धर्म कोई भी हो, महिलाओं पर धर्म के नाम पर पाबंदी लगाई जाती है। पुरुषों को खुली आजादी हर चीज़ के लिए रहती है। वहीं मुस्लिम धर्म में शरियत के नाम पर महिलाओं को कैद करके रखा जाता है। महिलाएं पर्दे में रहें। किसी न महरम से बात नहीं कर सकती। यहां तक सगे रिश्ते बाप,भाई,चाचा ,फूफा ,दादा ,नाना ,मामा ,को छोड़कर सभी रिश्तेदार मर्द न महरम होते हैं। मुस्लिम में शादी रिश्तेदारी में हो जाती है, इसलिए महिलाओं के लिए सब मर्द गैर होते हैं।
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शादी की बात पर याद आया, मुस्लिम समुदाय में एक मर्द सात शादी कर सकता है क्योंकि शरियत इजा़जत देता है, लेकिन महिलाओं के लिए शरियत अपनी मर्जी से एक शादी की भी इज़ाज़त नहीं देता है। शादी तो दूर की बात महिलाएं अपनी ख्वाहिश भी जाहिर नहीं कर सकती की वो किससे साथ शादी करना चाहती हैं। अगर बदलते दौर में कोई लड़की ऐसा कर भी रही है तो उसे पूरे घर की मर्जी को शामिल करना पड़ता। कोई महिला तलाकशुदा है, शौहर मर गया है। बच्चे छोटे हैं, कोई कमाई का ज़रिया नहीं है। वो दूसरी शादी अगर करने की सोचे तो ज़माने के ताने उसका जीना दुश्वार कर देते हैं।
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वहीं पुरुष सात शादी की शरियत में जायज़ की आड़ में अय्याशी करता रहे तो कोई बात नहीं। एक को छोड़े दूसरी लाए, दूसरी छोड़े तीसरी ले आए लेकिन कोई सवाल नहीं उठाता। शरियत में जायज़ जो है।
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