खबर लहरिया Blog Ram temple consecration: कांग्रेस व 4 प्रमुख गुरुओं ने समारोह में भाग लेने से किया इंकार, कहा – ‘मोदी विरोधी’ नहीं माना जाना चाहिए

Ram temple consecration: कांग्रेस व 4 प्रमुख गुरुओं ने समारोह में भाग लेने से किया इंकार, कहा – ‘मोदी विरोधी’ नहीं माना जाना चाहिए

“नहीं जाने का कारण क्या है? किसी घृणा या द्वेष के कारण नहीं, बल्कि इसलिए कि शास्त्र-विधि (शास्त्रों के अनुष्ठान) का पालन करना और यह सुनिश्चित करना शंकराचार्यों का कर्तव्य है कि उनका पालन किया जाए। यहां शास्त्र-विधि की अनदेखी की जा रही है। सबसे बड़ी समस्या यह है कि प्राण-प्रतिष्ठा (प्रतिष्ठा) तब की जा रही है जब मंदिर अभी भी अधूरा है। अगर हम ऐसा कहते हैं, तो हमें ‘मोदी विरोधी’ कहा जाता है। यहां मोदी विरोध क्या है?” – गोवर्धन मठ के प्रमुख स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा।

Ram temple consecration, Congress and 4 prominent gurus refused to participate in the ceremony

                                                                                            निर्माणाधीन राम मंदिर की तस्वीर ( फोटो साभार – सोशल मीडिया)

Ram Mandir Pran Pratishtha: कांग्रेस के साथ-साथ कई बड़े धर्म गुरुओं ने 22 जनवरी को होने वाले राम मंदिर ‘प्राण प्रतिष्ठा’ समारोह (‘Pran Pratishtha’ ceremony) में जानें से मना कर दिया है। कांग्रेस ने इसे “राजनीतिक प्रोजेक्ट” कहा तो वहीं धर्मगुरुओं ने समारोह को ‘शास्त्र के खिलाफ’ होना बताया।

ये भी पढ़ें – Ram temple consecration: 22 जनवरी को यूपी के स्कूल-कॉलेज बंद, टैक्सी-बस चालकों के लिए ज़ारी नियम, यात्रियों को मिली सुविधा

धर्म गुरुओं ने राम मंदिर आमंत्रण को क्यों ठुकराया?

द प्रिंट की 10 जनवरी की रिपोर्ट के अनुसार,पुरी के गोवर्धन मठ के मठाधीश द्वारा 22 जनवरी को अयोध्या के राम मंदिर में मूर्ति के अभिषेक में शामिल होने से इंकार करने के कुछ दिनों बाद, उत्तराखंड के ज्योतिर मठ के उनके समकक्ष अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने घोषणा की कि देश के चार प्रमुख शंकराचार्य या धार्मिक प्रमुखों में से कोई भी कार्यक्रम में भाग नहीं लेगा।

ज्योतिर्मठ शंकराचार्य (Jyotirmath Shankaracharya) ने मंगलवार, 9 जनवरी को अपने X अकाउंट पर पोस्ट किये एक वीडियो में बताया, “ऐसा इसलिए है क्योंकि यह समारोह “शास्त्रों” – या पवित्र हिंदू ग्रंथों – के खिलाफ आयोजित किया जा रहा है। खासकर तब जब से मंदिर का निर्माण अधूरा है।”

बता दें, शंकराचार्य चार मठों, या मठवासी आदेशों में से एक का पुजारी होता है, जो 8वीं शताब्दी के हिंदू संत,आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित हिंदू धर्म की अद्वैत वेदांत परंपरा का हिस्सा होते हैं। ज्योतिर मठ (जोशीमठ) और गोवर्धन मठ के अलावा दो अन्य मठ श्रृंगेरी शारदा पीठम (श्रृंगेरी, कर्नाटक) और द्वारका शारदा पीठम (द्वारका, गुजरात) हैं।

अपने वीडियो में, ज्योतिर मठ के 46वें शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि चार शंकराचार्यों के फैसले को “मोदी विरोधी” नहीं माना जाना चाहिए, बल्कि यह इसलिए लिया गया है क्योंकि वे “शास्त्र विरोधी” नहीं होना चाहते थे।

“नहीं जाने का कारण क्या है? किसी घृणा या द्वेष के कारण नहीं, बल्कि इसलिए कि शास्त्र-विधि (शास्त्रों के अनुष्ठान) का पालन करना और यह सुनिश्चित करना शंकराचार्यों का कर्तव्य है कि उनका पालन किया जाए। यहां शास्त्र-विधि की अनदेखी की जा रही है। सबसे बड़ी समस्या यह है कि प्राण-प्रतिष्ठा (प्रतिष्ठा) तब की जा रही है जब मंदिर अभी भी अधूरा है। अगर हम ऐसा कहते हैं, तो हमें ‘मोदी विरोधी’ कहा जाता है। यहां मोदी विरोध क्या है?”

ये बयान पुरी के गोवर्धन मठ के प्रमुख स्वामी निश्चलानंद सरस्वती की घोषणा के कुछ दिनों बाद आया कि वह समारोह में शामिल नहीं होंगे क्योंकि वह “अपने पद की गरिमा के प्रति सचेत हैं”।

“मैं वहां क्या करूंगा? जब मोदी जी मूर्ति का उद्घाटन और स्पर्श करेंगे तो क्या मैं वहां खड़ा होकर ताली बजाऊंगा? मुझे कोई पद नहीं चाहिए। मेरे पास पहले से ही सबसे बड़ा पद है। मुझे श्रेय की जरूरत नहीं है लेकिन शंकराचार्य वहां (अभिषेक समारोह में) क्या करेंगे?” उन्होंने नागालैंड कांग्रेस द्वारा ट्वीट किए गए एक अदिनांकित (तारिख का न होना) वीडियो में पूछा।

द प्रिंट की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने पीएम मोदी पर “धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप” करने का आरोप लगाया। वहीं उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उन्हें अयोध्या से “कोई आपत्ति नहीं” है।

सम्मानपूर्वक निमंत्रण किया है अस्वीकार – कांग्रेस

कांग्रेस ने कहा कि यह भाजपा और वैचारिक संरक्षक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का एक “राजनीतिक प्रोजेक्ट” है। आगे कहा, पार्टी के प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे, सोनिया गांधी व पार्टी के लोकसभा नेता अधीर रंजन चौधरी – जिन्हें निमंत्रण मिला था, उन्होंने आमंत्रण को अस्वीकार कर दिया है।

एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार,पार्टी के सीनियर लीडर जयराम रमेश ने कहा, “धर्म एक व्यक्तिगत मामला है लेकिन आरएसएस/भाजपा ने लंबे समय से अयोध्या के मंदिर को राजनीतिक परियोजना बनाया हुआ है। भाजपा और आरएसएस के नेताओं द्वारा अधूरे मंदिर का उद्घाटन स्पष्ट रूप से चुनावी लाभ के लिए किया गया है।”

उन्होंने कहा, “2019 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पालन करते हुए और भगवान राम का सम्मान करने वाले लाखों लोगों की भावनाओं का सम्मान करते हुए, श्री मल्लिकार्जुन खड़गे, श्रीमती सोनिया गांधी और श्री अधीर रंजन चौधरी ने स्पष्ट रूप से आरएसएस/भाजपा कार्यक्रम के निमंत्रण को सम्मानपूर्वक अस्वीकार कर दिया है।”

वामपंथी और तृणमूल कांग्रेस सहित कई विपक्षी दलों ने यह साफ़ कर दिया है कि वे इस कार्यक्रम में शामिल नहीं होंगे। वहीं कांग्रेस के इस कदम को भाजपा ने हिन्दू विरोधी कहा है और उनकी तुलना रामायण के रावण से की है।

 

यदि आप हमको सपोर्ट करना चाहते है तो हमारी ग्रामीण नारीवादी स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें और हमारे प्रोडक्ट KL हटके का सब्सक्रिप्शन लें’

If you want to support  our rural fearless feminist Journalism, subscribe to our premium product KL Hatke