खबर लहरिया Blog विकलांग महिला व नवजात बच्ची के साथ हुई यौन हिंसा में जाति,विकलांगता व लिंग की पहचान से न्याय की असफलता तक!

विकलांग महिला व नवजात बच्ची के साथ हुई यौन हिंसा में जाति,विकलांगता व लिंग की पहचान से न्याय की असफलता तक!

क्या हुआ था का जवाब महिला ने हमें हाथों से इशारा करते हुए दिया। उनकी दोनों हथेलियां परस्पर पेंडुलम की तरह झूलते हुए अपनी छोटी-सी बच्ची के बारे में बता रहीं थीं। वह बच्ची जिसके साथ बलात्कार हुआ है। वह महिला जिसके साथ यौन हिंसा हुई है। 

"Sexual Violence Against Disabled Woman and Newborn Baby: From Caste, Disability, and Gender Identity to Failure of Justice"

                                   जब हम महिला से बात कर रहे थे तो महिला के घूंघट से हमें सिर्फ उसकी सिसकियों और कराह की आवाज़ सुनाई दी रही थी। वह घूंघट जो उनके सिर से होठों तक था।

रिपोर्ट – संध्या,गीता

तस्वीरें – संध्या 

यूपी के एक गांव में एक बोल और सुन न पाने वाली लगभग 22 वर्षीय महिला और उसकी 8 महीने की बच्ची के साथ बलात्कार हुआ था। गांव को इस बारे में कोई खबर नहीं थी क्योंकि वो अलग बिरादरी से थे। उनका एक कमरे का मिट्टी की बुनियाद पर खड़ा घर गांव के सबसे आखिर में अलग-सा बसा हुआ था। 

यहां बिरादरी से मतलब है जाति, महिला के परिवार की जाति और गांव में रहने वाले लोगों की। वह सामाजिक पहचान के अनुसार ठाकुर समुदाय से आते थे और गांव ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) बहुल था। अपराधी राज नारायण (30 वर्षीय) जो उनके घर के सामने रहता था, वह भी ठाकुर था। 

यह मामला 16 अक्टूबर 2024, चित्रकूट जिले के भरतकूप थाना क्षेत्र के अंदर आने वाले एक गांव का था। 

क्या हुआ था का जवाब महिला ने हमें हाथों से इशारा करते हुए दिया। उनकी दोनों हथेलियां परस्पर पेंडुलम की तरह झूलते हुए अपनी छोटी-सी बच्ची के बारे में बता रहीं थीं। वह बच्ची जिसके साथ बलात्कार हुआ है। वह महिला जिसके साथ यौन हिंसा हुई है। 

महिला बोल और सुन नहीं सकतीं, हमारे सवालों का जवाब उन्होंने शब्दों से नहीं परिस्थिति से दिया। 

बोल और सुन न पाने की वजह से वह यौन हिंसा होने के समय न तो मदद मांग पाई और न ही अपनी बच्ची की आवाज़ सुन पाई जिस पर भी यौन हिंसा की जा रही थी। वहीं गांव ने हिंसा के खिलाफ आवाज़ उठाने की जगह जाति के मेल को चुना और खुद को मामले से अलग कर दिया। 

अमूमन यौन हिंसा के मामलों में जाति और पहचान को दरकिनार कर दिया जाता है। यहां जाति का संबंध एकजुटता और गांव से था, जिसने परिवार को न्याय की लड़ाई में अकेला छोड़ दिया। 

ऐसा में यौन हिंसा के खिलाफ़ आवाज़ उठाने में एक विकलांग महिला की पहचान, बच्ची का नवजात होना और उनकी जाति का समांजस्य व आर्थिक रूप से पिछड़ा होना…. उनके साथ हुई हिंसा को दोगुना क्रूर, और निर्मम बना देता है। यहां सामाजिक प्रणाली का न्याय भी इन्साफ देने में अयोग्य होता है। 

इसलिए भी क्योंकि समाज में विकलांग महिला के साथ होने वाली हिंसाओं को अमूमन समाज द्वारा न्याय की रोशनी में आने तक नहीं दिया जाता, और अगर आ भी जाए तो वह इंसाफ की लड़ाई में खुद को अकेला ही पाती हैं, क्योंकि एक विकलांग शरीर समाज के दृश्य में हमेशा से ओझल ही नज़र आया है। 

"Sexual Violence Against Disabled Woman and Newborn Baby: From Caste, Disability, and Gender Identity to Failure of Justice"

                                                                                                               जिस समय अपराधी घर में घुसा, वह हैंडपंप से पानी भर रहीं थीं – महिला ने खबर लहरिया को बताया

जब हम महिला से बात कर रहे थे तो महिला के घूंघट से हमें सिर्फ उसकी सिसकियों और कराह की आवाज़ सुनाई दी रही थी। वह घूंघट जो उनके सिर से होठों तक था। इस घूंघट में उनकी आंखे पारदर्शिता की तरह काम कर रही थीं और हमें चीख-चीख कह रही थीं कि वह सब कुछ बयां कर देना चाहती हैं। उनके व उनकी बच्ची के साथ हुई हिंसा की तस्वीर उनकी आंखो में साफ़ दिखाई दे रही थी। हमें समझने के लिए खाली शब्दों की ज़रूरत नहीं पड़ी। आंसुओं से भरी आंखों में सब साफ़ दिखाई दे रहा था। 

आंखो के मेल के साथ उनके हाथों ने घर के बाहर गड़े हैंडपंप की तरफ इशारा किया। यह बताते हुए कि जिस समय अपराधी घर में घुसा, वह हैंडपंप से पानी भर रहीं थीं। पानी भरने के बाद जब वह घर में घुसीं तो उन्होंने चारपाई की तरफ इशारा करते हुए बताया कि वहां बच्ची लेटी हुई थी। उसके खून से बिछौना (चादर) लाल हो चुका था। अपराधी वहीं खड़ा था। 

हाथों से फिर इशारा करते हुए बताया कि उन्होंने बच्ची को बचाने के लिए उसे ज़ोर से धक्का दिया। इस दौरान अपराधी ने उनके साथ भी बलात्कार किया। उन्होंने खुद को छुड़ाने के लिए उसे कोहनी से मारा। हर तरह से कोशिश की, अपराधी के जकड़ से निकलने की। आखिर में वह बच्ची को लेकर घर से भागने में क़ामयाब हुईं। 

तभी महिला का पति घर पहुंचा। उसने पत्नी को बच्ची के साथ भागते हुए देखा। उसकी साड़ी खून से सन चुकी थी। उसी दौरान अपराधी राज नारायण पीछे से भागने की कोशिश कर रहा था। यह देखकर उसे शक़ हुआ और उसने अपराधी को मारना शुरू कर दिया। इतने में अपराधी का बड़ा भाई नारायण दास लाठी लेकर आया और उसे भगा दिया। 

अगर महिला का पति मौके पर नहीं पहुंचता तो शायद इस मामले में न तो कोई अपराधी होता और न ही न्याय की कोई मांग। मामले को महिला की विकलांग होने की पहचान की आड़ में दबा दिया जाता और शायद यह भी पता नहीं लग पाता कि उसके साथ हिंसा हुई है। 

ऐसे ही विकलांग महिलाओं के साथ होने वाले कई हिंसा के मामले दब जाते हैं क्योंकि उसमें या तो कोई गवाह नहीं होता, या उसे किसी तथाकथित बताये जाने वाले सक्षम शरीर वाले व्यक्ति ने देखा नहीं होता या फिर बस उसे गांव के अंदर ही दबा दिया जाता है। यह मामला एक छोटे से गांव से निकलकर सामने आ पाया, यह महिला व उसके परिवार की जीत है। 

शायद ऐसे कई मामलों के सामने आने के बाद विकलांग महिलाओं के साथ होने वाली हिंसाओं पर गौर करते हुए उन्हें दर्ज़ करने की प्रक्रिया शुरू की जाए क्योंकि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) भी महिलाओं के साथ होने वाली हिंसाओं को रिकॉर्ड नहीं करता। जिनका रिकॉर्ड नहीं, वहां न्याय बिना किसी सबूत के विकलांग महिलाओं के साथ होने वाली हिंसाओं के मामले अनदेखा करने में कामयाब हो जाता है। 

बता दें, एनसीआरबी भारत सरकार के गृह मंत्रालय के अधीन एक संगठन है, जिसे देशभर में अपराधों के रिकॉर्ड का संग्रह, विश्लेषण और प्रबंधन करने के लिए स्थापित किया गया है।

इक्वलिटी नाउ की रिपोर्ट कहती है कि विकलांग महिलाएं अनुमानित तौर पर अन्य के मुकाबले दस गुना ज़्यादा लिंग-आधारित हिंसा का सामना करती हैं।  

"Sexual Violence Against Disabled Woman and Newborn Baby: From Caste, Disability, and Gender Identity to Failure of Justice"

महिला की सास ने हमें बताया कि बच्ची अब पहले की तरफ स्वस्थ नहीं है। वह (महिला) भी बस रोती रहती है, पहले की तरह नहीं है। घटना के दिन वह रात के 9 बजे बच्ची को सोनपुर गांव में स्थित चित्रकूट के एक जिला अस्पताल लेकर पहुंची थीं। इससे पहले का सारा समय थाने में रिपोर्ट लिखवाने में गया। घटना शाम के तकरीबन चार से साढ़े चार बजे के बीच हुई थी। बच्ची की माँ की सेहत पर सवाल करने पर उन्होंने बताया कि वो सही है!

14 नवंबर को जब हम गांव में रिपोर्टिंग के लिए पहुंचे थे, घटना के लगभग एक महीने के बाद… उस समय भी बच्ची को अस्पताल लेकर जाया जा रहा था। महिला की सास ने बताया कि पहले बच्ची को कुछ नहीं था, घटना जिस दिन हुई, तब से ही उसकी तबयत खराब होने लगी।

 “उस दिन से बच्ची ने न सही से दूध पीया है और न ही हंसी है। बस री…री… रोती रहती है। बच्ची तब बहुत स्वस्थ थी और अब एक दम पतली हो गई है।”

घटना के दिन भी जब बच्ची को इलाज के लिए लेकर जाया गया, महिला की सास के अनुसार बच्ची की सही से जांच नहीं की गई और उसे घंटा भर इलाज करके घर भेज दिया गया। इसके बाद बच्ची फिर बीमार हो गई। वह उसे दोबारा अस्पताल ले गए, इस बार बच्ची को तीन दिन भर्ती करके रखा गया। इसके बाद फिर उनसे कह दिया गया, ‘बच्ची अच्छी है आपकी, लेकर घर जाइये। यहां पलंग फ़ुर्सत (खाली) नहीं है, एक से एक मरीज़ आते हैं तो उनको हम कहां लेटाएं।’ इसके बाद वह बच्ची को लेकर घर आ गए। 

महिला की सास ने कहा, ‘बच्ची के गुप्तांग में छेद हो गया था, खून बंद ही नहीं बंद हो रहा था। गूंगी रही बहु। चली गई पानी लेने। बच्ची खटिया पर पड़ी थी। अगर वो सुन पाती तो लड़की को देखती। आरोपी दुष्ट था।’

आगे कहा, इलाज में बहुत पैसे चाहिए और उनके पास इतने पैसे नहीं है। अभी तक बहुत पैसे लग भी चुके हैं पर उन्हें किसी तरह की मदद नहीं दी गई। बार-बार अस्पताल जाना मुश्किल होता है। 

जब हम गांव तक पहुंचने के लिए भरतकूप उतरे, तो उसके बाद भी हमें गांव के अंदर जाने में 30 से 40 मिनट लगे जिसके लिए हमने 150 से 200 रूपये में रिक्शा बुक किया था। इसके अलावा गांव तक पहुँचने के लिए कोई चलता-फिरता साधन नहीं था। सिर्फ अपना साधन होना ही अन्य रास्ता है। 

इससे यह निकलकर भी सामने आया कि न्याय के साथ-साथ स्वास्थ्य तक पहुंच भी भीतरी इलाकों से सामने आने वाले इन मामलों में कितनी जटिल होती है। आर्थिक चुनौती के साथ स्वास्थ्य सुविधाओं को पाना भी उनके लिए दुर्लभ होता है। 

अस्पताल का खर्च और अस्पताल तक पहुंचने का खर्च, उन पर मानसिक हिंसा की तरह काम करते हैं, जहां न्याय प्रणाली की नाकामयाबी दिखती है जो हिंसा के बाद उन्हें स्वास्थ्य सेवा तक उपलब्ध करा पाने में यहां असफल दिखी। 

इस पूरी असफलता में बच्ची का शरीर यौन हिंसा के दौरान व यौन हिंसा के बाद भी ज़रूरी स्वास्थ्य सुविधा न मिलने की वजह हिंसा झेलता रहा। बच्ची का शरीर आज भी उसके साथ हुई हिंसा से उभर नहीं पाया है और हर दिन उस हिंसा को अनुभव कर रहा है, उसे जी रहा है बिना किसी आराम के। वह बच्ची जिसकी उम्र सिर्फ आठ महीने की है। 

"Sexual Violence Against Disabled Woman and Newborn Baby: From Caste, Disability, and Gender Identity to Failure of Justice"

                                                                                                               खाट की तस्वीर जहां इस चादर के नीचे अभी भी खून के धब्बे मौजूद है

घटना के दौरान जिस चारपाई पर बच्ची थी, हमने देखा कि उस चारपाई पर अब भी उसके खून के धब्बे हैं, सबूत की तरह, उसके साथ हुई क्रूर यौन हिंसा के वजूद की तरह। 

बाल यौन उत्पीड़न के मामलों, जिनमें सभी प्रकार की लैंगिक हिंसा (पेनेट्रेटिव यौन हिंसा) शामिल है, उसमें  2016 से 2022 तक 96 प्रतिशत का इज़ाफ़ा हुआ है। यह जानकारी बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाली एनजीओ CRY द्वारा एनसीआरबी (राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो) के डेटा का विश्लेषण करने पर सामने आई ।

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                                                                                                                                          चित्रकूट जिले के भरतकूप थाने की तस्वीर

महिला के पति ने बताया कि अपराधी राज नारायण को घटना के तीसरे कालूपुर से गिरफ़्तार किया गया था। वह उनके घर के सामने कुछ ही दूरी पर रहता था। वह उसे बचपन से जानते थे। 

भरतकूप थाने के एसआई राहुल कुमार पांडे ने खबर लहरिया को बताया कि अपराधी राज नारायण पर भारतीय न्याय संहिता की धारा 64, 352, 351 (3), 333 व 5 / 6 पॉस्को एक्ट की धारा लगाई गई है। इस मामले को थाना प्रभारी प्रवीण कुमार देख रहे थे। पुलिस ने यह भी बताया कि उन्होंने चित्रकूट जिले के विकलांग स्कूल से एक साइन लैंग्वेज इंटर्प्रेटर (जो हाथों के इशारे, चेहरे की अभिव्यक्तियाँ और शरीर की मुद्राओं को सामान्य भाषा में अनुवाद करते हैं) को महिला के बयान के लिए बुलाया था। 

परिवार ने बताया कि वह पुलिस की कार्यवाही से ख़ुश नहीं थे। हालांकि, अपराधी अब पुलिस की गिरफ़्त में है लेकिन वह अपराधी को फांसी की सज़ा दिलाना चाहते हैं। इसके साथ ही वह उसके बड़े भाई नारायण दास को भी सज़ा दिलाना चाहते हैं जिसने अपराधी को भगाने में मदद की थी। 

उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस चाहती तो अपराधी को पहले ही पकड़ लेती लेकिन पुलिस ने ढिलाई से काम किया। उनका आरोप है कि पुलिस ने घूस ली है। 

वहीं अन्य जाति के होने की वजह से गांव के लोगों को भी उनसे कोई मतलब नहीं था कि उनके साथ क्या हुआ है। मदद के लिए उन्होंने इस बारे में गांव के प्रधान अनिल यादव से भी बात करने की कोशिश की जोकि समाजवादी पार्टी से हैं, उन्होंने भी उनकी सहायता नहीं की। इसलिए क्योंकि उन्होंने इस चुनाव में उन्हें वोट नहीं दिया था – परिवार ने बताया। 

जहां जाति एक तरफ सामाजिक,शारीरिक,आर्थिक इत्यादि शोषणों की वजह रहती है, वहीं इससे जुड़ी राजनीति न्याय के मामलों को और जटिल व असंवेदनशील कर देती है। ऐसे ही अधिकतर मामले जाति, पहचान और समुदाय के नाम पर दबकर रह जाते हैं, जहां न्याय से परे सब अपना पक्ष लिए बैठे होते हैं, कभी जाति के नाम पर, कभी पहचान के नाम पर तो कभी राजनीति…… पर किसी के जीवन के लिए कौन लड़ रहा है? इस मामले में इंसाफ़ कहां है? महिला और उनकी बच्ची तो आज भी उसी हिंसा को अनुभव कर रही हैं….. खबर लहरिया से बात करते हुए महिला की सास ने कहा, 

बच्ची को देखकर लगता है कि वह ज़िंदा नहीं बचेगी।”

 

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