भारत ने सिंधु जल संधि को तब तक के लिए सस्पेंड कर दिया जब तक पाकिस्तान हमले पर खुलकर कुछ नहीं कहता और पाकिस्तान ने गुस्से में शिमला समझौता ही रद्द कर डाला। इन फैसलों की मार सीधे आम जनता पर पड़ेगी जैसे कि सिंधु जल संधि रुकने के कारण पानी रुका तो किसानों की फसलें सूखेंगी और समझौता टूटा तो सरहद पर शांति की उम्मीद धुंधली हो जाएगी।

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने समझौते पर हस्ताक्षर किये (फोटो साभार: सोशल मीडिया)
लेखन – मीरा देवी
22 अप्रैल 2025 को पहलगाम हमले के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच ऐसा तनाव बढ़ा कि दोनों ने सालों पहले किए दो बड़े समझौते पर रोक लगा दी। भारत ने सिंधु जल संधि को तब तक के लिए सस्पेंड कर दिया जब तक पाकिस्तान हमले पर खुलकर कुछ नहीं कहता और पाकिस्तान ने गुस्से में शिमला समझौता ही रद्द कर डाला। इन फैसलों की मार सीधे आम जनता पर पड़ेगी जैसे कि सिंधु जल संधि रुकने के कारण पानी रुका तो किसानों की फसलें सूखेंगी और समझौता टूटा तो सरहद पर शांति की उम्मीद धुंधली हो जाएगी। असल में बिना समझौता तोड़े ही पुलवामा से लेकर पहलगाम तक हिंसा दिखी है तो अब जब दोनों देश अपने-अपने वादे से पीछे हट रहे हैं तो हालात और बिगड़ सकते हैं। अब जरूरी हो गया है समझना कि ये दोनों समझौते क्या थे और आम आदमी की जिंदगी से इनका क्या लेना-देना है।
क्या है शिमला समझौता?
साल 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच जोरदार जंग हुई थी। उस लड़ाई में पाकिस्तान के 90 हजार से ज्यादा सैनिक भारत के कब्जे में आ गए थे। जंग तो खत्म हो गई लेकिन इसके बाद दोनों देशों के रिश्तों में सुधार लाने की कोशिशें शुरू हुईं। इसी के तहत 2 जुलाई 1972 को हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में जो एक बड़ा समझौता हुआ जिसे “शिमला समझौता” का नाम दिया गया। ये समझौता शिमला के बार्नेस कोर्ट में हुआ था जो अब राजभवन है। उस समय भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं और पाकिस्तान के राष्ट्रपति थे जुल्फिकार अली भुट्टो। दोनों नेताओं ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।
शिमला समझौते में क्या-क्या तय हुआ था?
17 सितंबर 1971 के युद्ध को ख़तम करना दोनों देशों ने स्वीकार किया। तय हुआ कि 20 दिनों के अंदर दोनों देशों की सेनाएं अपनी-अपनी सीमाओं में लौट जाएंगी। दोनों देशों के नेता आगे भी मिलते रहेंगे और अफसर आपस में बातचीत करते रहेंगे। सारे विवाद आपसी बातचीत से सुलझाए जाएंगे और इसमें किसी तीसरे देश या संस्था की दखलंदाजी नहीं होगी। आम लोगों के लिए आना-जाना और व्यापार के रास्ते खोले जाएंगे। एक-दूसरे की सीमा और संप्रभुता का सम्मान किया जाएगा। मतलब कि दोनों देश एक-दूसरे की सरहद नहीं लांघेंगे और न ही एक-दूसरे के फैसलों में टांग अड़ाएंगे। किसी भी विवाद में कोई एक देश अकेले कोई बड़ा कदम नहीं उठाएगा। दोनों देश नफरत फैलाने वाले प्रचार को रोकने के लिए काम करेंगे। डाक, टेलीफोन, रेल, बस, फ्लाइट जैसी सेवाएं बहाल की जाएंगी। युद्धबंदियों की अदला-बदली और जम्मू-कश्मीर जैसे मुद्दों पर बातचीत जारी रहेगी। विज्ञान और संस्कृति में भी आपसी तालमेल बढ़ाने पर सहमति बनी।
क्यों चर्चा में है फिर से ये समझौता?
22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ कई कड़े फैसले लिए। इनमें सिंधु जल संधि रोकना, अटारी सीमा चौकी बंद करना और पाकिस्तानी सैन्य सलाहकारों को भारत छोड़ने का आदेश शामिल है। इसके बाद पाकिस्तान ने भी अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की बैठक की और भारत के फैसलों को ‘युद्ध जैसी हरकत’ बताया। इसके साथ ही शिमला समझौता और दूसरे आपसी समझौते रद्द करने की बात कही गई। इसी वजह से यह समझौता एक बार फिर सुर्खियों में है।
आइये अब भारत सरकार द्वारा लिया गया दूसरा फैसला सिंधु जल संधि को भी जान और समझ लेते हैं।
क्या है सिंधु जल संधि?
भारत और पाकिस्तान के बीच पानी को लेकर लड़ाई न हो इसी मकसद से 1960 में दोनों देशों के बीच एक खास समझौता हुआ था जिसे ‘सिंधु जल संधि’ कहा जाता है। ये समझौता भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के बीच हुआ था। इस समझौते में तय किया गया था कि सिंधु, झेलम और चेनाब नदियों का पानी पाकिस्तान को मिलेगा। सतलुज, ब्यास और रावी का पानी भारत के पास रहेगा। इस संधि की निगरानी और विवाद सुलझाने के लिए वर्ल्ड बैंक (वर्ल्ड बैंक एक ऐसा अंतरराष्ट्रीय बैंक है जो दुनिया के गरीब और विकासशील देशों को पैसे उधार देता है ताकि वे अपने देश में सड़क, स्कूल, अस्पताल, बिजली और पानी जैसी ज़रूरी चीज़ों का विकास कर सकें) को तीसरे पक्ष के तौर पर जोड़ा गया था।
संधि में क्या-क्या तय था?
भारत को पूरब दिशा की तीन नदियों (सतलुज, ब्यास, रावी) का पूरा हक मिला था और पाकिस्तान को तीन पश्चिम दिशा की नदियों (सिंधु, झेलम, चेनाब) का इस्तेमाल करने का अधिकार था। भारत इन पश्चिमी नदियों का कुछ हद तक उपयोग कर सकता है जैसे बिजली बनाना या सिंचाई के लिए सीमित पानी लेना लेकिन बहाव में बाधा नहीं डाल सकता था। दोनों देश जल आयोग के जरिए साल में दो बार बातचीत करते थे और जल विवादों को शांतिपूर्वक सुलझाते थे।
क्यों फिर से सुर्खियों में है ये संधि?
22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ कई कड़े फैसले लिए। इन्हीं में से एक बड़ा फैसला था सिंधु जल संधि को ख़तम करना मतलब कि जब तक पाकिस्तान साफ-साफ हमले पर जवाब नहीं देता तब तक भारत वो पानी रोक सकता है जो पहले पाकिस्तान को जाता था।
पाकिस्तान की तरफ से शिमला समझौते को रद्द करने का बयान आया है हालांकि खबर लिखने तक भारत की ओर से इस पर अभी कोई औपचारिक जवाब नहीं आया है। पहलगाम हमला और उसके बाद उठे कदमों ने भारत-पाकिस्तान रिश्तों में एक बार फिर बड़ी दरार पैदा कर दी है। सिंधु जल संधि को लेकर अगर भारत इस संधि को पूरी तरह रद्द कर देता है तो पाकिस्तान के पंजाब और सिंधु बेल्ट में खेती पर भारी असर पड़ेगा जो पूरी तरह इन नदियों पर निर्भर है। दूसरी ओर भारत के लिए भी तकनीकी और कूटनीतिक चुनौतियां बढ़ेंगी क्योंकि इसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर संतुलन बनाकर चलना होगा।
शिमला समझौता भारत-पाकिस्तान के बीच एक ऐसा वादा था जो जंग के बाद अमन की उम्मीद लेकर आया था हालांकि इस पर मतभेद है कि पाकिस्तान ने इस समझौते पर कभी अमल नहीं किया वरना एक के बाद एक आतंकी हमले नहीं होते आते। अब जब इसे पाकिस्तान ने ठुकराने की बात की है तो सवाल यही उठता है कि क्या दोनों देशों के बीच फिर कोई पुल बनेगा या दूरियां और बढ़ेंगी? वहीं सिंधु जल संधि पानी के जरिए बनी एक नरमी की डोर थी जो जिसको ख़तम करने की बात कही गई गई है। अगर यह डोर टूटी तो सिर्फ दोनों देशों की राजधानियों दिल्ली-इस्लामाबाद ही नहीं बल्कि खेत-खलिहान, किसान और आम जनता पर भी इसका असर पडेगा।
यदि आप हमको सपोर्ट करना चाहते हैतो हमारी ग्रामीण नारीवादी स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें और हमारे प्रोडक्ट KL हटके का सब्सक्रिप्शन लें’