कोरोना वैक्सीन को लेकर लोगों के मन में फैली आशंकाओं को लेकर हमने जब लोगों से बात की तो उनके जवाब अजीबोगरीब थे। उनकी इस सोच पर स्वास्थ्य विभाग सवालों के घेरे में आ जाता है। इन लोगों में जागरूकता की कमी का जिम्मेदार कौन है, यह बड़ा सवाल है? यह आंखों देखा और कानों सुना हाल बांदा मुख्यालय से लगभग सत्तर किलोमीटर दूर गांव जरैला का है। पहाड़ों के बीच बसा यह गांव नरैनी ब्लाक के फतेहगंज क्षेत्र का गांव है। लोगों ने बताया कि करीब दस दिन पहले तक हर घर में लोग बीमार थे। खांसी, जुकाम, बुखार से परेशान थे।
मेडिकल की दुकानों से दिक्कत बताकर दो तीन खुराक दवाई चालीस पचास रुपये में ले आते रहे। ज्यादा दिक्कत होने पर सरकारी अस्पताल में दवा कराने जाने पर अच्छे से इलाज नहीं हुआ तो प्राइवेट अस्पताल से इलाज करवाया। जो लोग सरकारी अस्पताल गए उनके कोरोना का टीका जबरन लगाया जा रहा था। इसलिए लोग सरकरी अस्पताल नहीं जाते थे। इस गांव में तीन लोगों को टीका लगाया गया तो तीनों की तबियत बिगड़ गई और एक की तो मौत गई। मौत होने के डर से लोग अब टीका लगवाने को तैयार नहीं हैं और न ही टीकाकरण के बारे में कुछ सुनना चाहते। बस उन्होंने थान लिया है कि उनको टीका नहीं लगवाना।
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