से लिया था। आमतौर पर किसान अपने सगे-संबंधियों से ही क़र्ज़ लेना बेहतर समझते हैं क्यूंकि बैंक आदि से क़र्ज़ लेने पर उन पर हमेशा दबाव रहता है।
अगर क़र्ज़ नहीं भर पाए तो क्या ?
क़र्ज़ ना भर पाने का डर उनमें हमेशा रहता है। जब उनसे पूछा गया कि अगर उन पर क़र्ज़ भरने का दबाव डाला जा रहा हो,ऐसे में वे क़र्ज़ कैसे भरेंगे। जिसके जवाब में कुछ किसानों ने कहा कि वह अपनी ज़मीन बेचकर क़र्ज़ अदा करेंगे। तो कोई कहता है कि कई किसानों के लिए आत्महत्या ही एक रास्ता होता है क्यूंकि ऋण चुका पाने का उनके पास और कोई साधन नहीं होता।
बाँदा के उप कृषि निदेशक राम किशोर माथुर का कहना है कि किसान सरकार द्वारा शुरू की गयी प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत लाभ उठा सकता है। वह किसान क्रेडिट कार्ड को बैंक द्वारा भी बनवा सकता है। उनका यह भी कहना है कि अगर कोई किसान फसल बिमा योजना का लाभ लेना चाहता है तो उसके लिए न्यायपंचायत स्तर पर लोगों की नियुक्ति की गयी है,जिनके ज़रिये किसान योजना का लाभ उठा सकते हैं।
किसानों का कहना है कि उन्हें योजना का लाभ पूरी तरह से नहीं मिलता। ना उनके यहां कोई आता है, ना उन्हें कोई जानकारी दी जाती है। वह कहते हैं कि उन्हें अपनी फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य भी नहीं मिलता। मंडी में जाओ तो हफ़्तों अनाज को बेचने के लिए इंतज़ार करना पड़ता है। बाजार में बेचने जाओ तो उधर घाटा होता है। कहीं से भी मुनाफा नहीं होता। जिसकी चिंता उन्हें आत्महत्या की ओर धकेल देती है। एनसीआरबी की 2020 की रिपोर्ट के अनुसार 2019 में 10,281 किसानों ने आत्महत्या की थी। जिसमें 5,957 किसान थे और 4,324 खेतों में काम करने वाले मज़दूर थे। नीचे दिए गए लिंक के ज़रिये आप खबर पर की गयी रिपोर्ट कर सकते हैं।
वित्त वर्ष 2021-22 में किसानों के लिए पारित योजनाएं
वित्त मंत्री सुरेश खन्ना द्वारा 22 फरवरी को उत्तर प्रदेश सरकार के वित्त वर्ष 2021-22 के बजट में किसानों की आय दोगुनी करने, सरकारी नल से मुफ्त पानी उपलब्ध कराने, सहकारी समितियों से आसान दर पर क़र्ज़ उपलब्ध कराने और किसान कल्याण के लिए कई योजनाओं की घोषणाएं की गयी थी। साथ ही वित्तीय वर्ष 2021-22 से ‘आत्मनिर्भर कृषक समन्वित विकास योजना’ शुरू करने की घोषणा की गई।
इसके लिए 100 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा मुख्यमंत्री कृषक दुर्घटना कल्याण योजना के तहत 600 करोड़ रुपए, नहरों और सरकारी नलकूपों से किसानों को मुफ्त पानी की व्यवस्था के लिए 700 करोड़ रुपए और किसानों को प्रारंभिक सहकारी कृषि ऋण समितियों के जरिए रियायती दरों पर फसली ऋण उपलब्ध कराने के लिए 400 करोड़ रुपए की व्यवस्था करने की बात की गयी।
बजट में प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाअभियान योजना के तहत खेतों में विभिन्न क्षमताओं के सोलर पंप की स्थापना का ज़िक्र किया गया। जिसके लिए 15,000 पंप लगाने का लक्ष्य रखा गया। वित्त मंत्री ने कहा कि तय किये गए विकास लक्ष्य 5.1% की पूर्ति के लिए साल 2021 में खाद्यान्न उत्पादन का लक्ष्य 64 लाख टन और तिलहन उत्पादन लक्ष्य 13 लाख टन निर्धारित किया गया है।
इसके अलावा वर्ष 2020-21 में बीज वितरण के 17 लाख क्विंटल और 2021-22 में 62 लाख 50 हजार क्विंटल बीज वितरण का लक्ष्य प्रस्तावित किया गया है। नये बजट में आठ सिंचाई परियोजनाओं की बात की गयी। इसके तहत मध्य गंगा नहर परियोजना के लिए 1137 करोड़ रुपए, राजघाट नहर परियोजना के लिए 976 करोड़, सरयू नहर परियोजना के लिए 610 करोड़, पूर्वी गंगा नहर परियोजना के लिए 271 करोड़ तथा केन-बेतवा लिंक नहर परियोजना के लिए 104 करोड़ रुपए का बजट प्रावधान किया गया।
इसके अलावा जैसे,प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना और पीएम किसान मन धन योजना आदि योजनाएं राज्य में पहले से ही चल रही है। लेकिन जब किसानों को अभी तक इन योजनाओं का ही लाभ नहीं मिला है तो नयी योजनाओं के लाभ मिलने, ना मिलने पर एक बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह खड़ा होता है।
दिल्ली के टिकरी और सिंघु बॉर्डर पर लगभग तीन महीने से केंद्र सरकार द्वारा पारित तीन कृषि बिलों को लेकर किसानो द्वारा विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है। हालांकि,सरकार द्वारा यह भी कह दिया गया है कि वह बिल को वापिस नहीं लेगी। वहीं किसान भी अपने इरादों के साथ दिल्ली के बॉर्डर पर अपनी मांगो को पूरा करने के लिए टिके हुए हैं। तो क्या हम यह कह सकते हैं कि किसानों की दशा देश में अच्छी है? तो फिर सरकार आखिर किसानों के लिए किन योजनाओं की बात कर रही है, जिससे उन्हें लाभ मिला है? जिनकी पहुँच जानकारी और साधन तक थी, उन्हें योजनाओं का लाभ मिला। पर जिन तक योजनाएं पहुँच ही नहीं पायी , उनका क्या ?