विश्व भर में 2 जून को अंतराष्ट्रीय सेक्स वर्कर दिवस मनाया जाता है और उस दिन को मनाने का उद्देश्य यह है कि लोगों को यौनकर्मियों के अधिकारों के बारे में जागरूक किया जा ताकि वो भी हम सब की तरह सम्मान की जिंदगी जी सकें। लेकिन इतने सालों से चले आ रहे है इस जागरूकता अभियान के बावजूद दुनिया भर में आज भी सेक्स वर्कर्स को घृणा की नज़रों से देखा जाता है। भारत में करीब 8 लाख सेक्स वर्कर्स हैं और यहाँ वेश्यावृत्ति कानूनी भी है लेकिन इसके बावजूद न ही इनके मानवाधिकारों के लिए कभी सोचा जाता है और न ही इनके साथ हो रही हिंसा, दुर्व्यवहार या शोषण पर रोक लगाने के लिए कोई कदम उठाया जाता है।
टीबीटी इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार भारत में यौनकर्मियों के खिलाफ हिंसा इसलिए बढ़ रही है क्यूंकि उन्हें देश का नागरिक नहीं बल्कि एक अपराधी माना जाता है। जिसके चलते उनको समान सुरक्षा से लेकर बराबरी का वेतन मिलने जैसे कई ज़रूरी अधिकार नहीं मिल पाते।
पैन इंडिया सर्वे के अनुसार भारत में 55.9 % यौनकर्मी अपने ग्राहकों से शारीरिक शोषण की शिकार होती हैं। इसके साथ ही 31.9 % यौनकर्मी घरेलू हिंसा की शिकार होती हैं।
कोरोना महामारी के आने से हर क्षेत्र की तरह इस क्षेत्र पर भी काफी असर पड़ा। जो यौनकर्मी कोविड-19 के आने से पहले रोज़ाना हज़ार-दो हज़ार रूपए कमा लेते थे, उनमें से 60 % से अधिक लोग अब किसी दूसरे रोज़गार के लिए दर-दर भटक रहे हैं।
सेक्स वर्कर दिवस के इस अवसर पर चलिए जानते हैं कि इस महामारी ने कैसे इन लाखों लोगों के व्यवसाय को खतरे में डाल दिया है।
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