राजस्थान विधानसभा ने 2025 में धर्मांतरण विरोधी एक नया बिल पास किया है। इस क़ानून के अनुसार यदि कोई व्यक्ति जबरन या धोखे से धर्म परिवर्तन कराता है तो उसे 7 से 14 साल की जेल और भारी जुर्माना भुगतना होगा। साथ ही धर्म परिवर्तन करने वाले व्यक्ति को प्रक्रिया से 90 दिन पहले प्रशासन को इसकी सूचना देना अनिवार्य होगा।
दरअसल वर्तमान में धर्मांतरण विवाद भारत के सार्वजनिक बहस में तेजी से उभर कर सामने आ रहा है। देश में कई ऐसे धर्मांतरण से संबंधित खबर देखने को लगातार मिल रहा है जिसमें सबसे ज़्यादा खबरें छत्तीसगढ़ से आई हैं। चाहे वो छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में एक प्रार्थना घर (चर्च) पर बिना किसी नोटिस के बुलडोज़र चलाने की घटना हो
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या फिर धर्म परिवर्तन के आरोप में केरल के दो ननों की गिरफ़्तारी।
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और अब यही धर्मांतरण की आग धीरे-धीरे और राज्यों में भी बढ़ती जा रही है।
दरअसल 9 सितंबर 2025 को राजस्थान विधान सभा ने ‘राजस्थान विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध विधेयक, 2025’ बिल पास किया है। राजस्थान विधानसभा में 9 सितंबर 2025 को लंबी बहस और भारी हंगामे के बीच धर्मांतरण कानून बिल पास कर दिया गया। भाजपा विधायक गुरबीर बराड़ ने बिल का समर्थन करते हुए कहा कि राजस्थान में इसकी बहुत ज्यादा आवश्यकता थी। काफी समय से इसकी मांग चल रही थी। अब धर्म परिवर्तन पर लगाम लगेगी।
राजस्थान का नया धर्मांतरण विरोधी क़ानून महज़ एक राज्य का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह पूरे देश की धार्मिक स्वतंत्रता और हमारे संवैधानिक अधिकारों की बुनियाद को चुनौती देता है। भारत का संविधान, खासकर अनुच्छेद 25, हर नागरिक को यह हक़ देता है कि वह अपने विवेक से कोई भी धर्म अपनाए या बदल सके। ऐसे में यह ज़रूरी सवाल उठता है कि क्या ऐसे क़ानून संविधान की उस आज़ादी को नहीं कुचलते जिसे हमारे पूर्वजों ने बड़ी लड़ाइयों के बाद पाया था?
सत्ता द्वारा दिए गए कड़े प्रावधान
बता दें इसमें जबरन या धोखे से धर्म परिवर्तन पर 7 से 14 साल तक की जेल और भारी जुर्माना का प्रावधान है। बिल के तहत धर्म परिवर्तन के लिए 90 दिन पहले प्रशासन को सूचना देना अनिवार्य होगा।
इतना ही नहीं बिल लागू होने के बाद बिना कलेक्टर की अनुमति के किसी का भी धर्म परिवर्तन या शादी के जरिए किया गया धर्म परिवर्तन अपराध माना जाएगा। इसके लिए 7 से 20 साल तक की कैद की सजा हो सकती है। बिल में यह प्रावधान भी है कि गलत तरीके से धर्म परिवर्तन कराने वाले संस्थानों की इमारतों को सील करने और तोड़ने की कार्रवाई की जाएगी। विधेयक में स्पष्ट कहा गया है कि अगर कोई व्यक्ति शादी के बहाने या झूठी जानकारी देकर धर्म बदलवाता है, तो इसे धर्मांतरण माना जाएगा और ऐसे मामलों में सख्त सजा का प्रावधान है। इसे लव जिहाद से भी जोड़कर देखा जा रहा है। दोषी पाए जाने पर 20 साल तक की कैद हो सकती है। किसी ने सिर्फ धर्म परिवर्तन करवाने के मकसद से शादी की है तो ऐसी शादी को कोर्ट रद्द कर सकेगा। बता दें ये सारे अपराध गैर जमानती है यानी पुलिस बिना वारंट के किसी को भी गिरफ़्तार कर सकती है और जमानत मिलना बेहद ही मुश्किल होगा।
दूसरी ओर इस क़ानून में एक बड़ी छूट भी दी गई है। अगर कोई व्यक्ति अपने मूल धर्म में वापस आना चाहता हो तो उसे इस क़ानून के दायरे से बाहर रखा जाएगा।
विवाह को शून्य घोषित किया जाएगा
धर्म परिवर्तन के लिए की गई शादी को शून्य घोषित किए जाने का प्रावधान भी जोड़ा गया है। अगर कोई व्यक्ति धर्म परिवर्तन के उद्देश्य से शादी करता है तो ऐसे मामलों में कोर्ट के जरिए शादी को शून्य कराया जा सकेगा। यानी केवल धर्म परिवर्तन के लिए किसी महिला या पुरुष ने शादी की है और शादी के पहले या बाद में धर्म बदला है तो ऐसी शादी को रद्द कराया जा सकेगा।
विधायक और नेताओं की प्रतिक्रियाएं
विधायक गुरबीर बराड़ ने कहा “मैं भारत-पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय बॉर्डर के पास वाले इलाके से आता हूं, जहां पर धर्मांतरण के कई केस आए। आप पूरा इतिहास उठाकर देखिए, हालात बहुत ज्यादा दयनीय हैं, लेकिन अब नए कानून से राहत भी मिलेगी और जो लोग इस काम को अंजाम दे रहे थे उन पर भी लगाम लगेगी।” गृह राज्य मंत्री जवाहर सिंह बेधम ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 25 धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है, “लेकिन यह स्वतंत्रता गरीब, दलित, आदिवासी, अशिक्षित, शोषित या वंचित लोगों को लालच, प्रलोभन, भय या धोखे से अपना धर्म बदलने के लिए मजबूर करने की नहीं है।”
इस बीच, कांग्रेस पार्टी ने आरोप लगाया कि सदन में उसके विधायकों पर नजर रखने के लिए विपक्षी बेंचों के पास अतिरिक्त कैमरे लगाए गए थे, जिसके कारण पार्टी ने बहस के दौरान आसन के सामने आकर नारेबाजी की।
राज्य की विधानसभा में तीसरे नंबर की पार्टी भारत आदिवासी पार्टी ने भी सदन में हुई चर्चा में हिस्सा लेते हुए इसका विरोध किया और कहा कि धर्मांतरण गैर जरूरी मुद्दा है। इसके बजाय बुनियादी जरुरतों से जुड़े हुए बिल लाए जाने चाहिए थे। विधायक थावरचंद डामोर ने कहा कि अंग्रेजों के समय तक आदिवासी एक अलग धर्म के रूप में थे। बाद में उन्हें वोट बैंक की लालच में हिंदू बताया जाने लगा। गरीबों के चलते बड़ी संख्या में आदिवासी दूसरे धर्म को अपना रहे हैं। आदिवासियों के मूल धर्म को बचाने का कोई प्रावधान इस बिल में नहीं है।
धर्मांतरण विरोधी क़ानून लागू किए गए राज्य
गृह राज्य मंत्री जवाहर सिंह बेधम ने बताया कि राजस्थान से पहले देश के कई राज्यों में धर्मांतरण विरोधी क़ानून बनाए जा चुके हैं। अरुणाचल प्रदेश में 1978, आंध्र प्रदेश में 2007, उत्तराखंड में 2018, हिमाचल प्रदेश में 2019, उत्तर प्रदेश में 2021, कर्नाटक में 2021 और हरियाणा में 2022 में ऐसे कानून लागू हुए। राजस्थान में भी 2008 में तत्कालीन सरकार ने धर्मांतरण विरोधी कानून लाने की कोशिश की थी लेकिन अटॉर्नी जनरल की आपत्ति के कारण वह लागू नहीं हो सका। अब मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के नेतृत्व में विधानसभा में नया और सख्त कानून लाया गया है ताकि जबरन धर्मांतरण पर पूरी तरह रोक लगाई जा सके।
क्या है नियम
यदि कोई अपनी मर्जी से धर्म बदलना चाहता है, तो उसके लिए भी प्रशासनिक मंजूरी जरूरी होगी। इसके लिए एक सख्त प्रक्रिया निर्धारित की गई है:
– व्यक्ति को कम से कम 90 दिन पहले कलेक्टर या एडीएम को सूचना देनी होगी।
– संबंधित धर्मगुरु को भी दो महीने पहले नोटिस देना होगा।
– यह घोषणा सार्वजनिक की जाएगी और नोटिस बोर्ड पर चिपकाई जाएगी।
– इसके बाद 2 महीने तक आपत्तियां मंगाई जाएंगी।
– सुनवाई और सभी आपत्तियों का निपटारा होने के बाद ही धर्म परिवर्तन मान्य होगा।
इस क़ानून की आलोचनाएं
इस क़ानून को कई तरह की आलोचनाएं भी मिल रही है। एक तो ये कि हर व्यक्ति को अपना धर्म चुनने और बदलने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत मिलता है। और ये लाए गए क़ानून इस अधिकार को कमजोर करता है। ये क़ानून केवल राजस्थान नहीं बल्कि पूरे देश में धार्मिक स्वतंत्रता और नागरिकों के अधिकार के लड़ाई को प्रभावित करेगा।
राजस्थान का नया धर्मांतरण विरोध क़ानून सिर्फ एक राज्य का मामला नहीं है बल्कि यह पूरे देश की धार्मिक स्वतंत्रता और संवैधानिक अधिकारों से जुड़ा सवाल करता है। अनुच्छेद 25 हर नागरिक को स्वतंत्र रूप से धर्म चुनने और बदलने का अधिकार देता है। ऐसे में यह सवाल लाज़मी है कि क्या इस तरह के क़ानून संविधान की मूल आत्मा को कमजोर नहीं करते? बाबा साहब भीमराव अंबेडकर, जिन्होंने न सिर्फ़ इस संविधान को रचा बल्कि खुद धर्म परिवर्तन करके एक ऐतिहासिक उदाहरण भी पेश किया, क्या उनकी उस सोच और आज़ादी की भावना को आज के दौर में कमजोर किया जा रहा है? क्या हम उस मूल भावना से भटक रहे हैं, जो हर इंसान को बराबरी, सम्मान और अपने रास्ते को चुनने की पूरी आज़ादी देती है? ये सवाल अब सिर्फ कानूनी नहीं, बल्कि हमारी लोकतांत्रिक आत्मा से जुड़े हैं।
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