शक्ति – महिलाओं के लिए एक ऐसा राजनीतिक आन्दोलन है जिसे महिलाओं के लिए राजनीतिक प्रतिनिधित्व को बढ़ाने के लिए एक गैर-पक्षपाती और समावेशी मंच माना गया है।
जैसा की हम सभी जानते हैं कि लोकसभा चुनाव नजदीक हैं, इसलिए शक्ति आन्दोलन के ज़रिये देश के कई इलाकों में ऐसे कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है, जिसके ज़रिये महिलाओं को इस बार लोकसभा में सबसे ज्यादा सीट मिल पायें।
भारत में पितृसत्ता की एक गहरी छाप है। ऐसे में एशिया के अन्य सभी देश हमसे बेहतर कर रहे हैं। महिलाओं को राजनीतिक तौर पर ये हक़ दिलाने के लिए 193 देशों की सूची में, भारत 153 स्थान पर है। जो हमारे लिए काफी शर्मनाक है!
वादे तो कई बार किये गये हैं। पार्टियों के घोषणापत्र में भी इसका कई बार ज़िक्र किया गया है। लेकिन असल में ऐसा कही भी देखने को नहीं मिल रहा है। आज भी राजनीति में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण नहीं है।
महिलाओं को ये हक़ दिलाने के लिए शक्ति का कहना है कि “हमें इसके लिए कानून की आवश्यकता नहीं, बल्कि एक राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है। हमें अपनी ही पार्टियों पर दबाव बनाने की जरूरत है”।
पुरुषों के अनुसार महिलाओं को सीट न देने के कारण-
“पुरषों के मुकाबले अनपढ़ और भ्रष्ट महिलाओं की संख्या है ज्यादा” (सोच)
अक्सर महिलाओं को अनपढ़,भ्रष्ट और अपराधी जैसे नाम देकर पीछे कर दिया जाता है।
(सच्चाई)
लेकिन देखा जाए तो पुरुषों के मुकाबले 53 प्रतिशत से भी ज्यादा महिलाएं आज पढ़ी-लिखी हैं। भ्रष्टाचार के आरोपों में भी महिलाएं, पुरुषों की तुलना में 10% कम भागीदार मानी गई हैं।
तो कैसे हम महिलाओं पर ये झूटे आरोप लगाने में सक्षम हैं?
“पुरषों के मुकाबले महिलाओं में जीतने के क्षमता है कम” (सोच)
पुरुषों द्वारा अक्सर महिलाओं पर ये भी आरोप लगाया गया है कि वो चुनाव में सीट हासिल नहीं कर पाती हैं। अगर उन्हें मौका दिया जाये, तो उसका कोई फायेदा नहीं होता है। इसलिए उन्हें हमेशा सबसे अंतिम विकल्प में रखा जाता है।
(सच्चाई)
हर साल अगर 81% प्रतिशत महिलाएं चुनाव लड़ती हैं तो उनमे से 11% प्रतिशत महिलाएं जीतती भी ज़रूर हैं। पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में जीतने की क्षमता ज्यादा देखी गई है, ऐसा प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो (पीआईबी) की 2015 की रिपोर्ट में बताया गया है।
नेता एप
नेता एप एक ऐसा मोबाइल फोन एप जिसके ज़रिये मतदाता अपने पसंदीदा प्रतिनिधि के तरफ समर्थन जताते हैं। जिसके ज़रिये शक्ति द्वारा 15 जनवरी 2019 को एक रिपोर्ट तैयार की गई है जिसमे, 24 राज्यों में से करीब 82% मतदाताओं ने महिलाओं को आरक्षण प्रदान कर, लोकसभा में देखने की ओर अपना समर्थन जताया है।
महिलाओं को ये हक़ प्रदान करने के लिए शक्ति द्वारा नई दिल्ली में 12 फरवरी 2019 को एक कार्यक्रम का आयोजन भी किया गया था। जिसमे वक्ताओं से लेकर कई राजनीतिक सदस्य भी शामिल हुए थे।
भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता शाइना एन.सी का इस पर ये कहना है कि “राजनीति में अक्सर महिलाएं ही महिलाओं का समर्थन नहीं करती हैं। तो इस देश में हम महिलाओं को आखिर उनका हक़ कैसे दिला पाएंगे?”
इस पर शाइना का ये कहना है कि यदि आप आरक्षण के माध्यम से राजनीति में प्रवेश करते हैं, तो सक्षमता के माध्यम से अपनी पहचान साबित करें।
इसलिए उन्होंने सबसे पहले देश की हर महिला से यही आग्रह किया है कि राजनीति में महिलाओं का समर्थन करें।
उनका ये भी कहना है कि अक्सर महिलाओं को महिला होने के कारण चुना नहीं जाता है। उन्हें कहा जाता है कि ‘ये तो साड़ी पहनती है, इसको राजनीति के बारे में क्या ही पता होगा?’
कार्यक्रम में नीति अनुसंधान केंद्र में काम कर रहे राहुल वर्मा भी शामिल हुए थे जिनका कहना है कि ‘यूनिवर्सिटीज और कॉलेज में महिलाओं की संख्या अक्सर पुरुष के मुकाबले कम देखी जाती है। जिस कारण ही राजनीतिक औदे पर भी महिलाएं कम हैं’।
अखिल भारतीय महिला कांग्रेस, असम की अध्यक्ष सुषमिता देवी ने भी तर्क देते हुए कहा कि ‘सरकार को बेटी पढाओ, बेटी बचाओ जैसे आन्दोलन के विज्ञापन पर करोड़ों का खर्चा न करते हुए, उसे ज़मीनी तौर पर स्कूलों में प्रभावशाली बनाना चाहिए’। साथ ही महिलाओं को राजनीतिक तौर पर उनका हक़ दिलाने के लिए हमे पित्र्सत्ता को जड़ से उखाड़ फेंक देना चाहिए।
भाजपा सदस्य, ललिता कुमारमंगलम ने भी महिलाओं के इस आरक्षण पर बात करते हुए कहा कि ‘हमे महिला मतदाताओं से बात करने की ज़रूरत है। उन्हें ये समझाने की ज़रूरत है कि उनके खिलाफ हो रही हिंसा को लेकर उन्हें चुप नहीं बैठना चाहिए। अपनी आवाज़ बुलंद करनी चाहिए। जिसके लिए सरकार को भी उन्हें न्याय प्रणाली तक पहुँचाने की आवश्यकता है’।
कार्यक्रम में मौजूद द हिन्दू की पत्रकार स्मिता गुप्ता का कहना है कि “ये ज़रूरी नहीं कि हर महिला आर्थिक रूप से सक्षम हो, लेकिन महिलाएं अधिक संख्या में हों ये ज्यादा ज़रूरी है। इसलिए महिलाओं को #metoo जैसे आन्दोलन के ज़रिये अपनी आवाज़ बुलंद करनी चाहिए”।
लेखन : खुशबू भाटिया, खबर लहरिया
शक्ति- राजनीतिक रूप से भारत में लैंगिक-संतुलित का चलन करने वाली ये पहल, विभिन्न क्षेत्रों की महिला नेताओं द्वारा संचालित और समर्थित आन्दोलन है। जैसे कि, अम्मू जोसेफ - एनडब्ल्यूएमआई, स्वतंत्र पत्रकार धन्या राजेंद्रन - सह-संस्थापक और प्रधान संपादक, द न्यूज़ मिनट विद्या सुब्रह्मण्यम - सीनियर फेलो, द हिंदू सेंटर फॉर पब्लिक पॉलिसी निशा अग्रवाल - पूर्व सीईओ ऑक्सफैम निशा सुसान - पार्टनर ग्रिस्ट मीडिया / लेडीज़ फिंगर ज्योति राज - सह-संस्थापक सीईआरआई स्वर्ण राजगोपालन - राजनीतिक विश्लेषक और सामाजिक उद्यमी पद्मजा शॉ - उस्मानिया विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त पत्रकारिता प्रोफेसर संयोजक: राजेश्री नागरसेकर - इवस्केप की प्रकाशक व पत्रकार तारा कृष्णास्वामी - सह-संस्थापक शक्ति - महिलाओं के लिए राजनीतिक शक्ति की सह-संस्थापक, बेंगलुरु के नागरिक, लेखक