हर दर्द को कागज पर बखूबी उतार लेते हैं, हम तो शायर हैं बस यूं ही जिंदगी गुजार लेते हैं। जी हाँ ऐसे ही एक शायर से आज आपको मिलवाउगी जो ये हैं बांदा जिला के ब्लॉक तिन्दवारी गांव पपरेन्दा के शायर शैय्यद अली अब्बास रिजवी, जो 2013 शायरी लिखते हैं तो देर किस बात की चलिए शायरी सुनते हैं और जानते हैं की कैसे शौक हुआ शायरी लिखने का शैय्यद अली अब्बास रिजवी ने बताया है कि 2013 से मुझे शायरी लिखने का शौक हुआ तब मैं शायरी बहुत ज्यादा पढ़ा भी नहीं था एक दिन मुझे शायर मिर्जागालिब का नाम सुना उनकी शायरी पढ़ी तो मुझे प्रेरणा मिली। तब मुझे समझ में आया था कि शायरी किसे कहते हैं।
शायरी तो में लिखने लगा लिख के दो लाइन फिर कॉपी बंद कर देता था क्योंकि मुझे लिखने का तरीका ही नहीं था और ना ही मुझे पता था की शायरी क्या होती है। जो उस्ताज हैं फतेहपुरी साहब हबीब को मैं उस्ताद मानता हूं क्योंकि पहले मेरे कोई उस्ताद नहीं था जो मुझे सिखाया है पर उन्होंने मुझे छोटा भाई समझ के कुछ बताया है शायरी लिखने के बारे में तो मैं उन्हीं को अपना उस्ताद मान रहा हूं। मैंने 5 से 6 लाख शायरी पढ़ा है जिससे कि कोई ऐसा शायर बचा ही नहीं है जो मैंने नहीं पढ़ा।
कहते हैं कि शायरी अन्दर के ख्याल से आती है और जब मै कुछ देखता या सोचता हूँ तो शायरी लिख देता हूँ। 25 और 26 साल के ऐसा कुछ कर दिखाया जो उनके कोई खानदान में ना ही उनके रिलेशन में शायरी लिखते थे पहला ऐसा शायरी लिखने वाला है।
जो अपने जॉब के साथ साथ शायरी लिखने का भी काम किया है। ना ही उन्होंने किसी मंच में जाने की कोशिश की है। नाही कुछ कमाई के रूप में शायरी का शुरुआत की है अपने खुशियों के लिए और अपने शौक के लिए एक उन्होंने शायरी लिखने का सफर तय किया है। जिससे उनकी मंकी शांति मिले। जैसे ही शायरी के शब्द आते हैं वैसे ही वह शब्द मोबाइल में ही लिखते हैं। और जब शायरी लिखने का वक्त आता है तो वह शब्द अपनी शायरी में जोड़ लेते हैं। उन्होंने तो अपनी शॉप के लिए ही शायरी लिखते हैं ना ही उन्हें शायरी से पैसा कमाना है। ना ही कोई मंच में जाना है ना मंच में जाने की शौक है मैं तो अपने मन की जज्बात को डालता हूं।
मैं अपनी जो शायरी है वह फेसबुक में ही डालता हूं और मुझे फेसबुक ही एक ऐसा मिला है कि मैं और भी शायरी पढ़ता हूं। इससे जब मुझे लो शायरी के द्वारा जानते हैं फेसबुक में ही मुझे शायरी लिखने को हौसला देते हैं। जब मैं लिखता हूं लोग हौसला देते हैं तो मेरे मन में और एक जिज्ञासा बढ़ती है कि मैंने अच्छी शायरी लिखा होगा इसी लिए मेरी प्रशंसा होती है मैं इस बार इससे अच्छी क्यों ना लिखूं।शायरी लिखने की कोई उम्र नहीं होती ना ही शायरी का कोई अंत होता है।