बाढ़ अब सिर्फ प्रकृति की नहीं, पॉलिटिक्स की भी देन बन चुकी है। जंगल कटते जा रहे हैं, नदियाँ गाद से भर रही हैं, और सरकारें सिर्फ नारे लगाकर निकल जाती हैं। जलवायु परिवर्तन के चलते बारिश की तीव्रता और अनियमितता बढ़ गई है, जिससे बाढ़ का खतरा कई गुना बढ़ गया है। ऐसे में नदियों के किनारों पर अतिक्रमण और कमजोर तटबंधों की वजह से पानी रिहायशी इलाकों में घुस जाता है। साथ ही, जंगलों की कटाई से मिट्टी का कटाव तेज होता है, जिससे नदियों में गाद भरती है और वे जल्दी भर जाती हैं। पुराने बांधों और नहरों की खराब स्थिति इस समस्या को और गंभीर बना रही है। और बाढ़ सिर्फ बारिश से नहीं आती है कई बार बड़े बाँधो का पानी छोड़ दिया जाता है और पब्लिक को इसके बारे में सूचना तक नहीं दी जाती है। ग्रामीण बाढ़ रोकथाम पर कुल कितना पैसा खर्च किया गया? किन-किन नदियों की सफाई या जलस्तर नियंत्रण की कार्रवाई की गई है? कितने गांवों में बाढ़ से पहले चेतावनी प्रणाली और राहत प्रबंधन सक्रिय किया गया है? क्यों तटबंध और पुल का समय रहते मरम्मत या निर्माण नहीं कराया गया? गांव में अभी भी प्रशासन मदद के लिए क्यों नहीं पहुंच पा रहा?
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