खबर लहरिया क्षेत्रीय इतिहास दिव्यांगता को पीछे छोड़ लिख डाली बुंदेलखंड पर किताब

दिव्यांगता को पीछे छोड़ लिख डाली बुंदेलखंड पर किताब

जिला महोबा ब्लॉक जैतपुर कस्बा कुलपहाड़ तहसील कुलपहाड़ कोतवाली कुलपहाड़ : यहां के रहने वाले राकेश अग्रवाल ने बताया है कि वह आज से लगभग 10-15 साल पहले महोबा गए थे। वहां उन्होंने बुंदेलखंड की प्रवृत्तियों की किताब मांगी थी। उन्हें वह किताब नहीं मिली जिससे वह उस दिन से सोच में पड़ गए।

उन्हें सोचते-सोचते कई साल बीत गए। चार-पांच साल पहले वह बांदा, चित्रकूट,महोबा, झांसी गए और उन परिवारों से मिले जो बुंदेलखंड में रहते थे। उनके परिवार से बहराइच के बारे में जाना और उसके बारे में उनकी मिताब में दर्शाया। सामग्री इकठ्ठा करने में उन्हें लगभग चार लग गए। उन्हें लिखने का कोई शौक़ नहीं था क्योंकि वह एक शिक्षक हैं। अगर समय मिलता है तो वह किताब लिखने में घण्टा-दो घण्टा देते हैं।

2021 में उनकी किताब पूरी तैयार हो गयी। उसे छापने के लिए भेज दिया जिससे की हज़ार किताब बुंदेलखंड के बच्चे और शिक्षकों तक पहुंच सके। एक किताब की कीमत साढ़े तीन सौ है और उसमें डिस्काउंट भी है।

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वह कहते हैं, “लिखने में मुझे ज़्यादा वक्त नहीं लगा था। मैं एक बुंदेलखंड कस्बा कुलपहाड़ का रहने वाला हूं। मुझे लगता है कि जिस मिट्टी में हम लोग पले हुए हैं उसी मिट्टी के बारे में हमें कुछ लिखना चाहिए। इसी सोच के साथ हमने किताब का नाम ‘बुंदेलखंड अग्रदूत’ दिया है।”

पहले उन्होंने अखबारों में काम किया। फिर उनके मन में जिज्ञासा हुई कि क्यों न वह कोई ऐसा काम करें जिससे उनका नाम हो। इसलिए उन्होंने ‘रामरतन भुवनेश कुमार पब्लिक स्कूल’ कुलपहाड़ में खोला।

वह कहते हैं, ” मैं दुनिया में रहूं या ना रहूं लेकिन मेरा नाम हमेशा रहे। जैसे कि ऐसे कुछ खास लोग होते हैं जिनका जाने के बाद भी नाम रहता है। अभी तो मेरी एक ही किताब रिलीज़ हुई है और किताब में लिख रहा हूँ अपने दिनचर्या पर।”

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