उत्तर प्रदेश जिला वाराणसी में 13 जनवरी को गौ रक्षा के लिए सामाजिक संगठनों द्वारा अभियान चलाया गया था। इसके साथ ही संगठन द्वारा जिले की मजिस्ट्रेट अमृता सिंह को गाय की रक्षा व गौशालाओं की सुरक्षा हेतु ज्ञापन पत्र सौंपा गया। मजिस्ट्रेट द्वारा कहा गया कि वह इस मामले और पत्र को जिले के डीएम कौशल राज को अवगत कराएंगी ताकि समस्या का निपटारा किया जा सके। गायों की देखरेख और गौशालाओं की समस्या बहुत समय से है। सरकार द्वारा जिसके हेतु कई योजनाएं भी चलाई गयी लेकिन समस्या अब भी वहीं के वहीं हैं। देखते हैं लोगों का इस बारे में क्या कहना है।
गौशालाओं को लेकर यह है लोगों का कहना
– शाहपुर गांव के राजेश कुमार का कहना है कि गौशाला ना होने से गायें खुलेआम घूमती हैं और उनकी फसलों को बर्बाद कर देती हैं। जिससे उन्हें काफ़ी नुकसान होता है। उनका कहना है कि वह खेत में पूरे समय मेहनत करते हैं लेकिन जब उनकी फसलें गाय चर जाती हैं तो खेत से मज़दूरी तक नहीं निकल पाती।
– चोलापुर बाजार के राकेश का कहना है कि लॉकडाउन के समय जिला अधिकारी द्वारा कहा गया था कि अगर कोई गाय सड़कों पर घूमती नज़र आएंगी तो गांव के प्रधानों पर कार्यवाही कि जाएगी। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।
संज्ञान पत्र में कही गयी ये बातें
सामाजिक संगठनों द्वारा पत्र में कहा गया कि सरकार द्वारा बनाई गयी गौशालाओं की रक्षा करना उनका दायित्व है। अधिकतर लोगों द्वारा गाय को ‘गाय माता‘ का दर्जा दिया जाता है। इसलिए वह गायों की सुरक्षा हेतु काम करना चाहते हैं। ताकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा चलाई जा रही गौ रक्षा योजनाओं में वह भी अपना हाथ दे सकें। वह चाहतें हैं कि समाज के लोग बढ़–चढ़ के उनके इस अभियान में उनका साथ दें। उनकी जिला अधिकारी से यही मांग है कि सभी लोग गौ रक्षा हेतु एक–साथ मिलकर काम करें।
अभियान का संचालन स्वत्रंत मिश्रा,मुकुंद पाठक, अजीत पाण्डेय, सुनील चौबे, अंनत पाठक, पवन सिंह द्वारा किया गया था। साथ ही इसमें राष्ट्रीय स्वर्ण ( महिला) समाज एकता मंच की प्रमुख अध्यक्ष दुलारी सिंह, राष्ट्रीय मानवाधिकार के जिला अध्यक्ष आज़ाद अहमद और शिवराज बहादुर पटेल भी शामिल रहें।
बजट के बाद भी गौशाला नहीं
द प्रिंट की फरवरी 2019 की रिपोर्ट कहती है कि उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने वित्त वर्ष 2019-2020 के लिए 4.79 लाख करोड़ रुपये का बजट रखा था। जिसमें से 247.60 करोड़ रुपये ग्रामीण क्षेत्रों में गोवंश के रखरखाव के लिए गोशालाओं के निर्माण के लिए आवंटित किए गए थे।
वित्त मंत्री राजेश अग्रवाल द्वारा प्रस्तुत बजट में गौ कल्याण के लिए करीब 500 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किये जाने की बात कही गयी थी। जिसमें ग्रामीण इलाकों में गौशाला के रखरखाव और निर्माण के लिए 247.60 करोड़ रुपये, शहरी क्षेत्र में कान्हा गौशाला और आवारा पशु आश्रय योजना में 200 करोड़ रुपये और आवारा पशुओं की देखरेख के लिए 165 करोड़ रुपये शामिल थे।
साथ ही राज्य में शराब की बिक्री पर विशेष शुल्क लगाने से मिलने वाले करीब 165 करोड़ रुपये का उपयोग प्रदेश के निराश्रित एवं बेसहारा गोवंशीय पशुओं के भरण–पोषण के लिये किया जायेगा। यह भी कहा गया था। लेकिन राज्य में गायों की सुरक्षा और गौशालाओं के ना होने से यह बात तो कुछ हद तक साफ़ हो जाती है कि गायों के नाम पर सरकार द्वारा बजट तो रखा गया। लेकिन बजट का उपयोग गायों की समस्या को हल करने के लिए नहीं किया गया।
गाय को माता का दर्जा देना और मां मानने में काफ़ी बड़ा अंतर है। देश का बहुत बड़ा हिस्सा गाय को माँ/ माता का दर्जा देता तो है लेकिन दर्जे के अनुसार अपना दायित्व नहीं निभाता। तो फिर ये दर्ज़ा क्यों देना है? द इंडियन एक्सप्रेस की जनवरी 2020 की रिपोर्ट के अनुसार लाइव स्टॉक सेंसस की रिपोर्ट कहती है कि यूपी में आवारा घूमने वाली गायों की संख्या 17.3 प्रतिशत है। यानी कुल 51.88 लाख – पशुपालन, डेयरी, मत्स्यपालन मंत्री द्वारा यह रिपोर्ट पेश की गयी थी।
सवाल यह है कि जिला अधिकारी द्वारा कब तक गायों की सुरक्षा और गौशालाओं की समस्याओं के निपटारे के लिए कार्य किया जाता है। साथ ही यह बात भी समझने योग्य है कि लोगों द्वारा किसी को भी दर्ज़ा देने से ज़्यादा ज़रूरी अपने कर्तव्यों को पूरा करना होना चाहिए।