सुबह का समय था, सड़कें बिल्कुल खाली थीं, और सिर्फ चिड़ियों के चहकने की आवाज़ें आ रही थीं। एक सब्जीवाला अपने ठेले पर सब्ज़ियां सजा रहा था और एक महिला से बता रहा था कि होली के दौरान उसकी घर वापसी के लिए उसके बच्चे कितने उत्साहित हैं। मैंने उन दोनों के पास से गुज़रते हुए तिरछी नज़रों से उस व्यक्ति के चेहरे की ख़ुशी देखनी चाही।
और अचानक, किसी ने पानी से भरे 2-3 गुब्बारे मेरे कंधे और सिर पर मारे। “एक मिनट, क्या उस सब्जी वाले ने मुझ पर पानी फेंका क्योंकि मैं उसे तिरछी नज़रों से देख रही थी? अरे यह क्या मैं तो पूरी तरीके से भीग गयी हूँ! अरे नहीं, मुझे अगले 30 मिनट में दफ्तर पहुँच कर मीटिंग में शामिल होना है!” ये सभी विचार मेरे दिमाग में ट्रेन की तरह दौड़ रहे थे।
“होली है“, मेरे ऊपर मौजूद एक बालकनी से आवाज़ आयी। एक 15-16 साल के लड़के ने बालकनी से झाँक कर मुझे देखा और जोर– ज़ोर से हंसने लगा। वो ऐसे हंस रहा था जैसे मानो मैं उसके हास्य प्रदर्शन का विषय हूँ।
पहले तो मैं कुछ भी बोलने में थोड़ा झिझकी लेकिन फिर मैंने उसका सामना करने का और उसे सबक सिखाने का फैसला किया, क्योंकि उस लड़के के माता–पिता ने शायद केवल त्योहारों का आनंद लेना ही सिखाया है, परन्तु अब उसे “कंसेंट” या किसी से अनुमति लेने के बारे में बताने की ज़िम्मेदारी मेरी थी।
“क्या तुम्हारे माँ–बाप ने तुमको यही सिखाया है? कि चलते–फिरते लोगों पर पानी फेंको। ” मैं चिल्लाई। मेरे चीखने की आवाज़ें सुनकर अलग–अलग घरों से लोग बाहर आ गए, साथ ही उस लड़के की माँ भी घर के बाहर निकल आयीं। “तुम इतना किस बात के लिए चिल्ला रही हो? अगर गीले कपड़ों से इतनी ही दिक्कत है तो जाकर दूसरे कपड़े पहन लो। और मेरे घर के बाहर यह तमाशा करना बंद करो।” लड़के की माँ ने बोला। उस महिला की बातें मुझे एक–एक करके मानो तीर की तरह चुभ रही थीं।
मैं अगले 10 मिनट तक वहां मौजूद लोगों को यह समझाना चाहा कि किसी व्यक्ति की अनुमति के बिना उसपर पानी, रंग या कुछ भी डालना कितना अनुचित है, लेकिन वो महिला अपने बेटे का पक्ष लेने में इस प्रकार लीन थी कि उसने मेरी सारी बातों को अनसुना कर दिया। उस महिला के अनुसार,”यह सिर्फ पानी ही तो है, एक घंटे में सूख जायेगा।” यहाँ तक कि वहां खड़े लोगों ने भी मुझे ही बिना किसी कारण उपद्रव करने के लिए दोषी ठहराया। “ऐसा लगता है कि दोस्तों के साथ कभी होली ही नहीं खेली हो।” एक व्यक्ति ने मुस्कुराते हुए कहा। मैंने अपना काफी समय उन लोगों के यह समझाने में लगाया कि उस लड़के की इस हरकत का समर्थन करके, वे न केवल उसकी गलत आदतों को बढ़ावा दे रहे हैं, बल्कि यह भी दर्शा रहे हैं कि जब किसी महिला से किसी चीज़ की अनुमति या पर्मीशन लेने की बात आती है, तो हमारा समाज कैसे चुप्पी साध लेता है । थोड़ी ही देर में मुझे समझ आ गया कि मेरे प्रयास इन लोगों के साथ व्यर्थ हो रहे हैं।
निराश होकर मैं उस जगह से निकल गयी और अपने गीले कपड़ों के कारण मेट्रो या बस लेने के बजाए ऑटो रिक्शा ले लिया। “क्या हुआ मैडम? क्या बच्चों ने आपको भी नहीं छोड़ा? ” उसने मुझे ऊपर से नीचे तक देखते हुए कहा। “क्या किसी की अनुमति के बिना उसपर पानी फेंकना सही है, खासकर उस व्यक्ति पर जिसे आप जानते भी न हों?” मैंने उस ऑटो चालक से पूछा। “मैडम, यह हर तरीके से गलत है।“
उस घटना के बाद से मेरे दिमाग में केवल एक ही विचार चल रहा है कि इस देश के नागरिकों को अनुमति या किसी व्यक्ति के साथ शारीरिक या मानसिक मज़ाक करने से पहले उसकी सहमति लेना सीखना कितना आवश्यक है। यदि हम इसे व्यापक दृष्टिकोण से देखें, तो यह बहुत ही निराशाजनक है कि अब “त्योहार” के नाम पर कुछ भी करना कितनी सामान्य बात हो गयी है, और अगर आप इसका विरोध करते हैं, तो आप को ही दोषी ठहरा दिया जाता है। चाहे वो जानवरों की हत्या करना हो या त्योहार के नाम पर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाना, हमारे समाज को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह पर्व कैसे सिर्फ इंसानों के साथ ही नहीं बल्कि जानवर और प्रकृति के साथ भी खिलवाड़ कर रहे हैं।
समस्या न केवल इस तथ्य के साथ है कि लोग किसी की ऊपरी पहचान, उसके कपड़े या उसके चेहरे को खराब करके अधिकतम आनंद प्राप्त करते हैं, बल्कि यह एकमात्र ऐसा समय है जब पुरुष महिलाओं का सार्वजनिक रूप से शोषण और उत्पीड़न करते हैं और फिर “बुरे न मानो होली है” कह कर आगे बढ़ जाते हैं। हम कब तक ऐसे ही चुप्पी साध कर यह तमाशा देखते रहेंगे? क्या हमारा समाज कभी इस प्रकार के शोषण के खिलाफ आवाज़ नहीं उठाएगा? या हम सदियों से मनाए जा रहे त्योहारों के मानदंडों को तोड़ने से डरते हैं?
यह तो मेरा अनुभव था, लेकिन हर साल होली का त्यौहार आते ही देश भर की न जाने कितनी लड़कियां और महिलाएं इस प्रकार का शोषण सेहती हैं, और इसके खिलाफ आवाज़ उठाने से कतराती हैं। क्यूंकि मेरी तरह उनकी आवाज़ भी दबा दी जाती है और उल्टा उनपर ही इलज़ाम लगा दिया जाता है। हमें ज़रुरत ऐसे डर कर बैठने की नहीं, बल्कि हर गलत गतिविधि के खलाफ आवाज़ उठाने की है। इसलिए, अगर खुद के लिए नहीं तो अपनी आने वाली पीढ़ी और मानवता के लिए ही सही, भले ही वो अनजान व्यक्ति के ऊपर पानी ही डालना क्यों न हो, कुछ भी करने से पहले व्यक्ति की अनुमति लेना सीखें और अपने बच्चों को भी यही सिखाएं।
इस खबर को खबर लहरिया के लिए फ़ाएज़ा हाशमी द्वारा लिखा गया है।