हम साल भर से मंत्री और आधिकारिक लोगों से मिल रहे है। एक शहीद का परिवार इतने दर्द से गुज़रना deserve (उचित नहीं है) नहीं करता।
आज साल 2019 में कश्मीर में हुए पुलवामा हमले को तीन बरस यानी तीन साल बीत चुके हैं। हर साल की तरह इस साल भी प्रधानमंत्री और कई नेताओं ने शहीदों को याद करते हुए उन्हें नमन किया। कई ट्वीट्स और सोशल मिडिया पोस्ट उन्हें याद करते हुए लगाए जा रहे हैं और लगाए गए हैं पर सवाल आता है क्या ये सांत्वना शहीदों के परिवारों को जीवन दे सकती है? उनके जीवनयापन में मदद कर सकती है? उनके बच्चों को शिक्षित करने में सहायक हो सकती है? अगर ऐसा होता तो फ़िक्र की कोई बात ही नहीं होती।
पुलवामा में हुए घातक हमले को इतिहास के पन्नों में काले दिन की तरह लिखा गया। देश ने 40 मातृभूमि प्रेमियों को खो दिया लेकिन उस दिन अनाथ सिर्फ देश नहीं इन शहीदों का परिवार भी हुआ। नेताओं और देश के प्रधानमंत्री ने इन परिवारों को ढांढस बंधाते हुए वादा किया कि वह उनका खर्चा उठाएंगे। उन्हें आर्थिक सहायता दी जायेगी।
ये कहानी आपको दोहराई हुई नहीं लगती? 26/11 का हमला हो या उरी हमला, बिलकुल यही बातें अगर आप याद करें तो उस समय भी की गयी थी। जब भी ऐसा कोई समय आता है तब भी यही बातें की जाती है, यह कुछ नया नहीं है। वादें होते हैं, वादे तोड़ दिए जाते हैं। दिखावे भर के लिए कुछ परिवारों को थोड़ी बहुत मदद भी कर दी जाती है? देश की जनता को यह पता चले कि उन्हें शहीदों के परिवारों की फ़िक्र है तो कुछ नेता उनसे मिल भी आते हैं। अब इन सब चीज़ों के बाद क्या? क्या यह निश्चित किया गया कि सभी परिवारों को आर्थिक मदद मिली है या नहीं? जिस तरह से हर साल आज के दिन सिर्फ नाम के लिए “पुलवामा हमले” को याद किया जाता है, क्या उन परिवारों को जाकर कभी साल में ही पूछा गया कि उनका जीवन कैसा चल रहा है? उन्हें कोई परेशानी तो नहीं हो रही? ऐसे कई सवाल आपके मन में भी तो आते ही होंगे न, क्यों?
अब उन शहीदों के परिवारों से ही जान लेते हैं कि जिन वादों के बारे में उनसे कहा गया था, वह कितने पूरे हुए या हो रहे हैं? हमने उन परिवारों के बारे में जानने के लिए कुछ रिपोर्ट्स खोजी, जो हम आपको इस आर्टिकल में बताने जा रहे हैं।
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बीबीसी द्वारा फरवरी 14, 2020 को प्रकशित रिपोर्ट में शहीद रोहिताश लाम्बा (राजस्थान से) के परिवार ने बताया,”उनके परिवार में सिर्फ अकेला वही कमाने वाला था।” पत्नी मंजू लाम्बा ने कहा, “जब मेरे पति की मौत हुई तो सब मिलने आये थे लेकिन दुःख इस बात का है कि इसके बाद कोई हमसे हमारा हाल-चाल पूछने नहीं आया। सरकार ने कहा था कि वो मेरे देवर को नौकरी देगी। उसे नौकरी भी नहीं मिली।”
प्रताप सिंह कचारिया, जो राजस्थान के जाने-माने मंत्री व उन मंत्रियों में से एक थे जो शहीद रोहिताश के परिवार से मिले थे। उन्होंने अपने बयान में बताया, “कुछ तकनीकी दिक्कत की वजह से वह नौकरी नहीं दे पाए।”
शहीद रोहिताश के भाई जितेंद्र लाम्बा मंत्री की बात से सहमत नहीं होते। जितेंद्र ने कहा, “हम साल भर से मंत्री और आधिकारिक लोगों से मिल रहे है। एक शहीद का परिवार इतने दर्द से गुज़रना deserve (उचित नहीं है) नहीं करता।”
शहीद अश्विनी कुमार कच्ची, मध्यप्रदेश के जबलपुर जिले के गाँव खुदवाल के परिवार से टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने बात की। फरवरी 15, 2021 की रिपोर्ट में शहीद के बड़े भाई स्वनिथ कच्ची ने बताया, “सरकार ने हमसे बहुत सारे वादे किये थे। जिसमें आर्थिक सहायता के तौर पर 1 करोड़ रूपये देना, मूर्ति बनाना, शहीद के नाम पर पार्क और स्कूल बनवाना साथ ही परिवार के किसी एक सदस्य को नौकरी देना शामिल था।” आगे कहा, “आर्थिक सहायता देने के आलावा सरकार द्वारा किया गया कोई भी वादा पूरा नहीं किया गया।”
कई परिवारों ने रिपोर्ट में बताया कि शुरुआत के कुछ दिनों के बाद कोई उनसे मिलने नहीं आया। सिर्फ सब अपना-अपना पल्ला झाड़ रहे थे। शहीद के परिवारों द्वारा यह कहना बिलकुल गलत नहीं था, न है। आज भी स्थिति अलग नहीं है, वही है। बस हर साल आज के दिन शहीदों को याद करके उनके परिवार को सांत्वना दे दी जाती है और कहा जाता है, “उनका यह बलिदान देश कभी नहीं भूल पायेगा।”