जिला झांसी ब्लॉक बबीना ग्राम पंचायत सिमरा वारी गांव की समूह की महिलाएं अपने घर में एक छोटा सा सेंटर चला रही हैं। जिसमें वह कुछ लड़कियों को भी प्रशिक्षण दे रही हैं। घर के ही पुराने कपड़ों से जो कपड़े इस्तेमाल नहीं होते, उन कपड़ों से बहुत ही सुंदर-सुंदर बैग बनाने का काम किया जा रहा है। वह अपने बैग मेले में और बाजार में भी लेकर बेचने के लिए भेजते हैं। उनके घर से भी कुछ लोग खरीदारी करने आते हैं।
महिलाओं द्वारा बैग, स्कूल बैग, खाने का बैग, लंच बॉक्स, चूड़ी बॉक्स,प्रेस का कवर टीवी का कवर, फ्रिज का कवर, तकिया का कवर, हैंड पर्स, कपड़ों का बैग, ऐसे ही कई प्रकार के बैग बनाये जाते हैं। यह काम वह बड़ी आसानी से कर लेती हैं। इसी के साथ – साथ अपना एक छोटा सा पार्लर भी चलाती हैं और भी बच्चों को पार्लर, सिलाई आदि का काम सिखाती हैं।
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महिलाओं का कहना है कि, ‘मेरी आवाज़ सरकार तक पहुंचे। जैसे कि जो पिछड़े गांव है जहां पर ज़्यादा स्कूल या कोई ऐसे प्रशिक्षण केंद्र नहीं है और गांव के लोग ज्यादातर अपने लड़कियों को ज़्यादा दूर तक जाने की इज़ाज़त नहीं देते हैं तो सरकार की तरफ से ऐसे छोटे-छोटे सेंटर गांव में उपलब्ध कराए जाने चाहिए।’
बहुत-सी महिलाएं हैं जो बेरोज़गार हैं। वह काम तो बहुत कुछ जानती हैं लेकिन घर में ही सीमित रह जाती हैं। वह चाहतीं हैं कि गांवों में महिलाओं को सिखाने के लिए सेंटर खोला जाए। साथ ही सरकार की तरफ से उन्हें 5 से 8 हज़ार रुपये भी दिया जाए। वह कहती हैं कि अगर सेंटर गांव में खुल जाएगा तो महिलाओं को 5 किलोमीटर चलकर नहीं जाना होगा। उनके ही गांव में ऐसे प्रशिक्षण केंद्र खुल जाएंगे तो लड़कियां आत्मनिर्भर हो सकती हैं।
जिला झांसी ब्लॉक बबीना ग्राम पंचायत सिमरा वारी गांव की समूह की महिलाएं अपने घर में एक छोटा सा सेंटर चला रही हैं। जिसमें वह कुछ लड़कियों को भी प्रशिक्षण दे रही हैं। घर के ही पुराने कपड़ों से जो कपड़े इस्तेमाल नहीं होते, उन कपड़ों से बहुत ही सुंदर-सुंदर बैग बनाने का काम किया जा रहा है। वह अपने बैग मेले में और बाजार में भी लेकर बेचने के लिए भेजते हैं। उनके घर से भी कुछ लोग खरीदारी करने आते हैं।
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बहुत-सी महिलाएं हैं जो बेरोज़गार हैं। वह काम तो बहुत कुछ जानती हैं लेकिन घर में ही सीमित रह जाती हैं। वह चाहतीं हैं कि गांवों में महिलाओं को सिखाने के लिए सेंटर खोला जाए। साथ ही सरकार की तरफ से उन्हें 5 से 8 हज़ार रुपये भी दिया जाए। वह कहती हैं कि अगर सेंटर गांव में खुल जाएगा तो महिलाओं को 5 किलोमीटर चलकर नहीं जाना होगा। उनके ही गांव में ऐसे प्रशिक्षण केंद्र खुल जाएंगे तो लड़कियां आत्मनिर्भर हो सकती हैं।
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