खबर लहरिया Blog लोगों के रोजगार और बाहर निकलने में बाधा बन रही भीषण गर्मी

लोगों के रोजगार और बाहर निकलने में बाधा बन रही भीषण गर्मी

चित्रकूट की लोढ़वारा में रहने वाली गुड़िया बताती हैं, “मेरे पति सफाई कर्मचारी है। लोढ़वारा के कांशीराम कॉलोनी में सुबह 7-8 बजे से झाड़ू लगाते थे और मैं भी साथ में लग जाती थी। उनके सहयोग से 11,12 बजे तक सफाई करके निपट जाते थे। अब गर्मी का ये हाल है कि सुबह ही धूप निकल जाती है और गर्म महसूस होने लगता है ऐसे में इतनी तेज धूप में कैसे काम होगा?

                                                                                                                                 कोल्ड रूम की तस्वीर

रिपोर्ट – नाज़नी रिज़वी

मौसम की मार से हर व्यक्ति परेशान है। गर्मी में इस बार का तापमान 50 डिग्री तक पहुँच गया है जिससे लोगों को बहार निकलने में दिक्कत हो रही है। जो लोग अपने गांव से निकल कर काम करने निकले हैं अब गर्मी के कारण अपने गांव वापस नहीं जा पा रहे हैं। बच्चों को भी स्कूल की गर्मियों की छुट्टी का इंतजार रहता था कि गर्मियों की छुट्टी होगी तो कहीं बाहर घूमने जाएंगे। ज्यादातर बच्चों की स्कूल की छुट्टियां नानी के आंगन में ही बीतती थी। गर्मी बढ़ जाने से अब बच्चों को बाहर घूमने का और नानी, दादी के घर जाने का मौका भी नहीं मिल पाता है। बच्चे अब घर में बैठ के मोबाइल पर ही गेम खेलने के आदि हो गए हैं। आज की गर्मी तो कहीं जाने के नाम से ही डरा देती है। इतनी गर्मी में बाहर कैसे जाएं? बाहर गर्म हवाएं चलती है जिससे बच्चों का स्वास्थ बिगड़ने लगता है।

इतनी गर्मी में रेल में भी यात्रा करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। रेल में खचाखच भीड़ होती है, भीड़ से घुटन और बढ़ जाती है और हालत बिगड़ जाती है। मजबूरी में कहीं जाना पड़ता है तो सारी दवाइयों को लेकर जाना पड़ता है। गांव में काम से जा रहे हो तो इतनी गर्मी की वजह से रुकने का मन भी नहीं करता है ऐसे में रिश्तेदारों से सही से मिलना भी नहीं होता है। कानपुर से चित्रकूट घूमने आए एक यात्री अपने परिवार के साथ जा रहे राजू ने बताया कि “जब मैं 17 जून को कानपुर से चित्रकूट के लिए चला था तो ट्रेन की सीटें बहुत गर्म थी। गर्मी इतनी भयावह थी जैसे अब दम निकलने वाला है। मेरा मन हो रहा था वापस चलें जाएं लेकिन मेरी मां खासकर चारों धाम करने के लिए मथुरा के भरतपुर से आई थी तो मैं मना नहीं कर पाया।”

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भीषण गर्मी में काम करना मुश्किल

चित्रकूट की लोढ़वारा में रहने वाली गुड़िया बताती हैं, “मेरे पति सफाई कर्मचारी है। लोढ़वारा के कांशीराम कॉलोनी में सुबह 7-8 बजे से झाड़ू लगाते थे और मैं भी साथ में लग जाती थी। उनके सहयोग से 11,12 बजे तक सफाई करके निपट जाते थे। अब गर्मी का ये हाल है कि सुबह ही धूप निकल जाती है और गर्म महसूस होने लगता है ऐसे में इतनी तेज धूप में कैसे काम होगा?

मुन्नी देवी काशीराम कालोनी लोढ़वारा से कहती हैं कि इस साल जैसी गर्मी कभी पड़ी नहीं पहले तो हफ्ते भर बारिश भी होती थी लेकिन अब गर्मी बहुत ज्यादा है। बारिश हो जाती तो कुछ तो राहत मिलती।

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खाना बनाने के लिए लकड़ियां लाना मुश्किल

                                               गर्मी से बचने के लिए पेड़ के नीचे बैठी मुन्नी देवी की तस्वीर अन्य लोगों के साथ

मुन्नी देवी जिनकी उम्र 50 साल है कहती हैं, “पहले तो जंगल से लकड़ियां लाना, कंडे बिनने का काम हम भरी दोपहर में करते थे। सुबह 5 बजे निकल जाते हैं और 10 बजे तक वापस आ जाते हैं। 10 बजे तक धूप पूरे जंगल में फैल जाती है। पहले तो पेड़ भी बहुत सारे थे तो फिर भी ठंडक लगती थी अब इतनी गर्मी से पेड़ भी सूख गए हैं तो छाया का सहारा भी नहीं मिलता है। अब तो जमीन तन्दूर की तरह लपेटे फेंक रही है जिससे बीमारी बढ़ रही है।

पर्यावरण संबंधित संस्था लोगों को कर रही है जागरूक

सर्वोदय सेवा संस्थान के संस्थापक अभिमन्यु सिंह जो पर्यावरण सुरक्षित करने के लिए गांव-गांव जाकर लोगों को जागरूक करते हैं। खासकर जंगल को कैसे बचाएं? लोगों से बातचीत करते हैं। उन्होंने बताया कि “सरकार बढ़ते तापमान को देखकर अलर्ट जारी किया है कि जब जरुरी काम हो तभी घर से बाहर निकलें।”

बुंदेलखंड में अधिकतर मजदूर वर्ग है और अगर वे घर से बाहर नहीं निकलेंगे तो खाएंगे क्या? उन्हें पता है नुकसान है मौत भी हो सकती है लेकिन मौत को वे रोज मात देते हैं सिर्फ अपने परिवार को पालने के लिए। वे भूख से मरने के लिए अपने परिवार को नहीं छोड़ सकते इसलिए वो इतनी कड़कती धूप में निकलते हैं। खाली राशन से गुजारा नहीं होगा। सरकार करोड़ों रूपए हर साल वृक्ष रोपण में करती है। वृक्षारोपण के बजट को सही से प्रयोग करना चाहिए ताकि पेड़ बच सके। मानसून में जो बदलाव हो रहा है वो भी ठीक रहेगा। जलवायु परिवर्तन का बहुत बड़ा कारण है कटते जंगल, उजड़ते पहाड़। तापमान बढ़ने से कितनी मौतें हो गई हैं।

चित्रकूट जिला अस्पताल की अधिक्षक वंदना श्रीवास्तव ने सिर्फ अपने अस्पताल का आंकड़ा बताते हुए कहा कि “इस साल गर्मियों में 11 मौतें जिला अस्पताल में हुई हैं। यह कह पाना मुश्किल है कि वो कैसे मौतें हुई हैं। इसमें कुछ दुर्घटनाएं भी थी और कुछ बुखार, दस्त से भी मौत हुई। गर्मी को देखते हुए प्रशासन अलर्ट कर चुका है। अस्पताल में भी दो कोल्ड रूम बनाए गए हैं। लोगों से यही कहूंगी लोग बाहर कम निकलें। ज्यादा जरूरी हो तो सुबह शाम ही निकलें।”

 

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